निवेदन।


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मंगलवार, 11 मार्च 2025

4424...फागुन की आहट...

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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बंद मुद्दों के पिटारे, ज़िंदा हैं सिसकियाँ
मुर्दे के फुदने से लटकायी कठपुतलियाँ
खेल रचे सच-झूठ और रहस्योद्घाटन के 
तमाशबीन रोमांच से पीटते हम तालियाँ
आले पर रोटी और पैताने मनुष्यता रख
जीभ पर झंडे उठाये देकर हम गालियाँ
देशभक्ति का लबादा प्रदर्शनी में पहने 
मुँह में जड़ ताले,आँखों में लगा जालियाँ
न भूख,न बेकारी,न बाढ़ और न बीमारी
मनोरंजक बातें करते 'हम' और मीडिया।
#श्वेता

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आज की रचनाएँ 


हल निकल सकता जहाँ 
खामोशियों से खुद-ब-खुद
चीखता है बेवजहा, 
बेपनाह जहरी मीडिया !

बस दूध के उबाल सा 
उफने है चंद दिन
पकड़े है फिर अगली खबर 
की राह जहरी मीडिया !



आया मार्च ! मौसम रंगीन 

फागुन की आहट कण-कण में, 

बैंगनी फूलों वाला पेड़ 

बस जाता मन में नयनों से !


आया मार्च ! महक अमराई 

छोटी-छोटी अमियाँ फूटीं, 

भँवरे डोला करें बौर पर 

दूर नहीं रस भरे आम भी !




आखिरकार लौट आया 
 चीख और ठहाकों के मध्य 
 यह सोच कर कि...... 
 सभ्य समाज के 
 पांव के नीचे..... 
 किसी की कुचली...... 
  इच्छाओं के ढेर में.... 
 दब कर निर्जीव सा 
 दम तोड़ दिया होगा 
खोया हुआ मेरा..... 
अधुरा सपन........ 



आशीर्वादों का भी अपना एक वाक्य कोष होता है। सारे बुजुर्ग उसी में से उठा उठा कर आशीष दिया करते हैं। भाषा से भी यह अछूते हैं। लगभग सभी भाषाओं में आशीर्वाद का अंदाज और अर्थ एक सा ही होता है। चुनावी जुमलों की तरह ही आशीर्वादी जुमलों का एक सीमित संसार है मगर लुटाया दोनों को ही हाथ खोल कर जाया जाता है।
 ★★★★★★★


आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

सोमवार, 10 मार्च 2025

4423 ..बेल रस का सेवन या तो सुबह या फिर दोपहर के समय करना उचित होता है

 सादर अभिवादन

बेल ....



गर्मियों के मौसम में पसीना अधिक निकलता है, ऐसे में ज्यादा से ज्यादा पानी पीने और बॉडी को हाइड्रेट रखने की सलाह दी जाती है. बेल एक ऐसा फल है जिसका जूस हमारे शरीर को ठंडा रखने के साथ ही सेहत को कई तरीके से फायदा पहुंचाता है. बेल का जूस पीने से बॉडी हाइड्रेटेड रहती है और लू लगने की संभावना भी कम होती है. बेल बीटा-कैरोटीन, प्रोटीन, थायमिन, विटामिन सी (Vitamin C) और राइबोफ्लेविन से भरपूर फल है जो हमारी सेहत के लिए काफी अच्छा माना जाता है. गर्मियों में आप रोजाना बेल का जूस पी सकते हैं, हालांकि इसके लिए आप इसका सही समय जान लें. गलत समय पर इसके सेवन से कुछ नुकसान भी हो सकते हैं.बेल रस का सेवन या तो सुबह या फिर दोपहर के समय करना उचित होता है, इससे सेहत को लाभ मिलता है. बेल के जूस को कभी भी रात में नहीं पीना चाहिए, इससे आपकी सेहत को नुकसान हो सकता है. ठंडी तासीर की वजह से आपको सर्दी-जुकाम भी हो सकता है.

