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सोमवार, 3 अक्टूबर 2022

3535 / पहली मुलाकात ..... मैं अब भी सोचता हूँ

 

नमस्कार !  आज जिस समय ये पोस्ट बना रही हूँ तो दिमाग में  और  ब्लॉग्स पर भी गाँधी जी और शास्त्री जी छाये हुए हैं ..... बस अब ये नाम केवल तिथियों में ही सिमट कर रह गए हैं ..... सच तो ये है  कि वक़्त के साथ हर एक के विचार भी बदलते रहते हैं ....... ज़िन्दगी में कब क्या जान कर विचार परिवर्तित हो जाएँ नहीं कहा जा सकता ......बचपन से पढ़ते आये कि - दे दी हमें आज़ादी , बिना खड्ड - बिना ढाल ......... लेकिन क्या यही सत्य है ?  आज इस पर कोई वाद - विवाद नहीं ........२००९ में ऐसे ही पढ़ते सोचते कुछ यह विचार मन में बना था ....

 गाँधी -

नाम  नहीं  है
एक व्यक्ति का ,
है पूरी की पूरी
विचार धारा
जिसने दिया
सत्य - अहिंसा का नारा ।

आज शायद हम
मात्र नारा याद करते हैं
लेकिन
भूल गए हैं
इस बात का सत्व
आतंकवाद और
मार - काट को ही
हिंसा समझ रहे हैं।

गाँधी के विचार से -
किसी का मन दुखाना
हिंसा ही है...

 संगीता स्वरुप ..


 उन दिनों बहुत ब्लॉग पढ़े जाते थे और कोई न कोई रचना मन को झकझोर देती थी ...... ऐसी ही एक रचना यदि आप पढना चाहें तो यहाँ पढ़ सकते हैं .. 



जिसको 
पाने की चाह में 
एक मजदूर 
करता है दिहाडी 
और जब शाम को 
कुछ मिलती है 
हरियाली 
तो रोटी के 
चंद टुकड़ों में ही 
भस्म हो  जाती है .

आज  न जाने क्यों यह आप सबको  पढ़वाने का मन हुआ .... १० वर्ष पहले की लिखी रचना में  और आज के वक़्त में कोई  विशेष अंतर महसूस नहीं होता . गाँधी जी के व्यक्तित्व के आगे हमारे स्वतंत्र देश के दूसरे प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के विषय में कम ही बात हो पाती है .... कद से भले ही कम रहे हों लेकिन निर्णय की दृढ़ता में उनका सानी कोई नहीं .....उनके बारे में जानकारी पढ़िए ...

जय जवान ! जय किसान


शास्त्री जी के बचपन के इन संघर्षों से भरे दिनों के किस्सों को सब कहानी की तरह पढ़ कर भूल भी जाते हैं ! शायद इसीलिये कि उनके जीवन के प्रसंगों को ना तो किसी पाठ्य पुस्तक में स्थान मिलता है, ना ही उनके ऊपर किसी फिल्मकार को कोई फिल्म बनाने की प्रेरणा हुई है कदाचित इसलिए कि कहीं यह घाटे का सौदा ना बन जाये ! उनके व्यक्तित्व के ऊपर कभी कोई सार्वजनिक चर्चा भी आयोजित नहीं की गयी ....

ब्लॉग भ्रमण करते हुए आज एक बाल कविता दिखी जो  गाँधी और शास्त्री जी को समर्पित है ....

गांधी जी के प्यारे हो

 भारत मां के दुलारे हो

 तुम ही उगते सितारे हो.

 शास्त्री जी के थे अरमान

  बढे देश की हरदम आन

  विश्व गांव में हो पहचान

और इस बाल कविता के बाद ज़रा पढ़ें कि आखिर गाँधी  भारत  के लिए क्या सोचते थे ....... उनके मन में आज़ाद देश की कैसी छवि थी जो आज केवल सपना ही बन कर  रह  गयी है .

