निवेदन।


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शुक्रवार, 18 अप्रैल 2025

4462...इसी का नाम ज़िंदगी है

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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आज अनायास ही कबीर के दोहे सुनकर 
उनको फिर से पढ़ना बहुत अच्छा लगा।

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,

कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।


कबीर दास भक्तिकाल युग के ऐसे कवि हुए जिन्होंने समाज को जगाया। कबीर ने अपने समय को टटोला और लोगों की दुख और तकलीफ़ को अपनी रचनाओं का केंद्र बनाया।  कबीर ने अपने काव्य में लोक चेतना को जागृत करने के लिए कालजयी साहित्य की रचना की। कबीर निर्गुण भक्ति धारा के सबसे तेजस्वी स्तंभ थे। कबीर के दोहे और सूक्तियां सदियों बाद आज भी इतनी मार्मिक हैं कि उसमें लोक चेतना की ज्वाला अभी भी जल रही है। 

कबीर के शब्द सीधे और सरल हैं। वह किसी तरह के अलंकार और भाव व्यंजनों में उलझते नहीं दिखते। वह गंभीर अर्थों के साथ सामाजिक समस्याओं पर करारी चोट करते हैं और निराकरण का रास्ता भी सुझाते हैं। कबीर सभी मनुष्यों को एक समान भाव देते हैं। वह धर्म के बाह्यआडंबर पर हिंदू और मुस्लिम दोनों पर प्रहार करते हैं। उनका एक दोहा बड़ा प्रसिद्ध है-


'कांकर पाथर जोरि कै, मस्जिद लई बनाय

ता चढ़ि मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय' 


आज की रचनाएँ
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वक्त की शाख़ पर

 लदे खट्टे-मीठे फलों सरीखे 

अनुभवों को 

चिड़िया के चुग्गे सा

अनवरत 

चुनता रहता है इन्सान 

इसी का नाम ज़िंदगी है 



दूर
तक, बाँसवन में है अभी तक मौजूद
आदिम कुछ दीवार, मृत किनारों
को मिल जाते हैं नए
वारिसदार । कौन
संभाले रखता
है पुराने
ख़त,



वर्षों के बाद हमारी आगामी पीढ़ी हमारी ही फोटो देख पूछेगी, यह लोग कौन थे ? तब उन्हें हमारे संबंध में बतलाया जाएगा और ऊपर बैठे हम अपने आंसू छिपाए यह सोचेंगे, क्या इन्हीं के लिए हमने अपनी जिंदगी खपाई जो हमें पहचानते ही नहीं ! पर हमें यह ख्याल शायद ही आए कि हम अपने पूर्वजों को और उनकी पहचान को कितना याद रख पाए थे !



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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

4461 ..जिसके अभिमान की गति जितनी तेज होती है, उस मनुष्य का पतन उतनी ही जल्दी होता है।

 सादर अभिवादन 




सृष्टि के रचयिता, पालनहार, कर्ता-धर्ता तो सब प्रभु हैं, फिर अभिमान किस बात का? इस संसार में सभी जीव-जंतु, पशु-पक्षी, वृक्ष यहां तक कि मनुष्य भी ईश्वर के बनाए हुए हैं। इस निर्माण के पीछे सृष्टि के रचयिता का मुख्य उद्देश्य किसी भी कार्य को पूर्ण कराने के लिए माध्यम के रूप में इस्तेमाल करना है। जब प्रभु की बनाई वस्तु का उद्देश्य पूर्ण हो जाता है, तब वह दुनिया से समाप्त हो जाती है। कहते हैं, अहंकार तो अपने-अपने समय के सबसे शक्तिशाली कहे जाने वाले कंस और रावण का भी नहीं रहा। आधुनिक समय में विश्व विजेता कहलाने वाले एडोल्फ हिटलर और नेपोलियन जैसे शक्तिशाली व्यक्ति का भी अहंकार चूर-चूर हो गया।


जिसके अभिमान की गति जितनी तेज होती है, उस मनुष्य का पतन उतनी ही जल्दी होता है। यह तब होता है जब मनुष्य को लगता है कि इस संसार में उससे ज्यादा श्रेष्ठ और कोई नहीं है। जब वह यह सोच लेता है तो निश्चित तौर पर वह अपना विनाश खुद कर लेता है। वह जिस बात का गुमान करता है, उस क्षेत्र में तरक्की नहीं कर पाता। वह घमंड में इतना डूब जाता है कि उसे सही गलत, कुछ भी नजर नहीं आता है। वह अपने ही दंभ के जाल में फंस जाता है।


होते हैं रचनाओं से रूबरू




भारत में सिबलिंग डिवोर्स-

भारत में, भाई-बहन के बीच तलाक को 'सिबलिंग डिवोर्स' कहते हैं. यह एक ऐसी स्थिति है जब भाई-बहन के रिश्ते में खटास आ जाती है या वे इमोशनली रूप से एक-दूसरे से दूर हो गये हैं. यह शब्द बॉलीवुड सिंगर नेहा कक्कड़ की बहन सोनू कक्कड़ की सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के बाद ज्यादा चर्चित हुआ है.





हवा
कब जाहिर करता है
अपना प्रेम!
***
पानी का प्रेम
तो  होता है
रंगहीन, स्वादहीन!





अंडे से निकला चूजा वह
उसे ही हिकारत से देखने चला।
वह घोड़े पर क्या सवार हुआ
बाप पहचानना भूल गया ।।

पतन से पहले इंसान में मिथ्या
अभिमान आ जाता है ।
जमीनों और कमीनों का
भाव कभी कम नहीं होता है।।

*****
आज बस
सादर वंदन

बुधवार, 16 अप्रैल 2025

4460..लोग बदल जाते हैं ..

