पुराने समय में नागफनी के काँटे से ही कान में छेद कर दिया जाता था। इसके कांटे में एंटीसैप्टिक के गुण होते हैं, इस कारण न तो कान पकता था और न ही उसमें पस (पीव) पड़ती थी। इस कारण इसे वज्रकंटका के नाम से भी जाना जाता है।
नागफनी के फल गोलाकार अथवा नाशपाती के आकार के होते हैं। यह आधे पके होने की अवस्था में बहुधा मांसल और पूरे पके होने पर गहरे लाल रंग के हो होते हैं। नागफनी के पौधे में फूल (nagfani flower) और फल अप्रैल-सितम्बर से नवम्बर-दिसम्बर तक होता है।
आँखों में लाली की समस्या हो तो नागफनी (nagfani tree) के तने से कांटे साफ कर दें और फिर बीच में से फाड़ लें। इसके गूदे वाले भाग को कपड़े में लपेट कर आँखों पर रखने से लाभ होता है।
10 मिली नागफनी के फल के रस में दोगुना मधु तथा 350 मिग्रा टंकण मिला कर सेवन करें। इससे खाँसी और दम फूलने की परेशानी में लाभ होता है।
नागफनी के फल की बजाय यदि 1-2 ग्राम फूलों (nagfani flower) के चूर्ण का सेवन किया जाए तो पेचिश की शिकायत में लाभ होता है।
हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
सामान्यतः एक कवि-लेखक सबसे निरीह प्राणी माना जाता है और पत्रकार सबसे शक्तिशाली। पत्रकार यदि किसी से भयभीत होता है तो अपनी अंतर्रात्मा से। ‘पंचतंत्र’ की कथा पुनः मूषको भवति, जिसमें एक चूहा शक्तिशाली बनने की प्रक्रिया में फिर से मूषक बन कर संतोष पाता है। इसी तरह एक लेखक की शरणस्थली उस के लेखन में ही उसे मिलती है। पत्रकार की हैसियत से लिखे गए इन संस्मरणों के कहीं बहुत अंदर एक संवेदनशील रचनाकार सतत जागृत है। तभी वह अपने अनुभवों की नाव में अतीत की यात्रा में पाठकों को एक सर्वथा नए संसार में ले जाता है। शब्दों की खिड़की से बीत गए अतीत की दूसरी आत्मीय दुनिया की झलक मिलती है।
पर मैं करता काम भलाई
रखता उनसे दूर बुराई,
फिर क्यूँ मुझको दुत्कार लगाई
ये बात भैया समझ न आई।
सताती गरमी
रूलाता पानी,
बातें करता हूँ खुद से
याद आती अपनी कहानी।
क्योंकि उसे दिखावा नहीं आता। अगर वो अपने कठोर बोल समान काँटे भी चुभता हैं तो वो भी सबकी भलाई के लिए ही होता हैं ना कि किसी को जख्मी करने के लिए ,क्योंकि नागफनी के काँटे चुभने पर कभी जख्म नहीं होता हैं। एक ऐसा व्यक्तित्व जो नागफनी के फूलों की तरह मरुस्थल में भी खिलकर अपनी खुश्बू ही बिखेरना चाहता हैं ,वो अपनी मधुरता और सरसता का वाष्पीकरण नहीं करना चाहता इसलिए कँटीला हो जाता हैं।
सरसों की चूनरिया भारी
पल्लू में गोटा अमारी,
धानी-धानी रंग की किनारी
जुन्नारी पैंजना गाॅंव।
तिली फूल करनफूल सोहे
अरहर की झालर मन मोहे,
मोती अजवाइन के पोहे।
लौंगों सा खिला धना गाॅंव।
अपनी जड़ें बिछा रखी हैं
सताने वालों मेरे भूल न पाऊं तुम्हें
सो तुम्हारी तस्वीर हर कांटे पे लगा रखी है
तुम क्या दोगे हमें जीने के सहारे
उधार की सांसों पे जीने वालों
हमने तो काँटों में भी महफ़िल सजा रखी है
डाली है हम पर भी बुरी नज़र फूलों ने यारों
ये तो कांटे हैं जिन्होंने अस्मत बचाए रखी है
दमदार और उपयोगी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार
सादर नमन..
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति प्रिय दीदी।नागफनी को अपनी अपनी दृष्टि से आँकती रचनाएँ बहुत बढ़िया लगी।सरोकार पर बेहतरीन पोस्ट से बहुत कुछ जाना। कामिनी का भावपूर्ण लेख दुबारा पढा,अच्छा लगा।नागफनी को कंटक पौधों का शिरोमणि कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। भले फूलों का महत्व जगजाहिर है पर नागफनी ने भी अपने कंटीले सौन्दर्य से सौन्दर्यप्रेमियों को खूब रिझाया है।मुझे एक अनाम कवि की एक पंक्ति याद आ रही है-----
जवाब देंहटाएंनागफनी के स्वागत में बगिया कटी गुलाब की।
सुन्दर प्रस्तुति के लिए सादर आभार और बधाई।🙏🙏
रोचक एवं पठनीय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय प्रस्तुति ।लाजवाब अंक ।
जवाब देंहटाएंएक ऐसा व्यक्तित्व जो नागफनी के फूलों की तरह मरुस्थल में भी खिलकर अपनी खुश्बू ही बिखेरना चाहता है ,वो अपनी मधुरता और सरसता का वाष्पीकरण नहीं करना चाहता इसलिए कँटीला हो जाता है। ये उसकी सकारात्मकता है ,जिनको चुभता है उनके लिए नकारात्मकता ही सही.......
जवाब देंहटाएं(प्रिय कामिनी बहन की रचना से)
आदरणीया विभा दी, नागफनी हो या अन्य काँटेदार पौधे, ये जीजिविषा का प्रतीक हैं। सबसे कम सार सँभाल माँगते हैं और हरियाली के साथ साथ एक विशेष मौसम में फूलों का सौंदर्य भी बिखेरते हैं।
नागफनी पर आधारित रचनाओं से सजा अंक यही कहता है -
तुमको होगी सजावट के लिए फूलों की दरकार
हम तो काँटों से भी सजा लेते हैं चमन अपना !!!
लाजवाब प्रस्तुति। भूमिका भी बहुत काम की और ज्ञानवर्धक है।
ज्ञानवर्धक,उपयोगी भूमिका के साथ बेहद सराहनीय कविताओं, समीक्षा और लेख के ठनीय सूत्रों से सजा सार्थक अंक दी।
जवाब देंहटाएंखुशबू होती है गुलाब की चार दिन
औ इतर से भी पाई जा सकती है
याद रखने को दिल की चुभन ता उम्र, हमने
दिल में नागफनी की बाड़ लगा रखी है
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सादर
प्रणाम दी।
Your post is osm and helpful me . Thanks for this post . Love and respect
जवाब देंहटाएंSimran kaur
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क्षमा चाहती हूं विभा दी, आपने मेरी रचना को मान दिया और मैं आप का शुक्रिया अदा करने भी नहीं आ पाई । मेरी मां का स्वर्गवास हो गया था और १२ को उनकी तेरहवीं का कर्मकांड था इसलिए आने में असमर्थ थी। मेरी पुरानी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद दी, बेहतरीन प्रस्तुति के लिए भी हार्दिक धन्यवाद एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंक्षमा मांगने जैसी कोई बात नहीं बहना
हटाएंमाँ को खो देना पीड़ादायक है
उन्हें नमन