गाँधी जी के सपनों का भारत


जहाँ हर नागरिक को समानता का अधिकार मिलेगा   

मिट जायेगा अस्पृश्यता का नामोनिशान 

शिक्षा के वरदान से हर बच्चे का सामर्थ्य  खिलेगा

दिया जायेगा सत्य और अहिंसा के मूल्यों को पूरा सम्मान 


 अब सपना तो बस सपना ही होता है ....... लोग यथार्थ भी देखते हैं ....और यथार्थ देखते हुए पढ़िए एक गीत

 .... 

गाँधी जी का नजराना..गीत


कहे तराज़ू लाओ उनका चश्मा तोलें,

लेंस लगा है या शीशे का,पर्तें खोलें 

देख रहा सब वो भी होगा पर चुपके से,

निष्कर्षों के घालमेल में मिर्ची घोलें 


अब गाँधी का नजराना क्या ? मैंने तो गाँधी पिक्चर  में देखा था कि आज़ादी के बाद भी अपनी बात मनवाने के लिए गाँधी बाबा अनशन पर थे तो एक व्यक्ति अपने फेंटे  में से रोटी उछल कर उनकी तरफ फेंकता है .... आपको भी याद होगा ..... खैर यहाँ बात रोटी की हो रही है कि भूख का रिश्ता क्या होता है ..... 


वैसे तो रोटी का आकार 

कुछ भी हो सकता है,

पर भूखे लोगों को भाती हैं 

गोल-गोल रोटियाँ. 

रोटी गोल होती है,


वैसे सही है रोटी गोल हो या चौकोर भूख तो मिटा ही देगी , फिर भी न जाने क्यों रोटी गोल ही अच्छी लगती है ..... शायद मानसिकता ही है ये .......रही मानसिकता की बात तो सच हर जगह ही मानसिकता ही है जो सबके व्यवहार को प्रभावित करती है .... बच्चों में एक लडके के माता -पिता की मानसिकता एक लड़की के माता- पिता से भिन्न होती है ..... नहीं लगता आपको ? चलिए जा कर पढ़िए ये लघु कथा ....

पहली मुलाक़ात


इतने में लड़के को याद आया कि मम्मी ने कहा था- मिस को गुड मॉर्निंग कहना और सबसे बात करना। लड़का मन ही मन बुदबुदाया- मिस से गुड मॉर्निंग तो कह दी पर बात किससे करूँ, यहाँ तो सब रो रहे हैं।

अब यह मत सोचिये कि केवल बच्चे ही स्कूल जाते रोते हैं .......वो तो पहली बार घर से निकल नए वातावरण में जाते हैं तो असुरक्षा की भावना हावी हो जाती है ....लेकिन बहुत बार बड़े लोग भी जीवन में न जाने क्यों निराश होने लगते हैं ..... ऐसे ही हमारे एक पुराने ब्लॉगर साथी  रहे हैं ...... उन्होंने तो अपना पूरा  ब्लॉग ही छुपा दिया था ..... खैर अभी फिर मन की सुगबुगाहट  को शब्द देने शुरू करें हैं ....  तो आज  ले चल रही हूँ उनके ब्लॉग पर .

मैं अब भी सोचता हूँ...



मैं चुपचाप हूँ,
इसलिए नहीं कि
कहने को कुछ नहीं,
बल्कि इसलिए कि
कुछ कहे-सुने
के दरम्यान
मेरी धड़कनें खो जाती है….

 आज के लिए बस इतना ही ....... सभी व्यस्त हैं  नवरात्रि में ...... तो पढने के लिए कम ही देना चाहिए ...... फिर भी शायद कुछ ज्यादा ही हो गया .......  अभी जब पोस्ट की संख्या लिखी तो  मुहावरा ध्यान आ गया ....... ज्यादा तीन पाँच न करो .......... 😅😅


सबको दुर्गा पूजा , और  दशहरा  क हार्दिक शुभकामनाएँ .



नमस्कार 

संगीता स्वरुप . 












