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शनिवार, 12 अक्तूबर 2024

4274 ..दशहरा असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है।

 सादर नमस्कार

विजयादशमी की शुभकामनाएँ

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दशहरा असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। रावण के बिना दशहरा अधूरा है। कभी जब गांव में रामलीला का मंचन होता तो उसे देखने के लिए हम बच्चे बड़े उत्साहित रहते। पूरे 11 दिन तक आस-पास जहां भी रामलीला होती, हम जैसे-तैसे पहुंच जाते। किसी दिन भले ही नींद आ गई होगी लेकिन जिस दिन रावण का प्रसंग होता उस दिन उत्सुकतावश आंखों से नींद उड़ जाती। रावण को रामलीला में जब पहली बार मंच पर अपने भाई कुंभकरण व विभीषण के साथ एक पैर पर खड़े होकर ब्रह्मा जी की घनघोर तपस्या करते देखते तो मन रोमांचित हो उठता। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट होकर उनसे वर मांगने को कहते तो वह भारी-भरकम आवाज में वरदान मांगते कि-
'हम काहू कर मरहि न मारे।  
वानर जात मनुज दोउ वारे।  
देव दनुज किन्नर अरु नागा।
सबको हम जीतहीं भय त्यागा।"


अर्थात हे ब्रह्मा जी, यदि आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे यह वर दीजिये कि मैं देवता, राक्षस, किन्नर और नाग सबको निर्भय होकर जीतूं।" भगवान ब्रह्मा जी ‘तथास्तु’  कहकर अंतर्ध्यान होते तो दृश्य का पटाक्षेप हो जाता।






अब प्रातः काल हो गया है। आकाश में हल्की लालिमा दिखनी शुरू हो गई है। होटल के कमरे से बाहर बालकनी से सूर्योदय का दृश्य हमने कैमरे में क़ैद कर लिया है।अब सूर्योदय का दर्शन करते हुए हम साधना करना चाहते हैं। गंगा तट पर प्राणायाम तथा योगासन करने का सुअवसर बार-बार नहीं मिलता। कुशल योग शिक्षक ने तट पर योगासन करवाए। उसके बाद सभी उस दुकान पर चाय पीने गये, जो यहाँ अति प्रसिद्ध है। वहाँ लोग पंक्ति में खड़े थे, दुकानदार हरेक को ताजी चाय बनाकर देता था, लेमन टी या मसाला चाय। एक वृद्ध वहाँ खड़ा था, मैंने उसे अपना कप पकड़ा दिया, वह तत्क्षण हमारा शुभचिंतक हो गया। जब दुकानदार ने शेष पैसे वापस नहीं दिये  तो वह चिंतित हो गया, बाद में हमने एक चाय और ली,





जैसे बोतल में बंद संदेश
कभी रवाना ही ना हों,
या हो सकता है..
अब तक सफ़र में हों,
या फिर निर्जन समुद्र तट पर
अब तक गिनती हों लहरें ।
पर रेत पर पड़ते नहीं निशान ।
कलम पर रह जाते हैं बेशक
उंगलियों की अमिट छाप ।





रतन तुम्हारे जाने का दुख है गहरा,
लेकिन आदर्शों का दिया जलाए रहेगा सवेरा।
तुम सदियों तक रहोगे हमारे साथ,
कर्मों से सजी होगी हर बात।

श्रद्धांजलि अर्पित हम करते हैं,
तुम्हारी स्मृतियों में हम सब जीते हैं।




बिल्मा भी सबके साथ जाना चाहती है ! लेकिन न तो उसके पास कोई अच्छी सी फ्रॉक है न जूते या चप्पल ! जूता फट गया है चप्पल टूट गयी है ! अम्माँ के पास पैसे भी नहीं है जो खरीद कर दिला देती ! इसलिए माँ ने जाने से मना कर दिया है ! बिल्मा आँखों में आँसू भरे उदास बैठी है !




वृत्त  से  शक्ति नहीं  मिली
मर  मर  गया  शरीर
भक्ति माँ  की सौम्य रही
माँ  सज्जन  का  धीर

जो  सच्चा  और  नेक  रहा
अच्छा  एक  इन्सान
माँ  का  मन्दिर वहीं रहा
वहीं  रहे  भगवान


बस

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात !! सुंदर प्रस्तुति, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  2. 🙏🚩सत्य ,सदाचार ,सनातन मूल्यौ की शाश्वत विजय के प्रतीक पर्व विजयदशमी कीआप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं🙏🚩

    सुंदर रचनाओं का संकलन।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार,,,

    जवाब देंहटाएं

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