निवेदन।


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शनिवार, 31 जुलाई 2021

3106... प्रेमचंद जयंती

   


हाज़िर हूँ...! उपस्थिति दर्ज हो...

उम्र के जिस पड़ाव पर मैं हूँ और अब तक हुए समाज से भेंट के कारण , मुझे तीन पीढ़ियों को बेहद करीब से देखने का मौका मिला। तीन पीढ़ी यानि मेरी दादी की उम्र की महिलाओं में सास बहू का रिश्ता, मेरी माँ की उम्र की महिलाओं में सास बहू का रिश्ता, और मेरी उम्र की महिलाओं में सास बहू का रिश्ता..। अक्सर बिगड़ते रिश्ते और मूल्यह्रास होते सम्बन्ध का आधार बीच की कड़ी यानि माँ के पुत्र और पत्नी के पति में संतुलन ना बना पाने वाला पुरुष होता है।

बिहार हरियाणा राजस्थान जैसे राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों की ही बात नहीं है.. जहाँ आईएएस जैसा शिक्षित प्राणप्रिया से त्रस्त  प्राणेश आत्महत्या कर लेते हों। धनाढ्य गृहों में गृहणी से भयभीत सास किसी कोने में आसरा पाने में असमर्थ हो जाती हो..। पत्नी के आत्महत्या कर लेने की धमकी से त्रसित पुत्र आँखेें चुराने में व्यस्त रह जाता हो...। आज के दौर में भी पढ़ा लिखा अशिक्षित मूढ़ अनेकानेक परिवार पाए जा रहे हैं..।हो सकता है महानगरों की तितलियाँ मेरी बातों से सहमत नहीं हों.. । किसी ने सच कहा है कि साहित्यकार भविष्यवक्ता होते हैं...।

प्रेमचंद की 'गृहनीति' को मैं तब पढ़ी थी जब मुझे पीढ़ी और बीच की कड़ी की समझ नहीं थी। आज भी सामयिक और सार्थक लेखन पा रही हूँ...

प्रेमचंद

जो विकास साधारण गति से संभवतः एक शताब्दी में होता

उन्होंने दो दशकों में हीं सम्पन्न कर दिखाया।

साहित्य का उद्देश्य

हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा, जिसमें उच्च चिंतन हो,

स्वस्वाधीनता का भाव हो, सौंदर्य का सार हो, सृजन की आत्मा हो,

जीवन की सचाइयों का  प्रकाश हो, जो हममें गति और बेचैनी पैदा करे, 

सुलाए नहीं, क्योंकि अब और ज्यादा सोना मृत्यु का लक्षण है।

मेरी पहली रचना

मैं उसकी दूकान पर जा बैठता था और

उसके स्टाक से उपन्यास ले-लेकर पढ़ता था;

प्रेमचंद की कविताएँ

जिंदगी का तातपर्य क्या है?

एक दिन खुद ही समझ जाओगे…

बारिशों में पतंगो को हवा लगवाया करो

लेखक परिचय

आप आधुनिक हिन्दी साहित्य जगत में

कहानी -कला को अक्षुण्ण बनाए रखने वाले

कहानीकारों में अग्रगणी हैं ।


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पुन: भेंट होगी...
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शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

3105...श्रेष्ठ होने की होड़ में..।

शुक्रवारीय अंक में मैं श्वेता
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन 
करती हूँ।
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क्या सचमुच एक दिन
क्षमाभाव समाप्त हो जायेगा?
प्रेम की आकांक्षा शेष रहेगी
किंतु क्रोध की एकता मिसाल बनेगी?
श्रेष्ठ होने की होड़ में 
सबको समान रूप से शत्रु मानते
 लोगों को देख, सोचती हूँ अक़्सर
 क्या क्रूरता को आत्मा के पवित्र भावों,
 धर्म ग्रंथों में उद्धरित पात्रों के साथ रखकर  
 ऐतिहासिक बनाकर आने वाली पढ़ियाँ
 गौरवान्वित होगी?

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आइये आज की रचनाएं पढ़ते हैं-


रिश्तों के वर्गीकरण में, असंख्य विश्लेषण और व्याखाओं में सबसे पवित्र एहसास होता हैं-

रिश्ता मन का


पानी की यही ख़ासियत है
जिसमे मिला दो
उस जैसा हो जाता है
रिश्ता मन का
पानी की पारदर्शिता लिये
जहाँ नमी हो
वो पौधे सूखा नहीं करते
ऐसा माँ कहती है। 

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नभ के रहस्यों को समझ सका कौन?
प्रश्नों के प्रतिउत्तर में सुनो प्रकृति का मौन

नभ तेरे हिय की जाने कौन

उमड़ घुमड़ करते ये मेघा
बूँद बन जब न बरखते हैं
स्याह वरण हो जाता तू 
जब तक ये भाव नहीं झरते हैं
भाव बदली की उमड़-घुमड़
मन का उद्वेलन जाने कौन
ये अकुलाहट पहचाने कौन....


