गया है अभी अभी इमरोज एक जाँ-निसार की तरह
‘उलूक’ फितरत से किसे मतलब है
कौन समेट रहा है यहां कुछ एक जमादार की तरह
क़लम नहीं रही अब भरोसे के लायक़,
बीच ग़ज़ल स्याही जम सी गई है।
मै भी नहीं पहले सा, वह भी नहीं पहले सी,
दूरियाँ मगर कुछ कम सी गई हैं।
मिली थी मुझसे, तो फुलझड़ी थी वो,
छोड़कर गई है, तो बम सी गई है।
प्रदूषण-प्रदूषण मत चिल्लाओ
हम इस विषय पर
पंचतारा होटलों में महत्वपूर्ण
परिचर्चाओं की-
एक लम्बी श्रृंखला चला रहे हैं।
समाधान मिलते ही
हम काम भी करेंगे।
बहुत शीघ्र हम प्रदूषणग्रस्त इलाकों का -
हवाई सर्वेक्षण भी करेंगे।
अभ्यास पिछले दिनों 25 नवम्बर को दोपहर के शुभ अभिजीत मुहूर्त में अयोध्या के श्री राम मंदिर का ध्वजारोहण के साथ ही मंदिर निर्माण कार्य संपन्न हुआ ! पर इस पुनीत उपक्रम में देश के विभिन्न दलों, लोगों द्वारा जो अड़चने डाली गईं, बाधाऐं खड़ी की गईं, एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया गया कि मंदिर निर्माण ना होने पाए, उसके बावजूद यदि वर्षों-वर्ष से करोड़ों लोगों का यह सपना पूरा हुआ है तो निश्चित रूप से इसके पीछे किसी दैवीय शक्ति का हाथ है, बिना उसकी सहायता के आज की आसुरी ताकतों को परास्त करना असंभव था ! और वह हाथ किसका हो सकता है इसका अंदाज लगाना बिलकुल मुश्किल नहीं है, सभी जानते हैं कि श्री राम का कोई भी काम बिना हनुमान जी के संभव नहीं हुआ था ! यहां भी ऐसा ही हुआ !
आदिम अंधकार से निकल कर जीवन
ढूंढता है शीतकालीन नरम धूप,
हिमनद के अंदर बसते हैं
असंख्य तरल स्वप्न,
अदृश्य स्रोत
तलाशती
है सतत अपना खोया हुआ प्रकृत रूप,
आदिम अंधकार से निकल कर
जीवन ढूंढता है शीतकालीन
नरम धूप ।
कतार ज्यादा लंबी नहीं थी पर भक्तों मे उत्साह पुरजोर था...."ऊं हर हर पार्वते पतये नमः"के जयकारे गूंज रहे थे। मंदिर से पहले ही और बिल्कुल मुख्य मंदिर से जुड़े हुए मंदिर में एक पुजारी आपकी पूजन सामग्री भोले बाबा को अर्पित कर रहा था।अब हम मुख्य मंदिर के सामने थे।बाबा विश्वनाथ हमारे समक्ष थे।उनका अद्भुत अलौकिक रूप कहने ही क्या .. तन-मन शिव हो गया था ।उस एकपल में जैसे हम खुद को भूल गए थे।दर्शन के बाद आप प्रांगण में कितनी ही देर रुक सकते हैं।हमने प्रागंण में विशालकाय नंदी को देखा...सामने लिखा था "ज्ञानवापी परिसर'जिसे बंद कर रखा था पर नंदी की आंखों में विश्वास स्पष्ट झलक रहा था कि एक दिन उसके ईष्ट,उसके स्वामी शिव अवश्य ही प्रकट होंगे,ये दीवार जो दोनों के मध्य है, अवश्य गिरेगी....उनकी आंखें मैं अभी तक नहीं भूली हूं, बिल्कुल जीवंत और बोलती हुई आंखें....मन विह्वल हो जाता है यह सोचकर कि बिना शिव के नंदी अधूरे हैं और वह अधूरापन हर भक्त महसूस करता है। यहां समझ आता है कि हमारी आस्था और हमारे प्रतीकों को निशाना क्यों बनाया गया..?नंदी की प्रतीक्षा अवश्य पूरी होगी.... जहां चारों और सनातन का वैभव पसरा हो, वहां बीच में मस्जिद कैसे हो सकती है....? यहां पर हमारे पास मोबाइल तो था नहीं इसलिए फोटो नहीं खींच पाए पर बाहर की फोटो हैं।
डाल से टूट कर
बिछड़ते हुए पत्तों को देखा है
टूटती हुई डालियाँ चरमराती हुईं टूटती हैं
एक इन्सान को टूटते हुए देखना बड़ा भयानक होता है
वह मन ही मन, धीरे-धीरे टूटता है
बस
कल की कल
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति। आभार।
जवाब देंहटाएंआभार दिग्विजय जी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति,सभी रचनाएं उत्तम, रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंदिग्विजय जी, सम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद 🙏
जवाब देंहटाएंइस प्रस्तुति के शीर्षक ने मुझे यहाँ खींचा। बेहतरीन रचना।
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