रचनाएं देखें




स्त्री पीसती है
सिल-बट्टे में
ससुर की
देशी जड़ी बूटियां
सास के लिए
सौंठ,कालीमिर्च,अजवाइन
पति के तीखे स्वाद के लिए
लहसुन,मिर्चा,अदरक





मगर.. वक्त फिसलता रहा
हाथों से रेत की मानिन्द
हमने खोया....
किसी का विश्वास,
किसी का निश्छल प्रेम,
दुआएं पाने के पल, बस बनाते रहे,
कुछ आभासी शीशमहल।





स्वर्ग बनाने की कूवत रखने वाले
अपने हाथों को चूम लो
रचो न अपना फलक, अपना धनक आप
सहला दो अपने पैरों की थकान को
एक बार झूम कर बारिशों में
जम कर थिरक तो लो
वर्ना मरने का क्या है
यूँ भी-
`रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई !’

******
शब्द ही शब्द है



शब्दों से मत गिराओ
पत्थर शब्दों से मत चलाओ
नस्तर शब्दों से मत चुभाओ
खंजर शब्दों से मत उगलो जहर ।
शब्दों से बहाओ सुख सुमन
शब्दों से करो सदा नम्र नमन
शब्दों से बिखेरो मृदु मुस्कान
शब्दों से करो सदा सम्मान।
शब्दों से गावों गीत उजास
शब्दों में लावो प्रीत हुलास
शब्दों से बहे सदा परिहास
शब्दों से झरे सदा मधुमास।
शब्द निकले सदा मधुमय
शब्द लगे सदा ही रसमय
शब्द बने सदा ही सुखमय
शब्द झरे सदा अमृतमय।

आज बस
सादर वंदन

रविवार, 9 मार्च 2025

4422 .... कैसे मान लूँ कि ये मेरा दिवस है या हमारा दिवस है

 सादर अभिवादन



राधा कोई स्त्री नहीं थीं। भगवान जी ने सृष्टि की रचना की और मनुष्य की परीक्षा लेने के लिए इस संसार रूपी मायाजाल की रचना की। यह माया ही राधा हैं, ईश्वर और माया का संबंध सनातन है। माया के मोहजाल से छूटकर ही हम ईश्वर को पा सकते हैं।

रचनाएं देखें



अंधियारे सी गुम रही
चाहत की एक शाख
अंधियारी एक रात रही
अंधियारी एक आंख

अंधे को है दिखा नहीं
कुदरत का यह रूप
जीवन केवल छांव नहीं
है सूरज की धूप




कैसे मान लूँ कि ये मेरा दिवस है
या हमारा दिवस है ?
'हम' शब्द तो उनके लिए
ठीक रहता है जो जुड़े हों
हम तो बँटे ही रहे हमेशा
साथ भी आए कभी, तो
स्वार्थ के धागे से ही जुड़े थे






मरा    मरा       करके      तुमने  
राम      नाम      बतलाया
तुतलाती     बोली      को     तुमने  
इतना     कुछ      समझाया
थाम     के      मेरी     उँगली  
मुझको     कांटों    में    चलना    सिखलाया




जब कदम ताने सुने हैं
पर निकलते छोकरी के
ताज मिलता मूढ़ता का
तथ्य कहते नौकरी के
राग छेड़े काग कड़वे
रो रही कोकिल बिचारी।।


आज बस
सादर वंदन

शनिवार, 8 मार्च 2025

4421...नम्र बनने के लिए कोई मोल नहीं चुकाना पड़ता है...

 शीर्षक पंक्ति:आदरणीया कविता रावत जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

        आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है। संपूर्ण विश्व में 8 मार्च का दिन महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्वभर में महिलाओं की दशा और दिशा पर अनेक रचनात्मक प्रतियोगताओं के साथ भाषण और शोध-पत्र आदि पढ़े जाते हैं  जिनमें महिला अधिकारों की चर्चा का प्राधान्य होता है। 

'पाँच लिंकों का आनन्द' परिवार की ओर से महिला दिवस की ढेरों शुभकामनाएँ। 

शनिवारीय अंक में आज पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

वह पेड़ कभी टूटता नहीं जो लचकदार होता है
वह पेड़ कभी टूटता नहीं जो लचकदार होता है।।
*****
कैसे कोई प्रेम जता सकता है!

