निवेदन।


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रविवार, 14 दिसंबर 2025

4601...सच तो यह है कि...

रविवारीय अंक में
आपसभी का हार्दिक अभिनन्दन।
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व्यस्ताओं की चहलकदमी में

सोंधी ख़ुशबुएँ जाग रही थीं 

किसी की स्मृति में 

शब्द बौराए हुए उड़े जा रहे थे 

ठंडी हो रही साँझ के लिए

गर्माहट की ललक में 

धूप की कतरन चुनती हुई

अंधेरों में खो जाती हूँ...


आज की रचनाऍं-



मैं कुछ लिखना चाहता हूँ,
जो मौन का स्पन्दन हो,
शब्दों से पहले जो बोले,
पर कुछ लिख नहीं पा रहा।

मैं कुछ लिखना चाहता हूँ,
आंसुओं की सुर्ख स्याही से,
गालों पर लिखी कविता सा,
पर कुछ लिख नहीं पा रहा।



सच तो यह है कि
आईना हर रोज़
तुम्हारा इंतज़ार करता है
तुम्हारी आँखों के आईने में
खुद को देखने के लिए।



जीवन के प्रति सुख और दुख में श्रद्धावान बने रहना आपसे सीखा। अपनी संतान के प्रति कठोर और तरल समानांतर चलते हुए बने रहना सीखा। त्याग और परिश्रम से डरना नहीं। स्वाभिमान कायम रहे, विचारवान बने रहना सीखा। आपके आगे मेरा हर तर्क, हर शिकायत, हर अहं मौन हो जाता था और है। आप बच्चे जितनी सरल और विद्वानों जितनी कठोर थीं।


कंडाली रे कंडाली, अमृत का प्याला, ,
लेमन ग्रास तुलसी संग, ग्रीन टी निराला।
पहाड़ी की शान है, गढ़वाल का गीत,
कुमाऊँनी सिसूण संग, जुड़ता हर प्रीत।
गर्मी में नाजुक है, पानी से सँभालो,
बरसात में खिल उठे, बगिया को सँवारो।

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।

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शनिवार, 13 दिसंबर 2025

4600...देखती हूॅं उस वक़्त को...

शनिवारीय अंक में
आपसभी का हार्दिक अभिनन्दन।
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रूखी,सर्द हवाओं से सहमी ,काली-भूरी और सड़क की धूल से धूसर पड़ी पत्तियों वाले उस पेड़ पर झूमते बैंगनी रंग के कचनार दिसंबर की उदासीनता पर हौले से थपकी देता हैं...


समय के नाजुक डोर से

मोती बेआवाज़ फिसल रहा हैं

जाने अनजाने गुज़रते लम्हों पर

आवरण इक धुंधला सा चढ़ रहा है

तारीखों के आख़िरी दरख़्त से 

जर्द दिसंबर टूटने को मचल रहा है।


क्यारियों में खिलते गुलाब, गुलदाऊदी और गेंदे की फूटती खुशबू .... अदरक ,इलायची की तुर्श या मसाले वाली करारी चाय से उठती भाप और हथेलियों को आराम देते कप के गुनगुनेपन के बावजूद...

दिसंबर उदास करता है....





और तुम—
मुरादाबाद, गाज़ियाबाद
इतना मत इतराओ,
तुम्हारा हश्र भी
एक दिन यही होना है।
संस्कारित नाम मिलते ही
तुम्हारा पुराना नाम
किसी फाइल में
धीरे से दबा दिया जाएगा।



आँखों के नीचे
उभर आई महीन रेखाएँ
कभी दुलराती हैं मुझे,
कभी सच का पानी बनकर
आँखें साफ कर जाती हैं


ठि‍ठकती हूं, देखती हूं उस वक्‍त को
जो जाने कब, कैसे 
गुजर गया, अपनी छाप छोड़कर 



सीली लकड़ी
बुझ गया अलाव
जल उठा नसीब !