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प्रकृति प्रदत्त विषमाओं और
 रचना पर सदैव
अचंभित और निःशब्द हो जाती हूँ -

मैं अपने टूटे, अनसुलझे
इन हौसलों का क्या करूँ 
अब कौन सा रूप धरूँ 
आख़िर उन्हें कैसे समझाऊँ 
कैसे अहसास दिलाऊँ 
कि उन जैसे ही मनुष्य हैं हम
थोड़ा समझो हमारा गम
हमारे मन में उतरकर 
एक कोने में ठहरकर
जरा सोचो एकबार
मेरा आकार

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कुछ लोगों का स्वभाव ही होता है दूसरे की हर बात में दोष निकालना।
लोगों की परवाह करके अपनी खुशियों से समझौता करने से कोई लाभ नहीं।

असली मतलब तो जिंदगी के उतार -चढाव झेलकर ही समझ आया ...कुछ तो लोग कहेगे .....लोगों का काम है कहना ....।
और हम भी लोगो की परवाह करके अपनी जिंदगी खुलकर नहीं जीते ।हर बात में सोचते हैं लोग क्या कहेगें ।

और चलते-चलते
रख लीजिए,समझ लीजिए
बातें सारी
अपने सहूलियत के हिसाब से
जो न कह सकी क़लम मेरी
उस राज़ को इशारों में
आबाद रखिएगा।

बहुत
बड़ी है मगर है
तमन्ना है
कुछ कर दिखाने की
सब की होती है याद रखियेगा

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कल का विशेषांक.पढ़ना न भूले
लेकर आ रही विभा दी।

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गुरुवार, 29 जुलाई 2021

3104...बड़ी बेचैन हलचल है...

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है।


भारत के पड़ोस में 

सत्ता परिवर्तन की 

बड़ी बेचैन हलचल है,

सीमा से लगे देशों की 

ग़ौर-तलब चहल-पहल है।  

 

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें- 

माई हम नाहीं जैहैं पनियाँ भरन-(भजन)


एक पैर से खड़े, बांकी थी चितवन।

कटि थी  तिरीछी कटि  में करधन।

माई शोभित मुरली उनके अधरन।

हम  भूल गई  माई  पनियाँ भरन।


लक्ष्य बुलाता


मूक न्योता दे रहा

राजसी वैभव छले

बज उठी पायल हठी

लो कई सपने पले

मन मयूरा नाचता

आखिरी झंकार तक।।


देशांतर - -


इस पल

को

समो लो, रूह की अथाह गहराइयों

तक, इस के पहले कि हम और

तुम कालांतर हो जाएं, उम्र

के पल्लव झर जाने से

पहले, आओ इस

सजल निशीथ

में देशांतर

हो जाएं।


वर्षा ऋतु

वन- उपवन सब महके-महके,

चिड़ियाँ , बुलबुल सब चहकें चहकें,

नीर ही है जीवन दाता,

सावन को मौसम सबको सुहाता।


मौन

अक्षर अक्षर जोड़कर

उसने एक वाक्य बनाया

जिसे कोई पढ़ नहीं पाया

फिर उसने कई वाक्य बनाये

और कविताएं रच डाली


चलते-चलते पढ़िए जीवन की महत्त्वपूर्ण सीख- 

प्रत्यापित अनुभव

पति -'माँ और सास में क्या कोई अन्तर है ?'

स्त्री -'उतना ही जितना जमीन और आसमान में है

माँ प्यार करती है, सास शासन करती है। कितनी ही दयालु, सहनशील सतोगुणी स्त्री हो, सास बनते ही मानो ब्यायी हुई गाय हो जाती है। जिसे पुत्र से जितना ही ज्यादा प्रेम है, वह बहू पर उतनी ही निर्दयता से शासन करती है। मुझे भी अपने ऊपर विश्वास नहीं है। अधिकार पाकर किसे मद नहीं हो जातामैंने तय कर लिया है,सास बनूँगी ही नहीं। औरत की गुलामी सासों के बल पर कायम है।

*****

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगले गुरुवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 


बुधवार, 28 जुलाई 2021

3103..आंचल से पिघलती चांदनी

 ।।भोर वंदन।।

"सूरज ने भेजी है वसुधा को पाती,
संदेसा लाई है धूप गुनगुनाती।
हाथ में ले हाथ सुबह सुना दे प्रभाती।

