निवेदन।


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शनिवार, 5 अप्रैल 2025

4449 ....अजीनोमोटो में एमिनो एसिड पाया जाता है


सादर अभिवादन

कल कदाचित कन्या पूजन है
चूंकि रविवार को रामनवमी है

होते हैं रचनाओं से रूबरू




रवि किरणों से फ़लक
जग जाएँगे वृक्ष, पर्वत, फूल सभी
काली पड़ गई धूल सभी
हर भोर उस सुबह की
याद दिलाती है
जिसमें जगकर आत्मा
नयी हो जाती है !





प्रेम   जीवदया  का   पाठ   जीवन  पाठशाला  
में   बनके   गुरु    हमारा , हमें   सिखाते   है ।
कण     कण      में     बसते   है ।
हर   क्षण     में    रहते    है ।
मेरे  राम  मेरे  साथ  प्रतिपल   चलते   है ।





नये पहाड़ चढ़ते हैं
सपाट पगडंडियों से
जो थक चुके हैं
नये व्यंजन पकाते है वे
जो पुरानों से पक चुके हैं






यह चमकीले छोटे क्रिस्टल के जैसे दिखता है। अजीनोमोटो में एमिनो एसिड पाया जाता है, जिसे जापानी कंपनी द्वारा बनाया गया है। अजीनोमोटो का दूसरा नाम मोनो सोडियम ग्लूटामेट( MSG) भी है। चीन की खाद्य पदार्थों में अजीनोमोटो का उपयोग होता है। इसके डालने से खाने का स्वाद दोगुना हो जाता है। यह सेहत के लिए बहुत ही खतरनाक है।

इसको लगातार खाने से जीभ एक विशेष प्रकार का स्वाद ग्रहण करने लगती है, जिसे उमामी टेस्ट कहते हैं।यह न मीठा होता है न खट्टा न नमकीन न कसैला। यह एक अलग ही स्वाद है।यदि एक बार जीभ इसक अभ्यस्त हो जाय तो फिर जीभ को कुछ अच्छा नही लगता।






वस्त्र की दगाबाजी
कहां से सीखा मानव
कब कहा प्रकृति ने
ढंक लो तन कपड़ों से,
सामाजिकता और सभ्यता का दर्जी
सिले जा रहा कपड़े
मानवता उतनी ही गति से
होती जा रही नग्न,
क्या मिला
ढंककर तन,


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आज बस
सादर वंदन

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

4448...एक चिड़िया थी..

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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यह ऋतु है महुए के फूल की मदिर सुगंध से महकने  की ,

अधरों पर कोयल के गीत सजाकर अमराइयों में बहकने की 

न महुआ है और न अमराइयाँ,धरती पर कंक्रीट की झाइयाँ

पछुआ कर रही है चुगली गर्मियों के पहले ताप से दहकने की।

आज की रचनाएँ
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दुनियाँ की सबसे खूबसूरत स्त्री की एड़ियाँ 
हैं खुरदुरी 
वे अक्सर भूल जाती हैं 
फटी एड़ियों को माँजना 
उनमें तेल लगाना 
जबकि बर्तन माँजते माँजते 
उनसे नाखून जाते हैं घिस 
और हर बार नाखून के नहीं बढ्ने पर 
जताती हैं अफसोस 
कहती हैं कि कराएगी नाखून पर कलाकारी 
और देकर बजट का हवाला 
हर बार रोक लेती है खुद को । 




आसपास बिखरे पड़े हैं असंख्य आत्माएं,
सहज नहीं कहना, कब आए अपनी बारी,

कागज़ी फूल ही सही ये रिश्तों की दुनिया,
गन्धहीन कोषों में बसता है प्रणय भिखारी,





एक मछली थी 
जो आकाश की ऊँचाई से 
इस संसार को देखना चाहती थी 
चाहतें इनकी ग़लत न थीं  
पर फिर भी 




एक तरफ दुनिया भर में जंगली, खतरनाक, दुर्लभ, मासूम, हर तरह के जानवरों को पिंजरों में बंद कर विश्व के सबसे खतरनाक जानवर इंसान के दीदार के लिए रखा जाता है ! दूसरी तरफ वही इंसान एक अदने से कीड़े से बचने के लिए खुद को मसहरी नुमा पिंजरे में बंद कर अपनी जान की हिफाजत करने पर मजबूर हो जाता है ! कहते हैं ना कि भगवान सभी को ठिकाने से लगाए रखता है !





साहित्य साथ खड़ा होना सिखलाता है— लेकिन शायद कुछ लोगों को आपका सम्मान होना समयोचित नहीं लगा हो : आपका क्या विचार है?”
“मुख्य आयोजक की यह इच्छा सन् 2018 से थी : अनेक कार्यक्रमों में मेरी अनुपस्थिति होने के कारण यह अभी तक 2025 में हो सका। वक्त जब समय तय कर दे-। बुरा लगना -अच्छा लगना अपने मन के भाव है।”
“क्या आपको भी ऐसा लगता है कि यह संस्था महिलाओं के लिए है?”