आज भी ‘हल्कू’
बिताते सड़क पे
पूस की ठण्डी रात


योग और आप


प्रतिदिन   के   कार्यों  में  से  कुछ  वक्त  निकालकर   योग  और   ध्यान   अवश्य  करना  चाहिए  ।   आपकी  बहुत  सी  अनसुलझी  समस्याओं  से  छुटकारा  पाने  व   तनाव  चिंता  से  मुक्त होने  में  योगचिकित्सा  सहायक  सिध्द   होती   है ।  आज  की  तकनीकी  भागम-भाग  भरी   जिंदगी  में  खुशहाल  रहने  एवं  अपने  चारों  ओर  एक पाॅजिटिविटी  बनाए   रखने  में  योग  और  ध्यान  काफी असरकारक  है  । 

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।

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शुक्रवार, 12 दिसंबर 2025

4599...हम सब टाइम ट्रेवलर हैं

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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आज की रचनाऍं- 


स्टेशन आया
लोग उतरे, लोग चढ़े,
और आइंस्टीन ने खिड़की से झाँककर कहा,
देखो… हम सब टाइम-ट्रैवलर हैं
फ़र्क बस इतना है कि
कोई अपने अतीत में अटका है,
कोई भविष्य की चिंता ढोता है,
और कोई वर्तमान को
दोनों मुट्ठियों में पकड़े
खड़ा रह जाता है।




अब जब वह नहीं है,
तो पता चला है 
कि वह थी,
पर उसे कभी पता नहीं चलेगा 
कि हमें पता चल गया है 
कि वह थी। 



ग़फ़लत में अधूरा रह गया इश्क़ का फ़साना,
हम समझते रहे, वो हमसे ख़फ़ा नहीं होता।।

जानकर दूरियाँ बढ़ा लीं होंगी उसने,
वरना यूँ ही तो वो जुदा नहीं होता।।


 ईश्वर का एक विशेषण । उ॰—प्रलख अरूप अबरन सो करता । वह सबसों सब वहि सों बरता ।-जायसी (शब्द॰) । मुहा॰—अलख जगाना=(१) पुकारकर परमात्मा का स्मरण करना या कराना । (२) परमात्माके नाम पर भिक्षा माँगना । यौ॰—अलखधारी । अलखनामी । अलखनिरंजन । अलखपुरुष= ईश्वर । अलखमंव=निर्गुण संत संप्रदाय में ईश्वर मंत्र ।


लोगों में अवॉर्ड्स और पुरस्कार पाने की होड़ जब देखती हूँ तो मन में हंसती हूँ।अपनी चालीस साल की जॉब को अच्छी तरह से निभा सकी। बहुत सम्मान और स्टुडेंट्स का प्यार पाया। अपने पढ़ाए बच्चों को अच्छी जगह सैटल्ड हुआ , अच्छा आर्टिस्ट बने देखती हूँ तो परम सन्तोष होता है। बच्चों की परवरिश पति , परिवार के सहयोग व ईश्वर कृपा से सन्तोषजनक रूप से पूरी कर सकी। उनके प्रति भी कर्तव्य पूरे कर मुक्त हुई। और असाध्य भीषण बीमारी को आस्था व विश्वास की उंगली थाम पार कर सकी , तो लगता है जैसे दुनियां के सारे अवॉर्ड्स मैंने जीत लिए हैं…सोते समय एक गहरी सन्तोष की साँस लेकर सोचती हूँ ….और क्या चाहिए ? 

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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गुरुवार, 11 दिसंबर 2025

4598....दिल का बोझ उतार सको

 गुरूवारीय अंक में
आपसभी का हार्दिक अभिनन्दन।
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दिसंबर,

वर्ष के कैलेंडर पर

आख़िरी पन्ना है;

सर्र-सर्र सीतलहरी की आड़

सुनहरी खिली हुई है धूप

टहनी से टूटकर

तने पर अटका हुआ पीला पत्ता,

सिकुड़े दिन और कंपकंपाती रात

किसी के लिए रूई की गर्माहट

किसी के लिए फटी हुई चादर

किसी के कटोरे में ठंडा भात है

किसी के गर्म दूध  

एक तारीख़ से दूसरे की यात्रा  

निर्विघ्न,अनवरत

क्या फर्क पड़ता है

दिसंबर हो या जनवरी।

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आज की रचनाऍं- 

वात्सल्य छवि अर्पण निखरी थी जिस मातृत्व छाँव
 को l
ढ़ल चिता राख तर्पण मिल गयी गंगा चरणों धाम
 को ll
मोह काया दर्पण भूल गया उस परिचित सजी बारात 
को l
संग कफन जनाजे जब वो निकली सज सबे बारात 
को ll




