निवेदन।


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शनिवार, 6 दिसंबर 2025

4593 ..एक में दर्द है, इलाज है, धीरज है,

 सादर अभिवादन

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2025

4592....शेष बचा हुआ ....

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शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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आज का विचार
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अज्ञः सुखमाराध्यः सुखातारामाराध्यते विशेषज्ञः|        ज्ञानलवदुर्विदग्धम ब्रह्मापि तं न रंजयति ||

भावार्थ – अज्ञानी व्यक्ति को सहज ही समझाया जा सकता है, विशेष ज्ञानी को और भी आसानी से समझाया जा सकता है. परन्तु लेश मात्र ज्ञान पाकर ही स्वयं को विद्वान् समझने वाले गर्वोन्मत्त व्यक्ति को साक्षात् ब्रह्मा भी संतुष्ट नहीं कर सकते।
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वो भी अपनी माँ की
आँखों का तारा होगा
अपने पिता का राजदुलारा 
फटे स्वेटर में कँपकँपाते हुए
बर्फीली हवाओं की चुभन
करता नज़रअंदाज़
काँच के गिलासों में 
डालकर खौलती चाय
उड़ती भाप की लच्छियों से
बुनता गरम ख़्वाब
उसके मासूम गाल पर उभरी
मौसम की खुरदरी लकीर
देखकर सोचती हूँ
दिसम्बर! तुम यूँ न क़हर बरपाया करो।
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आज की रचनाऍं- 


रात्रि
का दूसरा प्रहर, निःशब्द ओस पतन । जो
पल जी लिया हमने एक संग बस वही
थे अमिट सत्य, बाक़ी महाशून्य,
आलोक स्रोत में बहते जाएं
आकाशगंगा से कहीं
दूर, देह प्राण बने
अनन्य, लेकर
अंतरतम


वो ज़िंदगी जिसमें सपने
साइकिल के पैडल के साथ भागते थे,
और ये ज़िंदगी,
जहाँ कारें हैं, पर मंज़िल नहीं।

शायद हम बेहतर जी रहे हैं,
पर महसूस कम कर रहे हैं।
वो पुराने दिन सादे थे,
पर सुकूनदार,
ये आज के दिन चमकदार हैं,
पर थके हुए।





ये क्या है?
ये रोम-रोम में बहती गंग है,
ये मौन के मुख से फूटा गीत अभंग है।
ये दो पल की ओस, सदियों का सागर,
ये तुम्हारे होने का अनूठा अहसास है।



पारंपरिक मान्यता के अनुसार यह:
- आँखों की रोशनी बढ़ाने में सहायक
- डायबिटीज नियंत्रित करने वाला
- पाचन तंत्र को मजबूत करने वाला
- त्वचा रोगों में लाभकारी
- ज्वर और सूजन कम करने वाला
- एंटीबैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से युक्त है




बहू - " मृत व्यक्ति के परिवार द्वारा तयशुदा समय-सीमा में इन लोगों को सूचित करने पर ये लोग मृत व्यक्ति के दिए गए पते पर आकर बहुत ही आदरपूर्वक मृत देह ले जाते हैं। मृतक के उपयोगी अंगों को बाद में कई ज़रूरतमंद लोगों को शल्य चिकित्सा द्वारा लगा कर उन्हें नया जीवन प्रदान किए जाते हैं। जैसे .. आँखें, 'लिवर', 'किडनी'.. और भी बहुत कुछ और .. और तो और .. शेष बचा हुआ कंकाल 'मेडिकल स्टूडेंटस्' की पढ़ाई के काम में आ जाता है। "



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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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गुरुवार, 4 दिसंबर 2025

4591 ..डाल से टूट कर बिछड़ते हुए पत्तों को देखा है

 सादर अभिवादन

बुधवार, 3 दिसंबर 2025

4590..जस दृष्टि, तस सृष्टि..

