शीर्षक पंक्ति: आदरणीय सुबोध सिन्हा जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
पर बुराई भी कम नहीं उसमें
स्थिरता नहीं उसमें यहाँ वहां थिरकता
भूल से यदि खा लिया जाता
भव सागर से मुक्ति की राह दिखाता
यही बुराई दिखी मुझे इसमें |
मुझसे रूठी मेरी कविता (लघु कविता)
हर दिन औ' हर रात-सवेरे, नई राहों से निकल जाती।
मैं तुम्हारा सन्त उपासक, तुम औरों के दर इठलाती।
रातें कितनी भी गहराएँ, आँखों में नींद नहीं आती।
काव्य-कविता नाम तुम्हारा, तुम रसिकों का मन बहलाती।
शब्द गूँजते कण-कण में नित
बाँचें ज्ञान ऋचाएं,
चेतन हो हर मन सुन जिसको
गीत वही गुंजायें !
शुभता का ही वरण सदा हो
सतत जागरण ऐसा,
अधरों पर मुस्कान खिला दें
हटें आवरण मिथ्या !
हैं हैवानियत की हदें पार करने की यूँ चर्चा,
ऐसे भी भला तुम जैसे क्या फ़रीद बनते हैं?.. बस यूँ ही ...
हैं मुर्दों के ख़बरी आँकड़े, पर आहों के कहाँ,
हैं रहते महफ़ूज़ मीर सारे, बस मुरीद मरते हैं .. बस यूँ ही ...
थोड़ा और बेहतर मनुष्य होना सिखाती है कथा नीलगढ़
सदाबहार हिन्दी उर्दू नग़में - - मेरे द्वारा संग्रहित, अवश्य पधारें।