हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
तितली अंतिम...हाँ एकदम अंतिम...इतने भरेपूरे, सुर्ख और चमकदार पीतवर्णी
लगता है जैसे सूरज के आँसू गा रहे हों
किसी झक सफ़ेद चट्टान पर बैठ कर गीत....
ऐसे चकित करने वाले पीतवर्णी तितली
उठते हैं ऊपर हवा में हौले हौले...
मुंह बरसाने वाला है,
बाहर जब पर होंगे गीले,
धुल जाएंगे रंग सजीले,
झड़ जाएगा फूल, ना तुझको
बचा सकेगा छोटी तितली बदल रहे
हर रोज ही, हैं मौसम के रूप !
ठेठ सर्द में हो रही, गर्मी जैसी धूप !!
सूनी बगिया देखकर, तितली है खामोश !
जुगनूं की बारात से, गायब है अब जोश !!
दें सुनाई अब कहाँ, कोयल की आवाज़ !
बूढा पीपल सूखकर, ठूंठ खड़ा है आज !!
हमेशा की तरह लाजवाब अंक
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
बहुत अच्छी हलचल
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति प्रिय दीदी।तितली कुछ साल पहले तक बचपन का सबसे बड़ा आकर्षण थी।बगिया का शृंगार आज भी तितली से है पर उसकी कोमलता और सौंदर्य को निहार कर आहलादित होने वाली मासूम आँखें मोबाइल की नकली दुनिया में आत्म मुग्ध हो खोयी हैं।फिर भी कोमलांगी और चपल तितली सृष्टा की अनुपम कृति है।सभी रचनाकारों ने अपनी सुन्दर रचनाओं में तितली के सौंदर्य को अपनी -अपनी दृष्टि से निहारने का प्रयास किया है ।सभी को सादर नमन और बधाई।आपको इस सुन्दर अंक के लिये विशेष आभार और प्रणाम 🙏🙏🌹🌹♥️♥️
जवाब देंहटाएंपाँच लिंक मंच के लिए लिखी गई मेरी एक कविता------
जवाब देंहटाएंओ री तितली!!
डाल- डाल पे फिरे मंडराती
बनी उपवन की रानी तितली ,
हरेक फूल को चूमें जबरन
तू करती मनमानी तितली !
प्रतीक्षा में तेरी फूल ये सारे
राह में पलक बिछाते हैं ,
तेरे स्पर्श से आह्लादित हो
झूम - झूम लहराते हैं ,
पर मुड़ तू ना कभी लौटती
मरा तेरी आँख का पानी तितली !
खिले फूल की रसिया तू
रस चूसे और उड़ जाए ,
ढूंढ ले फिर से पुष्प नया इक
बिसरा देती फूल मुरझाये ,
इक डाल पे रात बिताये-दूजी पे
उगे तेरी भोर सुहानी तितली !!
स्वछंद घूमती,तू बंधती ना ,
कभी किसी भी बंधन में ,
निर्मोही , कुटिल और कामी तू !
है निष्ठुर और निर्मम मन से ,
क्या जाने तू मर्म प्यार का ?
जाने क्या प्रीत रूहानी तितली ! ?!बसाहट
जिन सुंदर पंखों पे इतराती तू
इक दिन सूख कर मुरझा जायेंगे ;
टूट- टूट अनायास फिर
संग हवा के उड़ जायेंगे ;
फूल की भांति हर शै मिट जाती
सुन ! ये दुनिया है फ़ानी तितली !!
🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹
रचना का लिंक 🙏
https://renuskshitij.blogspot.com/2018/01/blog-post_27.html
तितली को धीरे धीरे चुपके चुपके पकड़ लायी हैं आप । सुंदर रचनाएँ । एक तितकी पकड़ने गए तो बच्चों की ढेर सारी कविताएँ पढ़ने को मिल गयीं 😄 उम्दा प्रस्तुति ।
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