मुझे लगी तुम धरती सी 

धैर्य से भरी 

मुझे लगी तुम पानी सी 

प्रवाह से भरी  

मुझे लगी तुम अग्नि सी 

तेज से भरी 

*****

इतना ही तो कृत्य शेष है


चुन शब्दों को गीत बनाना 

अपनी धुन में उसे बिठाना, 

इतना ही तो कृत्य शेष है 

सुनना तुमको और सुनाना!

*****

आदमी की पहचान

*****

*****

होली गीत

मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री ! २
फूल -फूल पर भौर उड़त हैं,
बीतत फागुन मास सखी री!२
*****
फिर मिलेंगे। 
रवीन्द्र सिंह यादव 


शुक्रवार, 7 मार्च 2025

4420...फिर से बहार का इंतज़ार

शुक्रवारीय अंक में आप
 सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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धर्म क्या है? शास्त्रसम्मत विचार से जिसे धारण किया जा सके वह धर्म है। स्वाभाविक रूप से धर्म वह धारणीय क्रिया है, जो हमें जीने का रास्ता दिखाती है एवं नेकी पर चलने का मार्ग प्रदर्शित करती है. वैसे हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि के संबंध में कहा जाता है कि ये धर्म नहीं संप्रदाय हैं. धर्म तो हर मनुष्य का एक ही है, वह है मानव धर्म।
अरस्तू एवं अन्य विशेषज्ञों की नजर में जनता
के

सामाजिक एवं आर्थिक स्तर को ऊंचा करना ही राजनीति का लक्ष्य होता है किंतु सदा से

राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने के लिए सत्ता के जोर पर धर्म को प्रभावित कर व्यक्तियों या समूहों को नियंत्रित करने और उन पर अत्याचार करने के लिए किया जाता है, जो प्रायः अपमान, अमानवीयकरण और हिंसा के माध्यम से किया जाता है, ताकि समाज में सत्ता कायम रहे और प्रतिरोध को दबाया जा सके।

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आज की रचनाएँ-
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मोर जो बनाओ तो, बनाओ श्री वृंदावन को,
नाच नाच घूम घूम, तुम्ही को रिझाऊं मैं ।
बंदर बनाओ तो, बनाओ श्री निधिवन को,
कूद कूद फांद वृक्ष, जोरन दिखाऊं मैं  ॥



न कुछ कहा 
न कुछ सुना 
बहार चली गई।

अब फिर से बहार का इंतजार है 
कुछ सुनने के लिए
कुछ कहने के लिए ...



सोना जब
भट्टी मे तपता है
कुन्दन बनता है ,
और जब कसौटी
पर खरा उतरता है
उसका सही दाम लगता है


उनकी नादानियों की सजा हम अपनी बिटिया को क्यों..........
अरे हम उन मनचलों को रोक नहीं सकते । पर,अपनी बिटिया को तो घर में सुरक्षित.........।
हांँ-हांँ बेटियाँ ही ना बलि का बकरा हो सकती.......।
बेटों को तो छुट्टा साढ़..........
अरे हम यह नहीं कहते कि बेटों को.....
पर बिटिया को समझ कर घर में...........
 हमें बिटिया को समझा कर घर में नहीं.........
बेटों को समझाकर बाहर भेजना है कि लड़कियों के साथ किसी भी तरह की.............. पाप है जैसे तुम्हारी मांँ-बहन की आबरू है ।वैसे ही पराई लड़कियों और........।



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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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गुरुवार, 6 मार्च 2025

