मन में स्थित ज्ञान ज्योति को शक्ति का सकारात्मक रुप मानकर
जगाया जाता है ताकि मन के सारे विकारोंं से मुक्त होकर जीवन
लोक कल्याण के लिए कर्म को तत्पर हो सके।
कच्ची सी धूप को
वक़्त पर पकना ही था
व्यवहारिक से दायरों में
हम सबको बँधना ही था
संबंधों में अनुबंधों की
कहानी दोहराई जाएगी
दूर करो माँ यह अंधकार
जो लील रहा अस्तित्व मेरा !
सूझता नहीं मुझे पथ मेरा !
इस जग में है ही कौन मेरा
जिसको पुकार कर बुलाऊँ ?
अंतर का हाहाकार सुनाऊँ ?
अपनी कृपा दृष्टि का दीप जला
मुझे आगे का मार्ग दिखाओ ।
जितनी बार उसे उतारा जाता
उसके शरिर मे एक नस टूट जाती
चमड़ी से कुछ लहू नजर आता
जितनी बार उसे उतारा जाता
उसके नाखुनों से भूमि कुरेदी जाती
संग्रहणीय अंक
जवाब देंहटाएंआभार
वंदन
नवरात्रि पर्व की महिमा पर प्रकाश डालती सुन्दर भूमिका के साथ बेहतरीन सूत्रों को संग्रहित किये लाजवाब प्रस्तुति में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार श्वेता जी ! सस्नेह वन्दे !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बहुत सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंश्वेता जी, बहुत सारगर्भित भूमिका और मर्मस्पर्शी रचनाओं के संकलन में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार। नवरात्रि शुभ हो।
जवाब देंहटाएंसुंदर भूमिका के साथ बहुत ही सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंसमय मिलते ही सभी रचनाएँ पढ़ती हूँ।
स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
सादर
बहुत खूब , आभार आपका
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