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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

4447...कौन नहीं जानता हमारे सिवा कि कितने बड़े मूर्ख हैं हम...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ओंकार जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

शोभित

जब पुस्तक की कापियाँ शोभित को मिली, तब उसे यह भी जानकारी मिली कि गुरुपूर्णिमा नजदीक ही है। उसने गुरुपूर्णिमा के दिन मैडम के घर जाकर पुस्तक समर्पित करने का सोचा और इसीलिए मैडम के फुरसत के वक्त उन्हें फोन किया। मैडम से बात हुई। उन्होंने शोभित को सुझाया कि गुरुपूर्णिमा के दिन तुम्हारे घर के पास ही एक समारोह है गुरु पूर्णिमा के ही उपलक्ष्य में। वे चाह रही थीं कि यदि ऐतराज न हो तो शेभित उसी समारोह में आ जाए और समर्पण का काम भी वहीं कर लिया जाए । यदि नापसंद हो तो शाम को समय वह घर पर भी आ सकता है।

*****

संवाद

रूह महकी थी जिन अधूरे खत भींगी आँचल साझेदारी में l

नफासत नजाकत लाली शामिल जिसकी रुखसार तरफदारी में ll

काफिर महकी आँखें पेंचों उलझी जिसकी रहदारी में l

उत्कर्ष स्पर्श था उसकी चंदन बिंदी पहेली रंगदारी में ll

*****

 फ़र्स्ट अप्रैल

कौन नहीं जानता हमारे सिवा

कि कितने बड़े मूर्ख हैं हम,

सब जानते हैं, जितने हम लगते हैं,

असल में उससे ज़्यादा ही होंगे।

*****

सिर्फ अपनी ख़ुशी चाहने वाले कभी सुखी नहीं रह पाए हैं

माना कि स्वतंत्र है
अपनी जिंदगी जीने के लिए
खा-पीकर,
देर-सबेर घर लौटने के लिए
लेकिन
क्यों भूल जाता है
कि पत्नी बैठी होगी
दिन भर की थकी हारी दरवाजे पर

*****

गुरुद्वारा पंज प्यारे भाई धरम सिंह, हस्तिनापुर

वाह-वाह गोविंद सिंह आपे गुरु चेला!

गुर सिमर मनाई कालका खंडे की वेला

वाह-वाह गोविंद सिंह आपे गुरु चेला!

पिवो पाहुल खंडे धार होए जनम सुहेला

गुरु संगत कीनी खालसा मनमुखी दुहेला!

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


बुधवार, 2 अप्रैल 2025

4446...किसका सन्देशा लाई हो..

 ।।प्रातःवंदन।।

ऊषे!

किसका सन्देशा लाई हो

चिर प्रकाश या चिर अन्धकार का?

अरुणिम वेला में आकर अम्बर पर

बनकर प्रकाश की पथचरी

चिर अनुचरी!

उसके आने का सन्देशा देकर

फिर पथ से हट जाती हो..!!

 विजयदान देथा 'बिज्‍जी'

 लायी हूँ शब्दों की कुछ खास बातें..महसूस करिये इन्हें पढकर..

मायके के चंद घंटे ! (3)।

                                        उरई की संक्षिप्त यात्रा में सबसे ज्यादा प्रतीक्षित मुलाकात मुझे करनी थी अपने चाचाजी श्री रामशंकर द्रिवेदी जी से। कई बार वह भी कह चुके थे कि मिलना है , लेकिन जिस उद्देश्य से हम मिलना चाहते थे , उसे पूरा करने का समय नहीं मिला। मैं उनको बता चुकी थी...

✨️

दरकता दाम्पत्य


असफल वैवाहिक रिश्तों के पीछे अनेक कारण हैं । उन अनेक कारणों में सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण कारण है आज के युवाओं की निरंकुश रूप से बढ़ती हुई स्वच्छंदता की प्रवृत्ति और उनकी दिन प्रति दिन विकृत होती जाती..

✨️

अंतहीन सजगता 



अपने में टिक रहना है योग  

योग में बने रहना समाधि 

सध जाये तो मुक्ति  

मुक्ति ही ख़ुद से मिलना है 

हृदय कमल का खिलना है ..

✨️

जरूरत के समय साथ निभाने वाले लोग

नदियों ने कब मना किया था

जल नहीं देने से 

खेतों के लिए 

पशुओं के लिए 

मनुक्ख की प्यास के लिए 

जो वह बांध दी गई !

