निवेदन।


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रविवार, 6 अक्तूबर 2024

4268 पद्मा नदी भी अपने तेज बहाव के साथ नाचती हुई जा रही थी

 सादर नमस्कार


अक्टूबर का पहला रविवार



एक से बढ़कर एक राजा-महाराजा आते हैं। सभी गिनती सुनाते हैं, जो उन्होंने पढ़ी हुई थी, लेकिन कोई भी ऐसी गिनती नहीं सुना पाया जिससे राजकुमारी संतुष्ट हो सके।

अब जो भी आता, कोड़े खाकर चला जाता। कुछ राजा तो आगे ही नहीं आए। उनका कहना था कि गिनती तो गिनती होती है, राजकुमारी पागल हो गई है। यह केवल हम सबको पिटवा कर मज़े लूट रही है। यह सब नज़ारा देखकर एक हलवाई हंसने लगा। वह कहता है, "डूब मरो राजाओं, आप सबको 20 तक की गिनती नहीं आती!" यह सुनकर सभी राजा उसे दंड देने के लिए कहने लगे।

राजा ने उससे पूछा, "क्या तुम गिनती जानते हो? यदि जानते हो तो सुनाओ।" हलवाई कहता है, "हे राजन, यदि मैंने गिनती सुनाई तो क्या राजकुमारी मुझसे शादी करेगी? क्योंकि मैं आपके बराबर नहीं हूँ और यह स्वयंवर भी केवल राजाओं के लिए है, तो गिनती सुनाने से मुझे क्या फायदा?"

पास खड़ी राजकुमारी बोलती है, "ठीक है, यदि तुम गिनती सुना सको तो मैं तुमसे शादी करूँगी और यदि नहीं सुना सके तो तुम्हें मृत्युदंड दिया जाएगा।"



चौदह-पंद्रह साल के ब्लॉग लेखन से जाहिर है काफी कुछ अच्छा-बुरा एकत्रित होना ही था ! अंदर-बाहर से सलाह भी दगने लगीं थीं कि ब्लॉगों को पुस्तक का रूप दे दिया जाए ! इसमें सब  से अग्रणी थी बिटिया सांसे ! नागपुर से जब भी फोन पर बात होती, उसका पहला प्रश्न होता, ताऊजी बुक का क्या हुआ ?
पर अपने मन में भी यह आशंका रहती ही थी कि तकनीकी में कभी कुछ ऐंड-बैंड हो गया, तो सब हवा-हवाई ही ना हो जाए ! पर झिझक का क्या करें जो आशंकित करती रहती थी कि पता नहीं कोई पढ़ेगा भी की नहीं ! पर भले ही अपना दही खट्टा ही हो, कढ़ी तो बनाई जा ही सकती है, सो एक दिन स्वांतः सुखाय खातिर चढ़ ही गए झाड़ पर 




वक्त पर गर
हो जाये कार्य
न हो व्यवस्था
तार तार

तो लक्ष्य और सपने
हो सब साकार ।




ब्रह्मचर्य की साधना धीरज संयम जानिए।
सदाचार एकाग्रता, पूजन विधि ये मानिए।।

स्वाधिष्ठानी चक्र को,साधक मन जागृत करे।
विचलित चंचल मन सधे,शांत भाव झंकृत करे।।






हमारा ड्राइवर दक्षता से गाड़ी चला रहा था, चारों ओर हिमाच्छादित पर्वतों की चाँदी सी चमकती चोटियां दिखाई दे रही थीं।दूर से ही वह जल प्रपात दिखायी दे रहा था, जहां हमें जाना था । घुमावदार सड़क से नीचे उतारते हुए ड्राइवर ने हाइड्रो पावर प्लांट के सामने ले जाकर गाड़ी रोक दी। वहाँ से दायीं और नज़र डाली तो जो दृश्य हमने देखा, वह अविस्मरणीय था। एक ऊँचे पहाड़ से दूध सा फेनिल विशाल जलप्रपात गिर रहा था, उसका शोर भी दूर से सुनाई दे रहा था। फुहारों की चादर सी तन गई थी। रास्ते में आने वाली चट्टानों पर ज़ोर से गिरता, ध्वनि करता झरना अपने वैभव का भरपूर प्रदर्शन कर रहा था। हम सीढ़ियों से उतरकर नीचे गये, झरना जहां जमीन को छू रहा था। उस के सामने ही पद्मा नदी भी अपने तेज बहाव के साथ नाचती हुई जा रही थी,


बस

शनिवार, 5 अक्तूबर 2024

4267 रफ्ता रफ्ता सर के बाल हुए हलाल,

 सादर नमस्कार


अक्टूबर का चौथा दिवस




दिग दिगंत
सुरभित प्रेम से
दिव्य है भाव
सागर से गहरा
आकाश से व्यापक !