कुछ ही सब सुन पाते हैं 
कुछ ही सब कह पाते हैं,
सुनकर कुछ भी जज न करना,
तसल्ली से कह भर देना,
दिल का बोझ उतार सको तो 
ये कंधा हर बार मिलेगा,

रियल कश्मीर फुटबॉल क्लब



'रियल कश्मीर फुटबॉल क्लब' उस दरगुजर होती कश्मीर की खूबसूरती को, उस ख़ुशबू को सहेजता है। 8 एपिसोड की यह सीरीज देख लीजिये। देख लीजिये कि कश्मीर के नाम पर नफ़रत का समान बहुत परोसा गया है,  लेकिन यह प्यार है। जब-जब लगता है कि अरे, यह तो सीरीज है, ऐसा होता भी काश, तब तब ध्यान आता है कि यह सच्ची कहानी पर आधारित है। यानि हैं कुछ दीवाने लोग जो नफरत की आंधियों में मोहब्बत का दिया जलाए हुए हैं।



रामजन्म भूमि परिक्रमा मार्ग पर बनने वाले मंदिर, वहां बनी गिलहरी की मूर्ति भी अत्यंत सुंदर है।अब हम वहां से सरयू घाट के लिए निकल पड़े थे। वहां पर कार्ट चल रहीं थीं और ई रिक्शा व आटो की भी कमी नहीं थी। यहां भी नवीनीकरण का कार्य चल रहा था।सरयू की कल-कल धारा निर्बाध गति से बह रही थी। बहुत सुंदर है सरयू घाट...




इन सारी बातों के अलावा शादी विवाह में इतना दिखावा और फिजूलखर्ची का चलन हो गया कि आम औसत आमदनी के व्यक्ति के लिए ऐसी आडम्बरपूर्ण शादियाँ करना बिलकुल बस के बाहर हो गया ! लेकिन बेटी के ससुराल पक्ष के लोगों की डिमांड्स पूरी करने के लिए उन्हें इस तकलीफ से भी गुज़रना पड़ता है जो कि बहुत ही शर्मनाक एवं कष्टप्रद अनुभव होता है !


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आज के लिए इतना ही
मिलते है अगले अंक में।
सादर आभार।



बुधवार, 10 दिसंबर 2025

4597..जब रोशनी उतरती है..,

।।प्रातःवंदन।।

" निर्धन जनता का शोषण है

कहकर आप हँसे

लोकतंत्र का अंतिम क्षण है

कहकर आप हँसे

सब के सब हैं भ्रष्टाचारी

कह कर आप हँसे

चारों ओर बड़ी लाचारी

कहकर आप हँसे

कितने आप सुरक्षित होंगे मैं सोचने लगा

सहसा मुझे अकेला पाकर फिर से आप हँसे..!!"

विरले शब्द शिल्पी,निडर आलोचक,रघुवीर सहाय (9 दिसंबर 1929- 30 दिसंबर 1990) जन्म जयंती 🙏🌸आज के प्रस्तुतिकरण को बढाते हुए..

नवप्रभात का करते स्वागत

बीती रजनी की अलस छोड़

जीवन संघर्ष से अमृत खोज

करुणा प्रेम दया का सोता

नदियों में बहता गंगाजल ..

✨️

आप तो ऐसे न थे – लघुकथा


शोभना बड़े पशोपेश में थी ! सोमवार को उसके मोहल्ले की किटी पार्टी थी ! इस बार सारी महिलाओं ने मिल कर ड्रेस कोड रख लिया था ! किटी के दिन सबको लाल बॉर्डर की नीली साड़ी पहननी थी !

✨️

युवा नींद, क्वांरे सपनों को,

बटमारों ने चुन-चुन मारा।

अब केवल रतजगा हमारा।

मेरे सुख-दुख नहीं बांटना,

मेरी उन्नति नहीं चाहना,

कष्ट पड़े तो दूर भागना,

✨️

परिदृश्य

हैरत हुई ना किश्तों उधार मिली यादों दरारों में l

इल्तिजा ठहरी नहीं चहरे शबनमी बूँदों दरारों में ll


खोई सलवटें सूने आसमाँ तुरपाई गलियारों में l

छुपा गयी गुस्ताखियां आँचल पलकों सायों में ll

✨️

प्रतीक्षा एक तीर्थ 


कोई भी साया

बस यूँ ही देवद्वार तक नहीं जाता

भटकन उसे भी

खारी लगने लगती है।

मन की मरुस्थली देह पर

जब बहुत दिनों तक

कोई रोशनी नहीं उतरती,

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️

मंगलवार, 9 दिसंबर 2025

4596....कभी-कभी लगता है ...

