नमस्कार ...... आज जब सूरज देवता को अर्घ्य चढ़ा छठ संपन्न हुई होगी तो कितनी तृप्ति मिली होगी ...... इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है ........ छठी व्रतियों को बहुत शुभकामनाएँ ..... करीब चार वर्ष झारखण्ड में रहने के कारण इस व्रत की महिमा का आभास हुआ ........ बाकी तो जो है सो है , लेकिन ठेकुए बहुत याद आते हैं ..... चलिए प्रसाद को याद कर ही समझ लेंगे कि प्रसाद प्राप्त हुआ ....... आइये चलें ब्लॉग्स की सैर पर ...... और इस सैर पर जाते हुए सबसे पहले आप सैर कीजिये .......
दिल्ली हाट
दिल्ली वाले तो शायद घूम ही चुके होंगे दिल्ली हाट . | बाकी लोग भी वहाँ की जानकारी के साथ सैर कर लीजिये ...... ऐसी सैर में अक्सर बहुत कुछ यादें भी शामिल हो जाती हैं ....... और ऐसे ही एक पुस्तक के बारे में जानकारी लीजिये ....... जो संस्मरण का लेखा जोखा है .....
तब जब मैं बनाती थी पापा के लिए भांग के पकौड़े
मां के न होने पर या होते हुए भी न होने पर
निकालूं नानी की दी वो नन्ही बिंदिया
उन्हें छू कर महसूस करूं, सजा लूं माथे पर
खुले आकाश पाने की नन्ही सी ख्वाहिश ......... लेकिन शायद आकाश का दामन भी छोटा पड़ जाता है ..... तभी न ऐसे भाव भी उमड़ते हैं ......
मेरी दहलीज़ पर
आँचल से लिपटी रातें सीली-सी रहतीं
मेरे दिन दौड़ने लगे थे
उँगलियाँ बदलने का खेल खेलते पहर
वे दिन-रात मापने लगे
सूरज का तेज विचारों में भरता
मेरा प्रतिबिम्ब अंबर में चमकने लगा .
भले ही जीवन में कितनी ही विषमतायें हों फिर भी उम्मीद की कड़ी जुडी रहती है सपनों से ...... बस सपने पूरे हों या नहीं ....लेकिन सपने होने चाहिएँ ....... पढ़िए खूबसूरत रचना ...
सपने आते हैं जैसे
उकेरती हैं उँगलियाँ गीली माटी में
रूहानी सी लकीरें .
गीला मन माटी सा .
सपने उस पर लिख देते हैं .
एक और गीत
उम्मीद का , इन्तज़ार का .
सपनों से इतर ......... जब यथार्थ का सामना होता है तो खुद को तैयार रखना पड़ता है ..... सही गलत का निर्णय भी लेना पड़ता है ....... इसी को समझाते हुए एक रचना .....