हाज़िर हूँ...! उपस्थिति दर्ज हो...
उम्र के जिस पड़ाव पर मैं हूँ और अब तक हुए समाज से भेंट के कारण , मुझे तीन पीढ़ियों को बेहद करीब से देखने का मौका मिला। तीन पीढ़ी यानि मेरी दादी की उम्र की महिलाओं में सास बहू का रिश्ता, मेरी माँ की उम्र की महिलाओं में सास बहू का रिश्ता, और मेरी उम्र की महिलाओं में सास बहू का रिश्ता..। अक्सर बिगड़ते रिश्ते और मूल्यह्रास होते सम्बन्ध का आधार बीच की कड़ी यानि माँ के पुत्र और पत्नी के पति में संतुलन ना बना पाने वाला पुरुष होता है।
बिहार हरियाणा राजस्थान जैसे राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों की ही बात नहीं है.. जहाँ आईएएस जैसा शिक्षित प्राणप्रिया से त्रस्त प्राणेश आत्महत्या कर लेते हों। धनाढ्य गृहों में गृहणी से भयभीत सास किसी कोने में आसरा पाने में असमर्थ हो जाती हो..। पत्नी के आत्महत्या कर लेने की धमकी से त्रसित पुत्र आँखेें चुराने में व्यस्त रह जाता हो...। आज के दौर में भी पढ़ा लिखा अशिक्षित मूढ़ अनेकानेक परिवार पाए जा रहे हैं..।हो सकता है महानगरों की तितलियाँ मेरी बातों से सहमत नहीं हों.. । किसी ने सच कहा है कि साहित्यकार भविष्यवक्ता होते हैं...।
प्रेमचंद की 'गृहनीति' को मैं तब पढ़ी थी जब मुझे पीढ़ी और बीच की कड़ी की समझ नहीं थी। आज भी सामयिक और सार्थक लेखन पा रही हूँ...
जो विकास साधारण गति से संभवतः एक शताब्दी में होता
उन्होंने दो दशकों में हीं सम्पन्न कर दिखाया।
हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा, जिसमें उच्च चिंतन हो,
स्वस्वाधीनता का भाव हो, सौंदर्य का सार हो, सृजन की आत्मा हो,
जीवन की सचाइयों का प्रकाश हो, जो हममें गति और बेचैनी पैदा करे,
सुलाए नहीं, क्योंकि अब और ज्यादा सोना मृत्यु का लक्षण है।
मैं उसकी दूकान पर जा बैठता था और
उसके स्टाक से उपन्यास ले-लेकर पढ़ता था;
जिंदगी का तातपर्य क्या है?
एक दिन खुद ही समझ जाओगे…
बारिशों में पतंगो को हवा लगवाया करो
आप आधुनिक हिन्दी साहित्य जगत में
कहानी -कला को अक्षुण्ण बनाए रखने वाले
कहानीकारों में अग्रगणी हैं ।