 
प्रीत की ज्योत
सदा बाले रखना
उर अंतर
तृप्त रहेगा मन
आलोकित जीवन !






आँखों में निज ऊर्जा की पहचान लिए
आगे बढ़ते जाने का अरमान लिए,
अधरों पर नवल विजय की मुस्कान लिए
नारी भारत की आशा की ख़ान लिए !

रोक सके ना कोई बाधा अब इसको
वह सबला है जग कहता अबला जिसको,
नहीं चाहिए अब गहनों का कारावास
उसे चाहिए खुली धरा खुला आकाश !






इश्क भी है और बेपरवाह भी हूँ,
सुकून भी है और तबाह भी हूँ,
बड़ी तबियत से क़त्ल हुआ मेरे इश्क़ का,
मैं मुज़रिम भी हूँ और गवाह भी हूँ।

मुझे काली घटा का शोर सुनना पसंद नहीं,
अगर बरसना है तो खुलकर बरसो।
बेवफ़ाई करने की इतनी जल्दी क्यों थी?
तड़पना है तो अब खुलकर तड़पो।




बेटी,
तुम फूल जैसी हो-
सुंदर, सुगंधित,
पत्ते जैसी हो-
कोमल, जीवंत,
जड़ जैसी हो-
गहरी,मज़बूत,
तने जैसी हो-
बोझ उठानेवाली,
डाली जैसी हो-
हवा में फैलनेवाली।




रफ्ता रफ्ता सर के बाल हुए हलाल,
बचे खुचे सूरजमुखी से बिखरने लगे हैं,
और पत्नी कहती है, अब आप ज्यादा निखरने लगे हैं।

सूखी फसल बालों की, बची खरपतवार,
उसे भी खिज़ाब से काला कर बंदर लगने लगे हैं,
और पत्नी कहती है, अब आप ज्यादा सुंदर लगने लगे हैं।

बस

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2024

4266....संबंधों में अनुबंधों की...

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।

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भारतीय दर्शन में देवी को शक्ति का दिव्य रुप माना गया है।  
सृष्टि के सृजन में परम तत्व शक्ति ही है।
भारतीय अध्यात्म के अनुसार मन-बुद्धि में व्याप्त अज्ञान,काम,क्रोध, लोभ,मोह को नाश करने हेतु मातृ शक्ति का आहृवान किया जाता है 
मन में स्थित ज्ञान ज्योति को शक्ति का सकारात्मक रुप मानकर 
जगाया जाता है ताकि मन के सारे विकारोंं से मुक्त होकर जीवन 
लोक कल्याण के लिए कर्म को तत्पर हो सके।
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आज की रचनाएँ

किस किस की मैं बात बताऊँ 
एक राज की बात बताऊँ 
दादी ने जब दही गिराया 
बाबा बोले,  को को को !


कच्ची सी धूप को 

 वक़्त पर पकना ही था

व्यवहारिक से दायरों में

हम सबको बँधना ही था 

संबंधों में अनुबंधों की 

कहानी दोहराई जाएगी





दूर करो माँ यह अंधकार
जो लील रहा अस्तित्व मेरा !
सूझता नहीं मुझे पथ मेरा !
इस जग में है ही कौन मेरा
जिसको पुकार कर बुलाऊँ ?
अंतर का हाहाकार सुनाऊँ ?
अपनी कृपा दृष्टि का दीप जला
मुझे आगे का मार्ग दिखाओ ।



तमाम उम्र सुलगती है हिज्र की सिगड़ी ।
धुआं जरा सा उड़ाओ कि ग़म की बात चले ।।

कभी सुकून मिला है कहीं दिल-ए-मुर्दा ।
सुकूँ पे ख़ाक उड़ाओ कि ग़म की बात चले।।



वैसे ही जैसे
तुमने ठीक से देखा नहीं कि
मछलियाँ पानी के प्रवाह के
विपरीत नहीं तैरती,
वे अपने प्रस्थान बिंदु
उस अथाह सागर में फिर से 
मिलने दौड़ती हैं
जहाँ से वे बिछड़ी थीं।


