सादर अभिवादन
गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है.
लीजिए पढ़िए कुछ चुनिंदा रचनाएँ-
चाँद उतरा, बर्फ़ पिघली, ये जहाँ महका दिया : दिगंबर नासवा
बादलों के पार तारों में कहीं छुड़वा दिया I
चन्द टूटी ख्वाहिशों का दर्द यूँ बिखरा दिया I
एक बुन्दा क्या मिला यादों की खिड़की खुल गई,
वक़्त ने बरसों पुराने इश्क़ को सुलगा दिया.
ग़ज़ल |रूह तन्हा है | डॉ.(सुश्री) शरद सिंह
रूह तन्हा है, ज़ख़्म गहरा है
ग़म सरे-शाम आ के ठहरा है
याद आती हैं उड़ाने लेकिन
आसमानों पे आज पहरा है
.
डर कर मेरे घर, कोई आया ना गया -- डॉ . टी . एस . दराल .
याद हैं वो दिन जब ,
होती थीं खूब मुलाकातें।
जाम लिए हाथ में
करते थे ढेरों सी बातें।
देखते देखते फिर
आ गईं कर्फ्यू की रातें।
सार्थक चिंतन - कुछ हाइकु
अब न मिलें
ऐसे सुअवसर
वक्त की घात
माता का प्यार
चोंचला अमीरों का
खाते हैं मार
इक बगल में ... सुबोध सिन्हा
बेहतरीन अंक..
जवाब देंहटाएंऔर क्यों न हो..
तड़का जो लगा है..
याद हैं वो दिन जब ,
होती थीं खूब मुलाकातें।
जाम लिए हाथ में
करते थे ढेरों सी बातें।
सादर..
"पाँच लिंकों का आनन्द" के मंच पर आज की बहुरंगी प्रस्तुति, अपने श्वेत-श्याम रूप (बिना भूमिका, तस्वीरें, समीक्षा यानी लंद-फंद .. देवानंद .. के) में भी,किसी पुरानी फिल्मों की अभिनेत्री- मधुबाला जी की किसी मोहक 'श्वेत-श्याम पोस्टर' की तरह मनलुभावन है .. शायद ...
जवाब देंहटाएंसंगीता जी,
आपने पूरी प्रस्तुति में अपने लिए केवल एक जगह "मैंने" लिखा है। जिनकी रचनाएं यहाँ चिपकी हैं, वो तो आपके "मैंने" का अर्थ समझ जायेंगे, क्योंकि कल रात आप ही ने सब को यहाँ आने का औपचारिक न्योता दिया था। बाकी पाठकगण को कैसे मालूम चल पाएगा भला .. 🤔
ख़ैर ! मेरी बतकही को यहाँ तक घसीटने के लिए आपको और साथ ही रवीन्द्र जी को, यानी प्रस्तुतकर्ता चिट्ठाकारद्वय को संग-संग सुप्रभात वाले नमन संग आभार .. बस यूँ ही ...
(अब देखिये ना जरा .. यशोदा जी बौराय रहीं हैं, सुबह-सुबह जाम-वाम की बातों से मदहोश हुई जा रही हैं, वो भी किसी बिहार वालों का दर्द समझे बिना, जो एक "सूखाग्रस्त राज्य" है। मने सुबह-सुबह दुखती रग पर हाथ , पैर सब रख दे रहीं हैं .. 😢😢😢 और वहाँ एक बून्दा मिलने से खुलती खिड़की और सुलगता इश्क़, कोई गहरा जख़्म .. ये सब नहीं दिख रहा इनको .. ये चक्कर और इंतज़ार में हैं कि दोनों बून्दा मिले और ये ले लें माँग कर .. शायद ... 😄😄😄)
ध्यान रक्खें
हटाएंअभी-अभी आपने कोरोना को मात दी है
ऊल-जुलूल सेवन ही नहीं न कीजिए
सादर..
सुबोध जी ,
हटाएंआपको कुछ ज़्यादा ही आनंद नहीं आता सारी पोल खोलने में ? 😆😆😆😆
वैसे मधुबाला को यहाँ याद करने से आपने बता ही दिया कि सादगी में सौंदर्य है ।
आपको काहे दुखती रग पर हाथ पैर दिख रहा जब बगल में रखें हैं अपनी ख्वाहिश। 😄😄😄😄
आपकी बतकही पर बस यूं ही .....
आदरणीय दीदी...
जवाब देंहटाएंसादर नमन..
समय की नजाकत को देखते हुए
आपका सही कदम काबिले तारीफ है
साधुवाद..
सादर नमन..
🙏🙏
हटाएंसादर नमन आदरणीया दीदी. स्थिति सँभालने के लिए सादर आभार.
जवाब देंहटाएंरविन्द्र भाई ,
हटाएंयूँ भार न चढ़ाएँ ।🙏🙏🙏
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअब आप लोगों के सरस और मोदक बतरस से फुरसत मिले तब तो लोग रचनाओं की ओर रुखसत करें।
जवाब देंहटाएंफिर भी, बहुत सुंदर संकलन और बधाई!🌹🌹🌹
कुछ यादें ताज़ा हो गईं। पांच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्रों का चयन आज के संकलन में ! मेरा लिखा भी आपको भाया आपका ह्रदय से बहुत बहुत आभार ! सप्रेम वन्दे संगीता जी !
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं"पांच लिंकों का आनंद" मेरी कविता को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं हार्दिक आभार संगीता स्वरूप जी 🌹🙏🌹
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र सिंह यादव जी को भी आभार 🌹🙏🌹
बहुत आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए और शीर्षक चुनने के लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा संकलन है ...
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत उत्तम संकलन👌👌
जवाब देंहटाएं