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रविवार, 27 सितंबर 2015

कितनी अजीब मूर्खता है हमारी-अंक 71

जय मां हाटेशवरी...

शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज़ है या
मिट्टी में गिरे हुए ख़ून
का रंग।

लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
घोड़े से पूछो
जिसके मुंह में लगाम है।------धुमिल
अब बारी है....आज के 5 लिंकों की....

इरादों की खेती करेंगे
अपने इरादों का दुपट्टा ओढ़कर
बाहर निकलो --
मैं साइकिल लिए खड़ा हूँ
सड़क पर
तुम्हारे पीछे बैठते ही
मेरे पाँव
इरादों के पैडिल को घुमाने लगेंगे---

जिन्दगी --- एक दिन
   अब स्कूल का समय भी ख़त्म होने को था। ऑफिस को ताला लगा कर बाहर  आ गयी। विमला बाई को सामान भंडार घर में रखवा कर ताला लगाया। छुट्टी की घंटी बजते ही बच्चे
उछलते -खिलखिलाते दौड़ लगते हुए कुछ धकियाते हुए बाहर जाने लगे।
     आरुषि को ये बच्चे चिंता रहित  खिलते हुए, महकते हुए फूलों की तरह लगे। सोच रही थी इन बच्चों को सही दिशा मिलेगी तभी तो देश की दशा सुधरेगी। वह भी ताला
लगा कर घर की ओर चल पड़ी।
   
पागलों के साथ कौन खड़ा होना चाहता है 
किसी में नहीं है
हिम्मत सच के
लिये खड़े होने
के लिये हर कोई
सच को झूठा
बनाना चाहता है

कितनी अजीब मूर्खता है हमारी
-----Ojasvi Hindustan की फ़ोटो.----

हमे और हमारी सरकारों को धिक्कार है जो अभी तक हर भारतीय को अंग्रेजी जैसी फालतू और अवैज्ञानिक भाषा समझाने में तो एडी छोटी का जोर लगाती रही पर संस्कृत जैसे
अत्यंत महत्वपूर्ण, वैज्ञानिक और अपने देश की ही भाषा का महत्व तक नही समझा सके. जब तक संस्कृत शिक्षा में नही आयेगी तब तक लोगों को इसका महत्व और तर्कसंगतता
का पता चलना कठिन है. देश को आग बढ़ाना है तो संस्कृत की जरूरत है अंग्रेजी कि नही.


बेटी बिना

हैं वे ही भाग्यशाली जो
बेटी पा पुलकित होते
उसे घर का सम्मान समझते
सजाते सवारते पढ़ाते लिखाते
इतना सक्षम उसे बनाते
गर्व से कह पाते
है मेरी बेटी मेरी शान
दौनों कुल की रखती आन
अच्छी बेटी ,बहन ,माँ हो
देती प्रमाण अच्छी शिक्षा का
माता पिता के सहयोग का
उनके उन्नत  सोच का
 कोई विकल्प न होता
बेटी बिना घर सूना होता |

धन्यवाद...




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