जितनी बार उसे उतारा जाता

उसके शरिर मे एक नस टूट जाती

चमड़ी से कुछ लहू नजर आता

जितनी बार उसे उतारा जाता

उसके नाखुनों से भूमि कुरेदी जाती



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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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गुरुवार, 3 अक्तूबर 2024

4265...राष्ट्रपिता कहलाता था वह...

शीर्षक पंक्ति:आदरणीय प्रफ़ेसर गोपेश मोहन जैसवाल जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच चुनिंदा रचनाएँ-

गांधी जयन्ती

भारत दो टुकड़े करवाया,

शत्रु-देश को धन दिलवाया,

नाथू जैसे देश-रत्न को,

मर कर फांसी पर चढ़वाया.

राष्ट्रपिता कहलाता था वह,

राष्ट्र-शत्रु पर अब कहलाए,

बहुत दिनों गुमराह किया था,

कलई खुल गयी वापस जाए.

*****

अंबे तुम्हें मनाके..

यह राग यूं जमा के,

कदमों में सर झुका के।

फरियाद में करूँगा ,

ले दे कर कुछ टरूँगा ।।

अंबे.............

*****

1434-अग्रजा की याद में

हर बार ऐसा हुआ है

कि जब तुम याद आई हो

तो जो भी मिला मुझसे

उस शख़्स के आगे

तुम्हारी हर बात

दुहराई शिद्दत से

इस बात से बेख़बर

कि कौन समझेगा उस बात को

*****

प्रथम पूज्य गणेश

एक दिन देवों ने रखी प्रतियोगिता विचार के ओ s s s s

तीन लोक की परिक्रमा पहले करेगा तीन बार जो ओ s s s s

प्रथम पूज्य वह देवता होगा, बात बहुत है भारी

अजब हैरान.........

सुनकर देवों ने आस लगाए

*****

बदनसीब है बार एसोसिएशन कैराना

बदनसीब है बार एसोसिएशन कैराना जिसने पूरे वेस्ट यू पी में एक मजबूत पहचान देने वाले, कैराना के अधिवक्ताओं को सुरक्षित भविष्य देने वाले और अधिवक्ताओं के दुख में साथ खड़े रहने वाले, कैराना कचहरी के अधिवक्ताओं को ही अपना परिवार समझने वाले स्व बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट के त्याग, मेहनत, ईमानदारी का अपमान कर ऐसे व्यक्तित्व के दोबारा जन्म लेने पर ही रोक लगा दी. आज पितृ विसर्जनी अमावस्या के दिन मैं तो यही कहूँगी कि इस धरती पर कभी भी जन्म न लें मेरे पिता जैसे लोग ताकि कभी भी किसी भी संस्था को अपना सब अर्पण कर ऊंचा उठाने वाला व्यक्ति न मिले.

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

बुधवार, 2 अक्तूबर 2024

4264..अहिंसक शस्त्र..

 ।।प्रातःवंदन।।

2 अक्‍तूबर महात्‍मा गांधी का जन्‍मदिन... सियासी गलियारों से लेकर सामाजिक चौखटों तक शांति का पाठ.. सच तो ये है कि आसान कहाँ है महात्मा गाँधी बनना ..

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर शुभकामनाएँ .इसी के साथ चर्चा को आगे बढाते हुए..

 प्रभावकारी अहिंसक शस्त्र


मौन धारण

गांधी जी प्रायः सप्ताह में एक दिन मौन धारण किया करते थे और दिन होता था सोमवार। इसके द्वारा वे अपने गले को सुरक्षित रखना चाहते थे और अपने शरीर में साम्य। अपना मौन वे दो ही परिस्थिति में तोड़ 

मिट जाएँगे संशय उर से 


झाँकें कान्हा के नयनों में

प्रेम समंदर एक झलकता, 

डूब गई थी राधा जिसमें ..

✨️

मिनिमल लाइफ गारंटी

हम जी रहे हैं

कार्पोरेट लव

कार्पोरेट फीलिंग्स

कार्पोरेट रिलेशनशिप..

