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बुधवार, 17 मई 2023

3760...चलिए, बाजार तक चलें..

 ।। प्रातः वंदन।।

शब्द जो तिरस्कृत हैं
अर्थ जो बहिष्कृत हैं
लाओ,हम उन्हें नये गीतों में ढाल दें।
मय जब बदलता है
मोम ही नहीं केवल
लौह भी पिघलता है।
बालस्वरूप राही
लिजिए आज की पेशकश में शामिल हैं..✍️

 कुछ गुनाह हो जाएं तसल्ली होगी

वरना तो जिंदगी कोई खिल्ली होगी  ।


अपने हुक्मरानों से सवाल नहीं करती 

कौम यकीनन वो बड़ी निठल्ली होगी ।

❄️


चलिए, बाजार तक चलें

एक  अदद
शब्द के लिए
चलिए, 
बाजार तक चलें
मौसम का
हाल पूछने -
ताज़ा अख़बार तक चलें ।
❄️


यादों से तेरी यूँ हाथ छुड़ाता हूँ.
एड़ी से इक सिगरेट रोज़ बुझाता हूँ.

मुमकिन है मेहमान ही बन कर आ जाएँ,
रोटी का इक पेड़ा रोज़ गिराता हूँ.
❄️

जीवन के दोराहे पर


जीवन के दोराहे पर

लक्ष्य तक मुश्किल पहुंचना

आंख में अंबुद बसा है

कैसे संभव है किलकना..

❄️

एक #कटोरा #पानी ,"मुट्ठी भर #अनाज , 


एक #कटोरा #पानी ,

और "मुट्ठी भर #अनाज ,

#आंगन के किसी कौने में ,

रक्खा क्या फिर आज‌..

।। इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️


8 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर हलचल … आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए - दिगम्बर नासवा

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह!सुन्दर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय ,
    मेरी रचना "एक #कटोरा #पानी , "मुट्ठी भर #अनाज ," को आज के इस बहुमूल्य मंच में स्थान देने के लिए बहुत धन्यवाद ।
    सभी सम्मिलित रचनाएं बहुत ही उम्दा है , सभी आदरणीय को बहुत बधाइयां ।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं

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