मैं जंगल भ्रमण के लिए
उत्सुक रहती हूँ
किंतु जालीदार गाड़ियों से
जानवरों को कौतूहल से देखकर,
पक्षियों की विचित्र किलकारी,
दैत्याकार वृक्षों की
बनावट से अचंभित
जंगल की रहस्यमयी गंध
स्मृतियों में
भरकर ले तो आती हूँ
पर सोचती हूँ
जंगल के कोने में
उगी घास की भाँति
दुनिया की भीड़ में
तिनके सा जीना
क्या यही है जन्म का
उद्देश्य ?
जाना कहाँ था, पहुँचे कहाँ हैं
दाता का दर सदा ही खुला है
भटके थे राह अब चेत आया
क्या वह मिलेगा जो था गँवाया
जबरदस्त अंक
जवाब देंहटाएंआभार
वंदन
जंगल के कोने में उगी घास में भी चेतना उसी एक की है, वही जो हम मानवों को जिलाता है, उस एक से जुड़ जाना है फिर हर उद्देश्य मिल जाता है, सुंदर अंक, आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक !
जवाब देंहटाएंमैं जंगल भ्रमण के लिए
जवाब देंहटाएंउत्सुक रहती हूँ
किंतु जालीदार गाड़ियों से
जानवरों को कौतूहल से देखकर,
पक्षियों की विचित्र किलकारी,
दैत्याकार वृक्षों की
बनावट से अचंभित
जंगल की रहस्यमयी गंध
स्मृतियों में
भरकर ले तो आती हूँ--
भीतर तक उतरती सच्चाई से व्यक्त की हुई अनुभूति
प्रभावी भूमिका के साथ
कमाल का संयोजन
सभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
दुनिया की भीड़ में
जवाब देंहटाएंतिनके सा जीना
क्या यही है जन्म का
उद्देश्य ?
कुछ खुशनसीब होते होंगे ना जिन्हें मिल जाता होगा जन्म का उद्देश्य , जिन पर होगी कृपा उस कृपानिधान की...
चिंतनपरक भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति... मेरी रचना सम्मिलित करने हेतु दिल से आभार एवं धन्यवाद प्रिय श्वेता !
श्वेता जी, उत्तम रचनाओं का संकलन और सोचपरक भूमिका। तिनके की बात पर याद आया.. सबकी अपनी जगह और उपयोगिता है। डूबते को तिनके का सहारा भी बहुत होता है। हर किसी का अपना वजूद होता है ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार. नमस्ते
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