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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पंछी नदियाँ पवन के झोंके

कोई सरहद न इन्हें रोके...


 आसमान में बेफ्रिक, पंख पसारे उड़ते पंछियों को देखकर

 एक विशेष आकर्षण महसूस होता है। 

 मेरे घर के आँगन में अमरूद के पेड़ पर  गौरेया, मैना,कबूतर, कौआ, बुलबुल सामान्यतः भोर से ही कलरव करते कच्चे-पक्के अमरूद के फल कुतर-कुतर कर आँगन में गिराते रहते थे और मैं सर्दियों की गुनगुनी धूप में लेटी गिनती रहती नीली,हरी,पीली,भूरी या काली-सफेद,नन्हीं या थोड़ी बड़ी पंखों वाली कौन सी चिड़िया आयी। छुटपन की उन सारी चिड़ियों की तस्वीरें मन से आजतक ज़रा भी धुंधली नहीं हुई।

अब शहर में कहाँ वो छाँव और कहाँ वो पक्षी...।


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आज की रचनाऍं- 

पर कहाँ जानता है वह,  
धूप तो चारों ओर घिरी है  
सफेद परिधान वाले आखेटकों से—  
जो किरणों को जाल में कसकर  
अपने महलों की ठंडी दीवारों में  
कैद कर लेते हैं।  


धूप अब जलाने लगी है


कभी-कभी लगता है,
धरती अब बोलना चाहती है,
कहना चाहती है कि “बस करो,”
पर हम मीटिंग्स, डेडलाइन्स,
और प्रॉफिट ग्राफ़्स में इतने उलझे हैं
कि उसकी खामोशी भी
हमारे लिए बस background noise बन गई है



सन्देह के घेरे में जज्बात रहे
लम्हे अपने,अपने न रहे
फरियादी फरियाद करे किससे
जब कातिल ही जज की ......
कुर्सी पर आसीन  रहे.... 




शोभना के पास न तो नीले रंग की कोई साड़ी ही थी न कोई सूट ! उसने तय कर लिया कि वह पार्टी में नहीं जाएगी ! लेकिन उसका मन बहुत उदास था !
नीलेश ने उसका अनमनापन भाँप लिया, “क्या बात है शोभना कुछ परेशान सी हो !”
“नहीं तो ! ऐसी तो कोई बात नहीं है !” मुँह फेर कर शोभना ने बात टाल दी !




उनका पहला सुझाव है कि रात को जब हम सोते हैं, तो हमारा सात-आठ घंटों का व्रत अपनेआप हो जाता है। वह कहते हैं कि बजाय सुबह-सुबह नाश्ता करने के, हमें उसी व्रत को कुछ घंटे और बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिये। यानि आप सुबह नाश्ता करने की जगह पर दस-ग्यारह बजे नाश्ता कीजिये। उनके अनुसार, केवल इतने व्रत से शरीर की इन्सुलिन बेहतर काम करने लगती है और ब्लड शुगर कम होने लगती है। वह कहते हैं कि अगर आप को सुबह जल्दी चाय-कॉफी की आदत है और उसके बिना नहीं रह सकते तो आप उन्हें बिना चीनी और दूध के पीजिये।

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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सोमवार, 8 दिसंबर 2025

4595 ..तैरती नींद में, धुंधली सी, लकीरें, फिर उभर आई, वही भूली सी तस्वीरें

रविवार, 7 दिसंबर 2025

4594 ...माई ! आज कितनी भीख मिली ?बुढ़िया ने जवाब दिया -' सुबह से आज कुछ नहीं मिला बेटा !' कि बेटे के रहते मां भीख मांग रही है।एक रुपैया बुढ़िया के हाथ पर रख कर बोले,