✨️

।।इति शम।।

।धन्यवाद 

पम्मी सिंह 'तृप्ति।।


मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

4445 ,,,आज का दिन अपने नाम के अनुरूप जायकेदार है

 सादर अभिवादन

आज का दिन अपने नाम के अनुरूप जायकेदार है
पाठक पढ़ने से पहले ही सावधान हो जाता है



लेखक बंधु भी एतिहात से अपना प्रस्तुति आज ही प्रस्तुति को सम्हाल कर पोस्ट करते हैं, 
उन्हें डर रहता है चोरी न हो जाए
भले ही वह चोरी की रचना को चोरी-चोरी पोस्ट कर रहा हो

1 अप्रैल से देश में लागू होंगे ये 5 बड़े बदलाव, 
हर घर हर जेब पर होगा असर

आज श्वेता जी नहीं है
शुक्रवार को मिलेगी
सादर

वर्षों पहले यू के में भी ऐसा ही हुआ था
जी भर के साथ रहने के बाद वे अपनी संतान को 
चर्च की सीढ़ियों पर रख कर घंटी बजा दिया करते थे
चर्च पूरी जिम्मेदारी लेने के बाद संतान को नया नाम देते 
और कॉंव्हेन्ट के हिसाब से जाना जाने लगा

होते हैं रचनाओं से रूबरू




मील के स्टाफ परिसर में देश के तकरीबन हर प्रांत के लोगों के होने के बावजूद वहां एक परिवार का माहौल था ! तीज-त्यौहार, सुख-दुःख सबके साझा होते थे ! बच्चों को खेल-कूद या किसी भी घर में आने-जाने की पूरी छूट तो थी पर लाड-प्यार-डांट-डपट का हक भी सभी बड़ों को था ! उन दिनों वहां के सर्वेसर्वा डागा जी थे ! जो सिर्फ मील के ही नहीं, उसके स्टाफ के परिवारों के भी संरक्षक थे ! हर कोई उन्हें परिवार के मुखिया के रूप में आदर सहित देखता था !

बात हो रही थी शिव की ! जैसा कि मैंने बताया बालकगणों के लिए वहां की हर जगह, हर क्षेत्र, निर्बाध था ! उसी के चलते एक घर में काम करते शिव को देखना हुआ। सांवले रंग का, गोल-मटोल, भोला-भाला, नाटा सा बालक! कोई ऐब नहीं, कोई लत नहीं। उससे कभी बातचीत नहीं होती थी पर जब भी मुझे दिखता उसके चेहरे पर एक बाल सुलभ मुस्कान खिंच जाती ! अच्छा लगता था वह मुझे।






बातों की रट तो है कुछ ऐसे
खुद पे भरोसा ही नहीं जैसे !

आदमी शान से कहे परवाह नहीं
औरत सोचे तो समाज जीने न दे !






मैंने सबसे पहले अपने लेखन के बारे में जानकारी प्राप्त की।‘अलाने चतुर’ ने देखते ही देखते हमारे सामने इतना परोस दिया,जितना मैंने लिखा भी नहीं होगा।उस ‘शोध-पत्र’ में कुल मिलाकर यही लिखा था कि इस नाम का लेखक उसके संज्ञान में अभी तक नहीं है।इस सूचना को पाने के लिए उसे पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाना पड़ा।जानकर दुख हुआ कि हमारे देश में शोध की दिशा में वाक़ई कुछ काम नहीं हुआ।मैंने ‘फलाने चतुर’ से यही पूछा, उसने उत्तर में चार लोगों का उल्लेख किया जो मेरी नामराशि के थे।एक की भटिंडे में पान की मशहूर दुकान है तो दूसरा दिल्ली के दरियागंज में ‘मर्दाना कमजोरी’ का अचूक इलाज करता है।मेरा तीसरा हमनाम लुधियाने में गत्ता-फैक्ट्री चलाता है और चौथा इंटरनेट मीडिया में चुटकुले सुनाता है।इन सबमें आख़िर वाला मुझे अपना लगा पर मैंने अस्वीकार कर दिया।





करती निनाद मंदिर की घंटियाँ
ईश्वर कृपा के मन से हो  वशीभूत
अर्चना और प्रार्थना के उच्चारण से
बने थे  होंठ ईश्वर के  देवदूत ।

श्रद्धा और सुकून की दौलत
समेटने को बिखरी थी अकूत ।


यह सुविधाजनक है ! जब तक अच्छा लगे साथ में रह लिए जब मन भर गया तो साथी भी बदल लिया नई पोशाक की तरह ! न शादी हुई, न बहू बने, न कोई ज़िम्मेदारी निभाई लेकिन विवाह का पूरा सुख उठा लिया ! लड़के भी खुश न शादी की, न पत्नी लाए, अलग हुए तो कोई गुज़ारा भत्ता देने की झंझट भी नहीं



*****
आज बस
सादर वंदन
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