सादर अभिवादन
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
निवेदन।
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फ़ॉलोअर
शनिवार, 6 दिसंबर 2025
4593 ..एक में दर्द है, इलाज है, धीरज है,
शुक्रवार, 5 दिसंबर 2025
4592....शेष बचा हुआ ....
.
रात्रि
का दूसरा प्रहर, निःशब्द ओस पतन । जो
पल जी लिया हमने एक संग बस वही
थे अमिट सत्य, बाक़ी महाशून्य,
आलोक स्रोत में बहते जाएं
आकाशगंगा से कहीं
दूर, देह प्राण बने
अनन्य, लेकर
अंतरतम
गुरुवार, 4 दिसंबर 2025
4591 ..डाल से टूट कर बिछड़ते हुए पत्तों को देखा है
सादर अभिवादन
बुधवार, 3 दिसंबर 2025
4590..जस दृष्टि, तस सृष्टि..
।।प्रातःवंदन।।
और हर सुबह निकलती है
एक ताज़ी वैदिक भोर की तरह
पार करती है
सदियों के अन्तराल और आपात दूरियाँ
अपने उस अर्धांग तक पहुँचने के लिए
जिसके बार बार लौटने की कथाएँ
एक देह से लिपटी हैं..!!
कुंवर नारायण
सच हैं कि
लौटने की कथाएँ एक देह से लिपटी है और इसी प्रकृति के संग संदेशात्मक सहअस्तित्व भाव के साथ नज़र डालें चुनिंदा लिंकों पर.
किस ओर चल रही है हवा देखते रहो।
किस वक़्त पे क्या क्या है हुआ देखते रहो।
पाज़ेब पहन नाचती हैं सर पे बिजलियां,
आंखों के आगे काला धुंआ देखते रहो।
✨️
खो गयी एक आवाज शून्य अंधकार सी कही l
सूखे पत्ते टूटने कगार हरे पेड़ों डाली से कही ll
उलझी पगडण्डियों सा अकेला खड़ा मौन कही l
अजनबी थे लफ्ज़ उस अल्फाज़ मुरीद से कही ll
✨️
धर्म सृष्टा हो समर्पित, कर्म ही सृष्टि हो,
नज़रों में रखिए मगर, दृष्टि अंतर्दृष्टि हो,
ऐब हमको बहुतेरे दिख जाएंगे दूसरों के,
✨️
चलते चलते,....
रुक जाते ....
एक मोड पर ये
थके थके, रुके रुके
अलसाए ...
✨️
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️
मंगलवार, 2 दिसंबर 2025
4589....गीत नहीं मरता है साथी
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
रास्ते भटक गए हैं
और ढूढ रहे हैं
अपने ही पदचिह्न
सिसक रहीं हैं जहाँ सिसकियाँ
हर कथन पर जहाँ हाबी हैं हिचकियाँ
मेरे ही सवाल
मेरे ही सामने
लेकर खड़ी हो गईं हैं
सवालों की तख्तियाँ
जवाब नदारत है
आत्मा के द्वार पर
ध्यान का हीरा जड़ें,
ईश चरणों में रखी
भाग्य रेखा ख़ुद पढ़ें !
सोमवार, 1 दिसंबर 2025
4588 ...केवल ऊंचाई ही काफ़ी नहीं होती
सादर अभिवादन
रविवार, 30 नवंबर 2025
4587 ..टहनियां बीन लाती हैं बगीचे से खाना पकाने के लिए
सादर अभिवादन
लंच के बाद जब यात्रा फिर आरम्भ हुई तो कुछ लोग अंताक्षरी खेलने लगे। एक व्यक्ति किशोर कुमार के प्रशंसक थे, उन्होंने अनेक पुराने गीत सुनाकर समां बांध दिया, तब तो सभी में एक से बढ़कर एक पुराने गाने गाने की होड़ लग गई। कन्नड़ और हिन्दी दोनों ही भाषाओं में गीतों का सिलसिला चलता रहा, तब शाम की चाय का समय हो गया था। जिसके बाद नियमित संध्या करवाई गई, जिसमें नरसिंह भगवान का कीर्तन व महामंत्र का जाप हुआ।उसके बाद माधवानंद जी ने रामायण पर एक प्रश्नोत्तरी भी करवायी। जिससे इस महाकाव्य के बारे में सभी का ज्ञान बढ़ा।इस तरह आनंद पूर्वक समय बिताते हुए हम कोलंबो पहुँच गये। आज दिन में कोलंबो दर्शन करके रात को प्रेमदासा हवाई अड्डे पहुँचना है।जहाँ से रात्रि एक बजे की उड़ान से हम भारत पहुँच जाएँगे।
शनिवार, 29 नवंबर 2025
4586 ..क्या आप जानते है विश्व की सबसे ज्यादा समृद्ध भाषा कौन सी है...
सादर अभिवादन
शुक्रवार, 28 नवंबर 2025
4585...हर मोड़ सरल नहीं होता, हर राह सीधी नहीं होती...
शीर्षक पंक्ति: आदरणीया फ़िज़ा जी की रचना से।
सादर
अभिवादन।
आइए
पढ़ते हैं शुक्रवारीय अंक की रचनाएँ-
रंगों का सम्मोहन, भीगे मौसम के आकर्षण,
हां, समाहित हो तुम, यूं मुझमें ही वर्षों....
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हर ‘फ़िज़ा’ की पहचान अलग होती है
ज़िंदगी भी कुछ ऐसी ही पहेलियों से भरी है,
हर मोड़ सरल नहीं होता, हर राह सीधी नहीं होती।
पतझड़ भी आता है अपने समय पर,
और कभी-कभी टहनियाँ वक़्त से पहले साथ छोड़ जाती हैं।
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दीदी हँसकर आती।
दिन भर झगड़े की छुट्टी कर,
बहुत भली बन जाती।
दोस्त सभी समय पर आकर,
देते शुभ बधाई।
दादी कहती बैठो बेटा,
खाओ खूब मिठाई।
उपन्यास का नाम ‘शिखंडी’ इसलिए रखा गया है क्योंकि ‘महाभारत’ महाकाव्य में शिखंडी नामक एक पात्र है जिसकी ओट
में से अर्जुन ने भीष्म पितामह पर बाण बरसाए थे और पितामह उनका उचित प्रत्युत्तर
इसलिए नहीं दे पाए क्योंकि शिखंडी पूर्व में स्त्री था एवं पितामह ऐसे व्यक्ति पर
प्रहार नहीं कर सकते थे; उपन्यास का केंद्रीय पात्र पारस शिखंडी की ही
भांति है जिसकी ओट में से वास्तविक अपराधी अपनी चालें चलता है। पारस को शिखंडी
बनाकर ही उसने अपने सम्पूर्ण षड्यंत्र का ताना-बाना बुना था।
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव




















