ये जलवे फिज़ा के ये शब की गहनाई
मंज़र वही पर रौनक़े-महफ़िल नहीं है
हसी ग़ुंचे वही सबा पेशे गुलशन वही है
मगर जलवा-ए-नुरेज-अज़ल वो नहीं है ,
चटकनियाँ चढ़ा के बैठे हो,
तुम्हारे हाथ मे कुछ नही
ये किस कंठ से कहते हो!
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ये जलवे फिज़ा के ये शब की गहनाई
जवाब देंहटाएंमंज़र वही पर रौनक़े-महफ़िल नहीं है
शानगार अंक
आभार
सादर
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स चयन
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंयूँ तो उपहारों की आवश्यकता नहीं होती , लेकिन उपहार अपने मन के भावों का प्रेषण भी होता है । लेकिन आज कल एक सीधे सादे त्योहार को बाज़ार वाद में शामिल कर लिया गया है उसे देख आश्चर्य ही होता है । DDLJ ने करवाचौथ को न जाने कौन से मुकाम पर पहुँचा दिया है । हमारे यहाँ तो चाँद की पूजा होती है पति की नहीं । हाँ उनके लिए प्रार्थना होती है । आज कल तो ये त्योहार मीडिया पर किस कदर छाया रहता है ।
जवाब देंहटाएंदिखावे से बच कर उल्लास से त्योहार मनाने में सार्थकता है ,वरना तो बेवकूफ बनाने वाले बहुत हैं बस बनने वाले होने चाहिए ।
सार्थक भूमिका के साथ उम्दा लिंक्स का चयन किया है । आभार ।
प्रिय श्वेता, उपहारों के आदान-प्रदान की परम्परा पुरानी है पर मुझे लगता है कि प्रेम में उपहारों की जरुरत ज़रा भी नहीं है पर जरूरतें ना पैदा की जाएँ तो बाज़ार का विस्तार समाप्त हो जाता है।और सच कहा तुमने अवचेतन मन के किसी कोने में अपेक्षाओं के घर होते ही हैं।आम वर्ग में बढ़ाती संपन्नता ने भी उपहारों देने की भावनाओं को गति दी है।आज ये मानसिकता व्यक्ति और समाज में जड़ें पसार रही है कि उपहार नहीं तो प्यार नहीं जो चिन्ता का विषय है ।खैर,इस विषय को भूमिका में विमर्श के लिए रखने के लिए शुक्रिया।इसी बहाने मुझे भी अपनी बात कहने का मौका मिला।मर्मस्पर्शी कथा और भाव काव्य रचनाओं के साथ सजे सुन्दर लिंक संयोजन के लिए बधाई और शुभकामनाएं।सभी रचनाकार भी बधाई के पात्र हैं।♥️🌹
जवाब देंहटाएंश्वेता जी सुंदर, शानदार भूमिका आपके संकलन में चार चांद लगा देती है, करवा चौथ पर सुंदर सामयिक प्रस्तुति । पठनीय और सार्थक रचनाएँ। मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार।
हटाएंसामयिक और विचारणीय प्रश्न उठाया है आपने।
मेरे हिसाब से हमारे त्यौहार मूल्य,संस्कृति और परंपरा का का संवर्धन के लिए बने हैं,परंतु आज के समय में हर दूसरा इंसान दिखावा ज्यादा और परंपरा कम निभा रहा है, त्योहार के नाम पर गिफ्ट और बाहर जाने का चलन है, हमारे यहां तो करवा पे अब बाहर ही भोजन करने की परंपरा का जन्म हो रहा है ।
कुछ बदलाव का स्वागत होना चाहिए पर दिखावे में गिफ्ट देने की परंपरा सही नहीं, जो करें वो मन से करना चाहिए ।
...नित नवीन पर्व आप सबके जीवन में आते रहें मेरी शुभकामनाएं🌹🌹❤️❤️
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!!!
जवाब देंहटाएंमेरी अभिव्यक्ति को इस अद्भुत प्लेटफॉर्म पर स्थान देने हेतु ब्लॉग प्रबधंन से संबंधित सभी आदरणीयों एवं सभी सुधि पाठकजनों का भी हार्दिक आभार।
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