23 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमन
    आज का अंक
    वास्तविक गांधी-शास्त्री अंक ही है
    कल तो हम चलताऊ अंक बना दिए थे
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. यशोदा ,
      इस मंच पर चलताऊ कुछ नहीं होता । तुम्हारी मेहनत ही है जो ये मंच निर्बाध चल रहा है ।
      आभार ।

      हटाएं
  2. सुंदर प्रस्तुति.आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. गाँधी और शास्त्री जी को नमन
    और आपका वंदन

    ज्यादा तीन पाँच न करते हैं
    उम्दा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. गाँधी जी और शास्त्री जी मय आज के अंक में मन पाए विश्राम जहाँ को स्थान देने के लिए आभार संगीता जी, महापुरुष कभी भी अप्रासंगिक नहीं होते, उन्हें बार-बार याद किया जाएगा और पढ़ा जाएगा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सही में कि महापुरुषों को बार बार पढ़ा जाएगा और उनके विचारों का विश्लेषण भी किया जाएगा । किसी के भी कुछ कहने से उनकी गरिमा कम नहीं होगी । आभार अनिता जी ।

      हटाएं

  5. बहुत सुन्दर कविताओं, आलेख, लघुकथा से सुसज्जित गाँधी जी व शास्त्री जी को समर्पित सुन्दर अँक…!
    -संगीता जी की मर्मस्पर्शी कविता `मुस्कुराती तस्वीर ‘ बहुत सुन्दर रचना…!
    -जय जवान जय किसान …शास्त्री जी पर साधना जी का बहुत महत्वपूर्ण आलेख !
    -भारती दास जी की कविता गाँधी जी के तीन बन्दर…सुन्दर कविता..!
    -अनीता जी की गाँधी जी के सपनों का भारत …सपनों के जगाती एक कविता…!
    जिज्ञासा जी की कविता-गाँधी जी का नजराना बहुत सुन्दर भावपूर्ण कविता…!
    - ओंकार जी की रचना - रोटियाँ- मर्मस्पर्शी रचना…!
    - शेफालिका जी की बाल मनोविज्ञान को दर्शाती बहुत सुन्दर लघुकथा ..!
    - शेखर सुमन की एक पंक्ति ने ही दिल चुरा लिया…`जब रात को बहुत तेज नींद आती है न, तो मैं चाय में चाँद घोर कर पी जाया करता हूँ…’ पता नहीं क्यों ब्लॉग पर लिखना छोड़ दिया कितना सुन्दर लिखते हैं ।
    - सभी रचनाकारों और संगीता जी को बहुत शुभकामनाएँ और बधाई मेरी तरफ़ से भी🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उषा जी ,
      आज तो आप प्रथम ही आ गईं लगता है । विशेष ख्याल रखा जिससे हाँफ न जाएँ पढ़ते पढ़ते । 😄😄😄
      सभी रचनाओं पर आपकी विशेष टिप्पणियाँ इस प्रस्तुति को सार्थकता प्रदान कर रही हैं ।
      हार्दिक आभार

      हटाएं
  6. बापू, शास्त्री जी पर फोकस्ड हलचल। बहुत बढ़िया।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर, पठनीय अंक !आजकल थोड़ी व्यस्तता है, पढ़कर फिर उपस्थिति होगी,
    नमन आपको🌺🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जानती हूँ आज कल सब व्यस्त हैं । इंतज़ार रहेगा । आभार

      हटाएं
  8. अत्यंत सुन्दर संकलन संगीता जी ! आप वाकई सूत्रों का चयन करते हुए बड़ी सूक्ष्मता के साथ कई बातों का अध्ययन विश्लेषण करती हैं ! मेरे आलेख को आज की हलचल में सम्मिलित किया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार संगीता जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. साधना जी ,
      प्रस्तुति आपको पसंद आई , प्रशंसा हेतु आभार ।

      हटाएं
  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति
    आपको भी दुर्गा पूजा तथा दशहरा की ढेरों शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  10. हार्दिक शुभकामनाएँ वैचारिक और मननीय प्रस्तुति के लिए।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रस्तुति को मान देने के लिए हार्दिक आभार , अमृता ।

      हटाएं

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