 ।।प्रातःवंदन।।

"गले लग-लगकर कलियों को।

खिला करके वह खिलता है।

नवल दल में दिखलाता है।

फूल में हँसता मिलता है॥

अंक में उसको ले-लेकर।

ललित लतिका लहराती है।

छटाएँ दिखला विलसित बन।

बेलि उसको बेलमाती है..!!"

हरिऔध 

बुधवारिय प्रस्तुतिकरण की आगाज और मिज़ाज 

प्रेम 

1.

हवा

कब जाहिर करता है

अपना प्रेम! 

2.

पानी का प्रेम

तो होता है 

रंगहीन, स्वादहीन! 

✨️



एक लापता स्रोत, दूर से थम थम कर

आती है जिसकी मद्धम आवाज़,

कोहरे में धुंधले से नज़र आते

हैं कुछ अल्फ़ाज़, किसी

अज्ञात स्वरलिपि में

ज़िन्दगी तलाशती..

✨️

be positive

"ओह ! कम ऑन मम्मा ! अब आप फिर से मत कहना अपना वही 'बी पॉजिटिव' ! कुछ भी पॉजिटिव नहीं होता हमारे पॉजिटिव सोचने से ! ऐसे टॉक्सिक लोगों के साथ इतने..

✨️

खो गये वे शब्द सारे 


खो गये वे शब्द सारे 

नाव हम जिनकी बनाकर 

पहुँच जाते थे किनारे !

✨️

बदलाव


मैंने देखा साथ वक्त के

कैसे लोग बदल जाते हैं

बीज वृक्ष बन जाता उसमें,

फूल और फिर फल आते हैं ..

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️

मंगलवार, 15 अप्रैल 2025

4459...चाहता हूँ गूँथना एक मोहक-सा गजरा तुम्हारी वेणी के लिए...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया साधना वैद जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

मंगलवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

आइए पढ़ते हैं पाँच चुनिंदा रचनाएँ-

बेला के फूल

चाहता हूँ गूँथना

एक मोहक सा गजरा

तुम्हारी वेणी के लिए

सुरभित हो जाए जिससे

ये फिजा और महक जाए

हमारा भी जीवन

बेला के इन फूलों की तरह!

*****

फूल रहा अमलतास

पैदल चलने वाले लोग

पसीना पोंछते एक ओर

ठहर कर ढूँढते हैं जब छाँव,

हिला कर हाथ बुलाता है पास

झूमर जैसा अमलतास!

उतर आता है ज़मीं पर

उस पल स्वर्ग से नंदनवन!

*****

पुनर्मिलन की प्रतिश्रुति--

उभरने
दे अंतर्मन से
सुप्त नदी
का
विलुप्त उद्गम

सरकने दे मोह का यवनिका दूरतक

कोहरे में ढके हुए हैं अनगिनत संभ्रम,

*****

प्रतीक्षा का अंतिम अक्षर

समय गवाह था-

न कोई कोर्ट-कचहरी,

न कोई दावा करने वाला।

*****

बेहद प्रासंगिक है 'कबिरा सोई पीर है'

कबिरा सोई पीर हैउपन्यास में इस विषय पर बहुत गहनता से गौर किया गया है। एक प्रेम-कहानी है जिसके इर्द-गिर्द वास्तविक दुनिया कितनी प्रेम-विहीन और निष्ठुर है..ये उकेरा गया है। यकीन मानिए प्रेम की भी राजनीति होती है। प्रेम भी समय और समाज के कलुष से अछूता नहीं रह पाता। चाहे जितना प्रगाढ़ हो..प्रेम पर भी कुरीतियों के कुपाठ का प्रभाव पड़ता है।
*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

सोमवार, 14 अप्रैल 2025

4458 ...इक हम तुम्हारे बाद किसी के नहीं हुए

 सादर अभिवादन

रविवार, 13 अप्रैल 2025

4457 ..मोहिनी शक्ति शिमला

 सादर अभिवादन

शनिवार, 12 अप्रैल 2025

4456 ...तुम कब आओगे अब तो कहो चाहती हूँ जानना

 सादर अभिवादन

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2025

4455...उन्हें नींद नहीं आती, पर हम चैन की नींद सोते हैं...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ओंकार जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

शुक्रवारीय प्रस्तुति में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

 पिता की खांसी

पिता दिन में भी खाँसते हैं,

पर रात में ज़्यादा खाँसते हैं,

उन्हें नींद नहीं आती,

पर हम चैन की नींद सोते हैं।

*****

पापी का सच

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सुखनवर द्विमासिक पत्रिका में प्रकाशित आकिब जावेद की ग़ज़लें

सुख़नवर द्विमासिक पत्रिका के जनवरी - फरवरी 2025 के अंक में नामी आदीबों के साथ इस नाचीज़ को जगह देने के लिए संपादक आदरणीय असीम आमगांवी साहब का बहुत बहुत शुक्रिया

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 विप्र सुदामा-70

जब रथ पर बैठ गये कान्हा,

दहाड़ मार रोई सिगरी नगरी।

वादा करो आज  कान्ह तुम,

फिर कब अइहौ मोरी नगरी।।

*****

कविता: "एकलव्य"

अगर एकलव्य उस समय उस कुत्ते को न मारा होता।

तो फिर उस अर्जुन ने भी उस कर्ण को छल से न मारा होता।

फिर तो उस एकलव्य की वह - वह होती

अगर धोखे से अँगूठा न माँगा होता।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 


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