✨️

मैं रुक ही नहीं सकती!

बढ़ने दो मुझे,

मैं रुक ही नहीं सकती,

किसी भी बेड़ी में बंध ही नहीं सकती,

वक़्त कम है, मैं थम ही नहीं सकती।  

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2024

4263..रंग होते हैं देखने वाले की आँखों में

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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ऋतुओं का संधिकाल सृष्टि के अनुशासनबद्ध परिवर्तन चक्र का प्रतिनिधित्व करता है।

भादो के साँवले बादल, लौटती बारिश की रिमझिम झड़ी क्वार यानि आश्विन की पदचाप की धीमी-सी सुगबुगाहट से हरी धरा की माँग में कास के श्वेत पुष्षों का शृंगार  

अद्भुत स्वार्गिक अनुभूति देती है।

नरम भोर ओर मीठी साँझ के बीच में धान के कच्चे दानों सा दिन।

शारदीय नवरात्र के उत्सव के पूर्व आपने कभी देखा है नौजवान ढाकियों को अपने तासे में कास के फूल खोंसकर तन्मयता से  झूमते हुए? 

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आज की रचनाएँ

रंग


दरअसल रँग होते हैं तो देखने वाले की आँख में
जो जागते हैं प्रेम के एहसास से
जंगली गुलाब की चटख पंखुड़ियों में




सृष्टि की संजीवनी वृष्टि


फूल बोले सहमति में 
सिर हिलाते, खिलखिलाते.. 
हम भीगे और भीज के
कुम्हला भी गए तो क्या ?
भरपूर खिले, बिखेरी छटा
प्यास बुझा कर तृप्त हुए !
अब सूखी मिट्टी भी नम हो,
वर्षा के जल से सिंचित हो,
सघन वृक्षों की जङें सिंचें ।


अवगाहन

प्रणय का प्रतिफलन, बिंदु -
बिंदु जीवन भर का
एक अमूल्य
संकलन,
डूब
कर भी किसी और जगह
एक नई शुरुआत,
बारम्बार जन्म
के पश्चात
भी नहीं
मिलती


सांख्य योग


केशव अर्जुन को कहे, चिंता तेरी व्यर्थ । 
तू अधकचरे ज्ञान से, करने लगा अनर्थ ।।

झलके तेरी बात में, बहुत बड़ा पांडित्य ।
पर मर्म समझता नहीं, है आत्मा तो  नित्य ।। 

इतना ज्यादा सोच मत, मन को थोड़ा रोक।
अर्जुन ! नश्वर देह का, ठीक नहीं है शोक ।। 


देव का दूत


असमंजस में पड़े,
हकबका गए,
सुर असुर यक्ष राक्षस  
हर एक को किया है
अपनी वाणी के वश।
पर मनुष्य पर किसका वश।
इंसानों का पर देवलोक में भी 
रिकॉर्ड बड़ा खराब है 
इंद्र देव के कड़े हैं इंस्ट्रक्शनII,
न मुंह लगें मानवों के,

मति इनकी बर्बाद है।


सब क्या सोचेंगे...


देख मोना ! मुझे गुस्सा मत दिला ! बंद कर ये खेल खिलौने ! और चुपचाप पढ़ने बैठ !  कल तेरी परीक्षा है, कम से कम आज तो मन लगाकर पढ़ ले" !

"वही तो कर रही हूँ मम्मी ! मन बार -बार इसके बारे में सोच रहा था तो सोचा पहले इसे ही तैयार कर लूँ , फिर मन से पढ़ाई करूँगी" ।


 "साहिब" से छेड़छाड़...



विभिन्न स्रोतों में उपलब्ध विवरणों से जो जानकारियों मिलीं, वे साफ करती हैं कि मूल शब्द ''साहिब'' अरबी भाषा का है। जिसका अर्थ है, ईश्वर के समकक्ष या भगवान के साथी। इसीलिए इसे देवतुल्य गुरुओं के साथ जोड़ा गया है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी एक-दो जगह इस शब्द को श्री राम जी के लिए उपयोग किया है। अन्य धर्मों के धर्म-ग्रंथों में भी इस शब्द का जिक्र पाया जाता है !




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आप सभी का आभार।
आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

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