4419 ...चलो भूल जाते हैं अब उन खताओं को

 सादर नमस्कार

भाई रवींद्र जी लगता है प्रस्तुति शेड्यूल करना भूल गए
प्रतीक्षा करता हूं 5 बजे तक
फिर इसे पोस्ट कर दूंगा
देखें रचनाएं




हे प्रियतम तुम रूठी क्यों
है कठिन बहुत पीड़ा सहना
इस कठिन घड़ी से जो गुज़रा
निःशब्द अश्रु धारा बनकर
मन की पीड़ा बह निकली तब
है शब्द कहाँ कुछ कहने को
धीरज धरने का धैर्य कहाँ





हर बरस
फागुन के मौसम में
ढाक के गंधहीन फूलों को
बदन पर मल-मलकर
महुआ की गंध से मतायी
मेरी श्वासों की सारंगी
समझने का प्रयास करती है
जीवन का अर्थ...।






स्त्रियों की मुस्कुराहट
सबसे खूबसूरत होती है
जब वे होती हैं नींद में
कभी स्त्रियों को नींद में मत जगाना
हो सकता है वे कर रही हों
तुम्हारे लिए प्रार्थना ही !






खुदी को सौंप कर जिस घड़ी देखा
वह ख़ुद जैसा बनाये जाता है

न दूरी न कोई भेद है उससे
हमको हमसे मिलाये जाता है


पहली बार नया ब्लॉग



प्रातः   की   धूप   लगती   है  प्यारी
वो   माँ   बन  लुटाने   जो  आ   जाती  है
इस   जग   पर   अपनी   ममता   सारी
आँचल  में   भर   लेती   है  अपने  प्यारों  को
जीवन  को  संवारती  है   सहलाती  है
प्यार   भरी   थपकी    दे   नित
निंदिया   भरे    लोचन   को   जगाती    है






चलो भूल जाते हैं
अब उन खताओं को
जो ला न सकी
बड़ी #आपदाओं को
खुशियों के दरवाजे में
ऐसे #ताला कब तक #आबाद रखूं ।

आज बस
फिर मिलते हैं
वंदन

बुधवार, 5 मार्च 2025

4418. हकीकत जाने सभी..

" उषा का अवलोक वदन।

किस लिये लाल हो जाती हो।

क्यों टुकड़े–टुकड़े दिनकर की।

किरणों को कर पाती हो।।

क्यों प्रभात की प्रभा देखकर।

उर में उठती है ज्वाला।

क्यों समीर के लगे तुम्हारे

तन पर पड़ता है छाला।।"

 हरिऔध

बुधवारिय प्रस्तुतिकरण और चंद वैचारिक रूप आप सभी के लिए..✍️

लघुकथा का काव्यात्मक रूपांतरण । शेख शहज़ाद उस्मानी

 चन्द्रेश कुमार छतलानी (उदयपुर, राजस्थान) की लघुकथा के काव्यात्मक रूपांतरण का एक प्रयास -

शीर्षक : विधवा धरती

(अन्य शीर्षक सुझाव: कितने बार विधवा?)

रक्तरंजित सुनसान सड़कें थीं, 

तो दर्द से चीखते घर, बस। ..

✨️

इल्युमिनाटी स्कूल का है 

 मैंने पहले मौन चुना

तब ईश्वर छोड़ा

बहुत शौक़ रहा उसे

सफेद संगमरमर के

बुतों के पीछे छुपने का,

बुत बनने का..

✨️

प्रेम

 माफ करना प्रिय

मैं नहीं तोड़ पाया 

तेरे लिए चांद

देखो न मैंने बनाई है रोटी

लगभग गोल सी

चांद के आकार सी 

आओ खा लो न! 

✨️

करें आलोचना वो असल दोस्त हैं

आपकी क्या हकीकत ये जाने सभी, 

अपना चेहरा छुपाने से क्या फायदा?

भूल अपनी अगर दिल पसीजा नहीं, 

फिर ये गंगा नहाने से क्या फायदा?

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️



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