 ।।प्रातःवंदन।।

और हर सुबह निकलती है

एक ताज़ी वैदिक भोर की तरह

पार करती है

सदियों के अन्तराल और आपात दूरियाँ

अपने उस अर्धांग तक पहुँचने के लिए

जिसके बार बार लौटने की कथाएँ

एक देह से लिपटी हैं..!!

कुंवर नारायण

सच हैं कि 

लौटने की कथाएँ एक देह से लिपटी है और इसी प्रकृति के संग संदेशात्मक सहअस्तित्व भाव के साथ नज़र डालें चुनिंदा लिंकों पर.

देखते रहो...

किस ओर चल रही है हवा देखते रहो।

किस वक़्त पे क्या क्या है हुआ देखते रहो। 


पाज़ेब पहन नाचती हैं सर पे बिजलियां,

आंखों के आगे काला धुंआ देखते रहो।

✨️

एक आवाज

 खो गयी एक आवाज शून्य अंधकार सी कही l

सूखे पत्ते टूटने कगार हरे पेड़ों डाली से कही ll

उलझी पगडण्डियों सा अकेला खड़ा मौन कही l

अजनबी थे लफ्ज़ उस अल्फाज़ मुरीद से कही ll

✨️

जस दृष्टि, तस सृष्टि !

धर्म सृष्टा हो समर्पित, कर्म ही सृष्टि हो,

नज़रों में रखिए मगर, दृष्टि अंतर्दृष्टि हो,

ऐब हमको बहुतेरे दिख जाएंगे दूसरों के, 

✨️

सुस्त कदम मेरे....

चलते चलते,....

रुक जाते ....

एक मोड पर ये 

थके थके, रुके रुके

अलसाए ...

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️

मंगलवार, 2 दिसंबर 2025

4589....गीत नहीं मरता है साथी

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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शीत बयार 
सिहराये पोर-पोर
धरती को छू-छूकर
जगाये कलियों में खुमार
बेचैन भँवरों की फरियाद सुन
दिसम्बर मुस्कुराया।

चाँदनी शबनमी
निशा आँचल में झरती 
बर्फीला चाँद पूछे
रेशमी प्रीत की कहानी
मोरपंखी एहसास जगाकर
दिसम्बर मुस्कुराया।
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आज की रचनाऍं-


रास्ते भटक गए हैं

और ढूढ रहे हैं 

अपने ही पदचिह्न

सिसक रहीं हैं जहाँ सिसकियाँ

हर कथन पर जहाँ हाबी हैं हिचकियाँ

 

मेरे ही सवाल

मेरे ही सामने

लेकर खड़ी हो गईं हैं

सवालों की तख्तियाँ

जवाब नदारत है

 




खेतों में ,फूलों में 
कोहबर 
दालानों में हँसता है ,
गीत यही 
गोकुल ,बरसाने 
वृन्दावन में बसता है , 
हर मौसम की 
मार नदी के 
मछुआरों सा सहता है |




आत्मा के द्वार पर 

ध्यान का हीरा जड़ें,

ईश चरणों  में रखी  

भाग्य रेखा ख़ुद पढ़ें !




धीरे-धीरे यह आदत फैलने लगी। अभय ने इसे नाम दिया—“रुकने का साहस अभियान।” उसने पोस्टर बनवाए, जिन पर लिखा था: “अगर ट्रैफिक सिग्नल नहीं है, तो इंसानियत ही सिग्नल बने।”

कुछ लोग हँसे, कुछ ने हॉर्न बजाया, लेकिन कई ने सीखा। राहगीरों के चेहरों पर भरोसा लौटने लगा। बच्चे अब डरते नहीं थे, महिलाएँ अब ठिठकती नहीं थीं।



कब से साफ सफाई से
बहुत साफ सुथरा सा लिख रहे कुछ
कुछ लिखा रहे हैं साफ कूड़ा कुछ 
कुछ सिखा रहे हैं सरताज कूड़ा 
कुछ पहले बेतरतीब लिख फ़ैला रहे थे
 जो कुछ घेर कर बाड़े में उनको
 सबक सीखा रहे हैं कुछ



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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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सोमवार, 1 दिसंबर 2025

4588 ...केवल ऊंचाई ही काफ़ी नहीं होती

 सादर अभिवादन

महीना बदल गया
सच्चाई यह है कि
वर्ष का समापन महीना

केवल ऊंचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं, मजबूरी है.