उषा की विमलता निज आत्मा में धार,
दुपहरी प्रखरता पर जान सके वार,
संध्या हो आशा के दीप टिमटिमाती,
कल्पना ले अल्पना हो नर्मदा बहाती..!!"
संजीव वर्मा 'सलिल'

लिंकों की पेशकश में आज हम रूबरू होतें हैं ब्लॉग 'चाँद पराया है'  शब्द, अहसास और अनुभवों के तालमेल से रचीं रचना..✍️









जब जर्रे जर्रे में समा कर सिमटने लगी हो 

दूर कहीं बादलों, नदियों, पहाड़ों के पीछे

सुनहला सूरज जब अगड़ाईंयां लेने लगा हो..
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अंतहीन है समुद्र का किनारा,
उतरे तो सही वो एक
बार घने बादलों
के हमराह,
उभर
जाए कदाचित डूबा हुआ साँझ तारा,
अंतहीन है समुद्र का किनारा।
उसे समझने की चाह
➖➖


 उनका हृदय बहुत समय से चिंतित था। यूँ तो चिंतित होना उनके लिए कोई नई बात नहीं थी पर इस बार चिंता अत्यधिक उच्च स्तर तक पहुंच चुकी थी। इस चिंता की चिंता में उन्होंने महल की हर ..
➖➖

नहीं आती थी उसे
गिनती पहाड़ा
पर !
उसने जिन्दगी के हिसाब किताब में
कभी गलती नहीं की ।
 
दिलों को जोड़ना,

बैरीपन घटाना,


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बोलती ग़ज़ल के साथ आज यहीं तक मैं खामोश होती हूँ..

अब लगीतब ये लगीलग ही गई लत तेरी I
कब हुईकैसे हुईहो गई आदत तेरी I
 
ख़त किताबों में जो गुम-नाम तेरे मिलते हैं,
इश्क़ बोलूँ के इसे कह दूँ शरारत तेरी I
 
तुम जो अक्सर ही सुड़कती हो मेरे प्याले से,..

।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति '..✍️

मंगलवार, 27 जुलाई 2021

3133...कहो न कौन से सुर में गाऊँ

शुक्रवारीय अंक में मैं
श्वेता 
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन
करती हूँ।

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जीना भी अजीब है, कभी खेल है ,कभी कला है कभी एक्टिंग है, कभी कुछ है ,तो कभी कुछ !! इस जीवन में हर पल को आना है और तत्क्षण ही चले ही जाना है, एक-एक पल करके समय हमको गुजारता जाता है और हम समय को !!

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गर जीना है स्वाभिमान से
मनोबल अपना विशाल करो
न मौन धरो, ओ तेजपुंज
अब गरज उठो हुंकार भरो।
बाधाओं से घबराना कैसा?
बिना लड़े मर जाना कैसा?
तुम मोम नहीं फौलाद बनो
जो भस्म करे वो आग बनो
अपने अधिकारों की रक्षा का
उद्धोष करो प्रतिकार करो।
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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-

कहो न कौन से सुर में गाऊँ

जाने 'उसने' कब, किसको,
क्यों, किससे, यहाँ मिलाया !
दुनिया जिसको प्रेम कहे,
वो नहीं मेरा सरमाया !
जाते-जाते अपनेपन की, 
सौगातें दे जाऊँ !
कहो ना, कौनसे सुर में गाऊँ ? 


मौसम में मधुमासी



धानी चुनर पीत फुलवारी
धरा हुई रसवंती क्यारी।
जगा मिलन अनुराग रसा के
नाही धोई दिखती न्यारी‌।
अंकुर फूट रहे नव कोमल
पादप-पादप कोयल रागी।।




कभी तन की भूख
कभी मन की भूख
कभी धन की भूख
सब कुछ पाकर भी
सब कुछ पाकर भी
तृप्त न हो पाया

पिया बोले न

तरसे नयनवा
उनके दरस को ...
आएंगे साजन
कौन बरस को...
अंबर बरसे 
धरती तरसे 
पुरवा सयानी 
इत उत भटके 
पीहू पुकारे 
घर के  दुआरे 





वनगमन, पर दोष किसका?

राम का वन जाना मुझे असाध्य कष्ट देता है, जितनी बार प्रसंग पढ़ता हूँ, उतनी बार देता है। क्योंकि मन में राम के प्रति अगाध प्रेम और श्रद्धा है। बचपन से अभी तक हृदय यह स्वीकार नहीं कर सका कि भला मेरे राम कष्ट क्यों सहें? राम के प्रति प्रेम और श्रद्धा इसलिये और भी है कि राम पिता का मान रखने के लिये वन चले गये


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कल का विशेष संकलन लेकर

आ रही हैं प्रिय विभा दी

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