 सादर अभिवादन



एक बार हिंदी के महान साहित्यकार सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी रॉयल्टी के एक हजार रुपये लेकर, इक्के में बैठकर, इलाहाबाद की एक सड़क पर चले जा रहे थे।रास्ते में सड़क के किनारे एक बूढ़ी भिखारिन बैठी हुई थी। ढलती उम्र में भी वह हाथ पसार कर भीख मांग रही थी।उसे देखकर निराला जी ने इक्का रुकवाया और उनके पास गए, और पूछा - ' माई ! आज कितनी भीख मिली ?बुढ़िया ने जवाब दिया -' सुबह से आज कुछ नहीं मिला बेटा !'बुढ़िया के इस उत्तर को सुनकर निराला जी सोच में पड़ गए कि बेटे के रहते मां भीख मांग रही है।एक रुपैया बुढ़िया के हाथ पर रख कर बोले, ' मां अब कितने दिन भीख नहीं मांगोगी ?तीन दिन बेटा ।दस रुपये दे दूं तो…?बीस या पच्चीस दिन ।सौ रुपये दे दूं तो…?चार-पांच महीने तक !चिलचिलाती धूप में सड़क के किनारे मां मांगती गई, बेटा देता गया।इक्के वाला हक्का-बक्का रह गया।बेटे की जेब हल्की होती गई और मां के भीख न मांगने की अवधि बढ़ती चली गई।जब निराला जी ने रुपयों की अंतिम ढेरी भी बुढ़िया की झोली में डाल दी तो बुढ़िया खुशी से चीख उठी और कहने लगी, "अब कभी भी नहीं मांगूंगी बेटा, कभी नहीं।"निराला जी ने संतोष की सांस ली। बुढ़िया के पैर छुए । बुढ़िया ने उन्हें ढेरों आशीष और दुआएं दी ।निराला जी इक्के में बैठकर अपने घर की राह पर चल दिए। उनके चेहरे पर एक अजीब संतोष व फक्कड़ता का भाव था।

आगे पढ़ें

नाम में बहुत कुछ रखा है



संयोगवश, कांग्रेस के प्रतिनिधित्व वाले इस इलाके में 9 और 11 दिसंबर को होने वाले केरल के पंचायत चुनावों में कांग्रेस के सबसे बड़े नेताओं में से एक श्रीमती सोनिया गाँधी का नामधारी, BJP का उम्मीदवार बन, सीधे कांग्रेस के ही उम्मीदवार से मुकाबला कर रहा है। 

अब देखने वाली रोचक बात यह है कि क्या सोनिया गांधी का नाम BJP के लिए फायदेमंद साबित होगा या वोटरों को सिर्फ भ्रमित करेगा ! परिणाम जो भी हो पर इस चुनाव ने एक ऐसे नाटिका का मंचन कर दिया है जिसके रिजल्ट का सभी को इंतजार रहेगा !




चार किताबें पढ़ कर हम-तुम ,
क्या विरले हो जाएँगे

मिटा न पाए मन का अँधेरा,
तो क्या उजले हो जाएँगे





कितना अच्छा लगता है
जब वह कहती है
मैं बात नहीं कर सकती
मन तो बहुत करता है
पर कोई न कोई हमेशा साथ होता है



पहाड़ी  ढलान   पर   से
सरकता   सांझ   का   वक्त
गुलाबी  लाल  से  सुरमाई बादल
सूरज  का   गोलाकार   रुप
प्रत्यक्ष  सीधे   अब  जाते - जाते
ज्यों  आँखें  मीचे  गीत  कोई
पहाड़ी  गाता  धुन  वो  जीवन
की   सुनाता    बंद  तरानों





हमें नमो घाट जाना था।इसका निर्माण अभी हुआ है।गंगा के घाटों में नमो घाट सबसे नवीनतम है।करीब दो घंटे बाद हम नमो घाट पर थे। अद्भुत,अद्वितीय।
नमो घाट पर हर सुविधा मौजूद थीं।टैक्सी वाले भैया ने हमें बताया कि कुछ साल पहले यहां झुग्गी-झोपड़ी वालों का निवास था। गंगा मां के निर्मलीकरण और सौंदर्यीकरण के दौरान उनका पुनर्वास कहीं ओर कराया गया और अब यह स्थान सबसे सुंदर और खुला-खुला है। यहां गंगा मां को नमन करते हुए हाथ बने हैं।

आज बस
सादर वंदंन




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