रंग सात ही क्यों ? कम रंगों के मिश्रण से भी परिणाम सुखद हो सकते हैं ।
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
निवेदन।
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रविवार, 2 फ़रवरी 2025
४३८७ ...सिर से पैर तक फूल-फूल हो गई उसकी देह
रंग सात ही क्यों ? कम रंगों के मिश्रण से भी परिणाम सुखद हो सकते हैं ।
शनिवार, 1 फ़रवरी 2025
4386 ..मासोत्तम मास फरवरी ,तेरा स्वागत है
सादर अभिवादन
साल मे अभी और 333 दिन बाकी है
शुक्रवार, 31 जनवरी 2025
4385...शांति के लिए केवल आना
जकड़े हैं सामाजिक मानदंड से
आडम्बर और खोकली दुनिया में
तभी तो हम इंसान कहलाये हैं !
गुरुवार, 30 जनवरी 2025
4384...जीवन कितने लोगों के श्रम से चलता है...
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच चुनिंदा रचनाएँ-
अत्यधिक रगड़ने पर चंदन से भी आग पैदा
हो जाती है
कभी वह उसे कुछ देती है तो
मुस्कुरा कर स्वीकारता है और
हरे कोट की जेब में रख लेता है
जीवन कितने लोगों के
श्रम से चलता है!
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ब्रह्मा ने इस दिन सृष्टि
की रचना की थी -
मौनी अमावस्या के दिन पवित्र नदियों, विशेष रूप से गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान का विशेष
महत्व है। यह दिन प्रयागराज में कुंभ मेले के मुख्य स्नान पर्वों में से एक है। इस दिन
लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान करते हैं और पवित्र जल में डुबकी लगाकर अपने पापों
से मुक्ति पाने की कामना करते हैं। यह विश्वास है कि इस दिन गंगा स्नान से सभी
पापों का नाश होता है और आत्मा की शुद्धि होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से मोक्ष
प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
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कुछ पूछोगे तो कुछ नहीं बोलूँगा..
तुम अपने रास्ते चलो
में अपनी राहे बनाता हूँ
थोड़ी देर हस खेल के
फिर अपने शहर चले जाता हूँ
जो था कल मैं आज भी वही रहूँगा
कुछ पूछोगे तो कुछ नहीं बोलूँगा..
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बुधवार, 29 जनवरी 2025
4383..`यही सच है’
।।प्रातःवंदन।।
चढ़ रहा है सूर्य उधर, चाँद इधर ढल रहा
झर रही है रात यहाँ, प्रात वहाँ खिल रहा
जी रही है एक साँस, एक साँस मर रही
इसलिए मिलन-विरह-विहान में !
इक दिया जला रही है ज़िन्दगी
इक दिया बुझा रही है ज़िन्दगी !
गोपालदास 'नीरज'
हर सुबह एक नई शुरुआत ही है...तो बढते है नए लिंको के साथ...✍️
कुछ पूछोगे तो कुछ नहीं बोलूँगा
राज़ी नहीं भी हूँऊँगा तो भी हाँ ही बोलूँगा
ये मैंने सोच लिया है
तुम्हारी महफ़िल में ये उनमान लिया है
थक गया हूँ मैं इन तक़रीरों से
वक़्त की इस फ़िज़ूल खर्ची से,✍️
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गंगा में डुबकी लगा
नहीं चाहता हूं धो लेना
अपने हिस्से के पाप को
बजा के घंटी, लगा के टीका
कम भी नहीं करना चाहता हूं उसे..
✨️
मंगलवार, 28 जनवरी 2025
4382...सरापा गुलमुहर है ज़िंदगी
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िए
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए
ग़लतियाँ बाबर की थी; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गए सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए
छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ़
दोस्त मेरे मजहबी नग़मात को मत छेड़िए
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तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आँकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है
उधर जमहूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है
लगी है होड़-सी देखो अमीरी औ' गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है
तुम्हारी मेज चाँदी की तुम्हारे ज़ाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है
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आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है जिंदगी
हम ग़रीबों की नज़र में इक क़हर है जिंदगी
भुखमरी की धूप में कुम्हला गई अस्मत की बेल
मौत के लमहात से भी तल्ख़तर है जिंदगी
डाल पर मज़हब की पैहम खिल रहे दंगों के फूल
ख़्वाब के साए में फिर भी बेख़बर है ज़िंदगी
रोशनी की लाश से अब तक जिना करते रहे
ये वहम पाले हुए शम्सो-क़मर है ज़िंदगी
दफ़्न होता है जहाँ आ कर नई पीढ़ी का प्यार
शहर की गलियों का वो गंदा असर है ज़िंदगी
मिलते हैं अगले अंक में।
सोमवार, 27 जनवरी 2025
4381 ...सखि वसन्त आया भरा हर्ष वन के मन नवोत्कर्ष छाया
सादर अभिवादन