चलिए आगे बढ़ें




अगर तुम्हें औरत में आज भी
‘चीज़, खिलौना या वस्तु’  नजर आती है,
तो तुम्हे ज़रूरत है -
अपनी सोच का पोस्टमॉर्टम करने की।





आए हैं आप शायद
दिखलाने आईना मुझे
इस भरी महफ़िल में,
पर दिखेगा केवल
मुखौटा भर मेरा,
जान नहीं पायेंगे आप
बात जो है अभी मेरे दिल में।




हमी से की मोहब्बत हमी से शिकायत है
चलो छोड़ो ये तो तुम्हारी पुरानी आदत है

तुम वादा तो करो हम इंतज़ार ही कर लेंगे
कई दिनों से मेरे अंदर कुछ सुगबुगाहट है






प्रलय ले आई, छम-छम करती बूंदें,
गीत, कर उठे थे नाद,
डाली से, अधूरी थी हर संवाद,
बस, बह चली वो पात!


आज बस अब चलती हूँ
सादर

वर्ष का समापन महीना
आज रात 08 बजे से 10 मिनट तक




रविवार, 30 नवंबर 2025

4587 ..टहनियां बीन लाती हैं बगीचे से खाना पकाने के लिए

 सादर अभिवादन

शनिवार, 29 नवंबर 2025

4586 ..क्या आप जानते है विश्व की सबसे ज्यादा समृद्ध भाषा कौन सी है...

 सादर अभिवादन

शुक्रवार, 28 नवंबर 2025

4585...हर मोड़ सरल नहीं होता, हर राह सीधी नहीं होती...

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीया फ़िज़ा जी  की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

आइए पढ़ते हैं शुक्रवारीय अंक की रचनाएँ- 

वर्ष 32 

कुछ है कारण, बादल बन आए ये सावन,
रंगों का सम्मोहन, भीगे मौसम के आकर्षण,
खिलते, अगहन में पीले-पीले सरसों,
भीगे, फागुन की आहट,
चाहत के, ये अनगिन रंग वर्षों!
हां, समाहित हो तुम, यूं मुझमें ही वर्षों....

*****

हर फ़िज़ाकी पहचान अलग होती है

ज़िंदगी भी कुछ ऐसी ही पहेलियों से भरी है,

हर मोड़ सरल नहीं होता, हर राह सीधी नहीं होती।

पतझड़ भी आता है अपने समय पर,

और कभी-कभी टहनियाँ वक़्त से पहले साथ छोड़ जाती हैं।

*****

जन्मदिन का बाल गीत

गुब्बारों से हॉल सजाती,
दीदी हँसकर आती।
दिन भर झगड़े की छुट्टी कर,
बहुत भली बन जाती।
दोस्त सभी समय पर आकर,
देते शुभ बधाई।
दादी कहती बैठो बेटा,
खाओ खूब मिठाई।

*****

वेद प्रकाश शर्मा और शिखंडी

उपन्यास का नाम शिखंडी इसलिए रखा गया है क्योंकि महाभारत महाकाव्य में शिखंडी नामक एक पात्र है जिसकी ओट में से अर्जुन ने भीष्म पितामह पर बाण बरसाए थे और पितामह उनका उचित प्रत्युत्तर इसलिए नहीं दे पाए क्योंकि शिखंडी पूर्व में स्त्री था एवं पितामह ऐसे व्यक्ति पर प्रहार नहीं कर सकते थे; उपन्यास का केंद्रीय पात्र पारस शिखंडी की ही भांति है जिसकी ओट में से वास्तविक अपराधी अपनी चालें चलता है। पारस को शिखंडी बनाकर ही उसने अपने सम्पूर्ण षड्यंत्र का ताना-बाना बुना था।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


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