सादर अभिवादन
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
निवेदन।
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फ़ॉलोअर
शनिवार, 5 अप्रैल 2025
4449 ....अजीनोमोटो में एमिनो एसिड पाया जाता है
शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025
4448...एक चिड़िया थी..
यह ऋतु है महुए के फूल की मदिर सुगंध से महकने की ,
अधरों पर कोयल के गीत सजाकर अमराइयों में बहकने की
न महुआ है और न अमराइयाँ,धरती पर कंक्रीट की झाइयाँ
पछुआ कर रही है चुगली गर्मियों के पहले ताप से दहकने की।
गुरुवार, 3 अप्रैल 2025
4447...कौन नहीं जानता हमारे सिवा कि कितने बड़े मूर्ख हैं हम...
शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ओंकार जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
जब पुस्तक की कापियाँ शोभित
को मिली, तब उसे यह भी जानकारी मिली कि गुरुपूर्णिमा
नजदीक ही है। उसने गुरुपूर्णिमा के दिन मैडम के घर जाकर पुस्तक समर्पित करने का
सोचा और इसीलिए मैडम के फुरसत के वक्त उन्हें फोन किया। मैडम से बात हुई। उन्होंने
शोभित को सुझाया कि गुरुपूर्णिमा के दिन तुम्हारे घर के पास ही एक समारोह है गुरु
पूर्णिमा के ही उपलक्ष्य में। वे चाह रही थीं कि यदि ऐतराज न हो तो शेभित उसी
समारोह में आ जाए और समर्पण का काम भी वहीं कर लिया जाए । यदि नापसंद हो तो शाम को
समय वह घर पर भी आ सकता है।
*****
रूह महकी थी जिन अधूरे खत भींगी आँचल साझेदारी में l
नफासत नजाकत लाली शामिल जिसकी रुखसार तरफदारी में ll
काफिर महकी आँखें पेंचों उलझी जिसकी रहदारी में l
उत्कर्ष स्पर्श था उसकी चंदन बिंदी पहेली रंगदारी में ll
*****
कौन नहीं जानता हमारे सिवा
कि कितने बड़े मूर्ख हैं हम,
सब जानते हैं, जितने हम लगते
हैं,
असल में उससे ज़्यादा ही होंगे।
*****
सिर्फ अपनी ख़ुशी चाहने वाले कभी सुखी नहीं रह पाए हैं
माना कि स्वतंत्र है
अपनी जिंदगी जीने के लिए
खा-पीकर,
देर-सबेर घर लौटने के लिए
लेकिन
क्यों भूल जाता है
कि पत्नी बैठी होगी
दिन भर की थकी हारी दरवाजे
पर
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गुरुद्वारा
पंज प्यारे भाई धरम सिंह,
हस्तिनापुर
वाह-वाह
गोविंद सिंह आपे गुरु चेला!
गुर सिमर मनाई
कालका खंडे की वेला
वाह-वाह
गोविंद सिंह आपे गुरु चेला!
पिवो पाहुल
खंडे धार होए जनम सुहेला
गुरु संगत
कीनी खालसा मनमुखी दुहेला!
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह
यादव
बुधवार, 2 अप्रैल 2025
4446...किसका सन्देशा लाई हो..
।।प्रातःवंदन।।
ऊषे!
किसका सन्देशा लाई हो
चिर प्रकाश या चिर अन्धकार का?
अरुणिम वेला में आकर अम्बर पर
बनकर प्रकाश की पथचरी
चिर अनुचरी!
उसके आने का सन्देशा देकर
फिर पथ से हट जाती हो..!!
विजयदान देथा 'बिज्जी'
लायी हूँ शब्दों की कुछ खास बातें..महसूस करिये इन्हें पढकर..
उरई की संक्षिप्त यात्रा में सबसे ज्यादा प्रतीक्षित मुलाकात मुझे करनी थी अपने चाचाजी श्री रामशंकर द्रिवेदी जी से। कई बार वह भी कह चुके थे कि मिलना है , लेकिन जिस उद्देश्य से हम मिलना चाहते थे , उसे पूरा करने का समय नहीं मिला। मैं उनको बता चुकी थी...
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असफल वैवाहिक रिश्तों के पीछे अनेक कारण हैं । उन अनेक कारणों में सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण कारण है आज के युवाओं की निरंकुश रूप से बढ़ती हुई स्वच्छंदता की प्रवृत्ति और उनकी दिन प्रति दिन विकृत होती जाती..
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अपने में टिक रहना है योग
योग में बने रहना समाधि
सध जाये तो मुक्ति
मुक्ति ही ख़ुद से मिलना है
हृदय कमल का खिलना है ..
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जरूरत के समय साथ निभाने वाले लोग
नदियों ने कब मना किया था
जल नहीं देने से
खेतों के लिए
पशुओं के लिए
मनुक्ख की प्यास के लिए
जो वह बांध दी गई !
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।।इति शम।।
।धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति।।
मंगलवार, 1 अप्रैल 2025
4445 ,,,आज का दिन अपने नाम के अनुरूप जायकेदार है
सादर अभिवादन