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शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

जर्रे - जर्रे को कर गए खुशहाल......आज तेरहवां अंक

जर्रे - जर्रे को कर गए खुशहाल......
आज तेरहवां अंक....
देवी जी का आदेश हुआ कल
आपको आनन्द में 

आनन्द के लिए..
पाँच लिंक चुननें हैं
सो हाजिर है... दिग्विजय

मुलाहिज़ा फ़रमाएँ मेरी पसंद की रचनाओं का....



भींगे हम...
भींगा मन...
दोनों ही थे नम...


फ़र्क बस इतना है 
कि तुम 
तुम नहीं होते 
और मैं होता हूँ कोई और।


जर्रे - जर्रे को कर गए खुशहाल
' न करना मेरे मरने पे अवकाश
करना देशवासियों दुगना काम '
करेंगी  सदा' पीढ़ियाँ उन्हें याद।


सफेद सफेद से ‘उलूक’ 
वक्त को समझ कर 
जितना कर सकता है 
कोई सफेद सफेदी के साथ 
सफेद कर लिया जाये । 


और ये रही आज की अंतिम रचना


फिर वही अलसायी सी शाम...
और इक भार सी लगती..
मुझे मेरी साँसे...
हाँ तुम्हारे बिना..
मुझे जीना भी,
भारी सा लगता है...



किसी ने कहा है...
जिन्हें गुस्सा आता है वो लोग सच्चे होते हैं 
लगता है आप मुस्कुराने से कतरा रहे हैं
नाराज हैं न आप......

इज़ाजत दें....

--दिग्विजय का अभिवादन

















गुरुवार, 30 जुलाई 2015

महाभारत में कौन है चाचा कलाम को प्रिय....अंक बारहवां

बारहवां अंक लेकर उपस्थित हूँ
मन नहीं कर रहा
कुछ भी लिखने को
और न ही पढ़ा जा रहा
फिर भी.....
चलिए मेरी आज की पसंदीदा रचनाओं को लिंक्स की ओर.....


एक वो जमाना था कभी, 
आज ये एक जमाना है,
तब पास रहने की इच्छा थी, 
अब दूर रहने का बहाना है..


तुम कहते थे 
सपने वो नहीं 
जो नींद में दिखते हैं 
सपने वो हैं 
जो तुम्हें सोने नहीं देते! 


येल्लो! 
धपाधप ब्लॉग पोस्ट लिखने में आपकी सहायता के लिए 
आ गया एक ऐप्प!!
ऐप्प इंस्टाल करें और धपाधप ब्लॉग पोस्टें लिखें. क्या लिखें, क्या छोड़ें की चिंता ऐप्प पर छोड़ दें. और, लगता है कि ऐप्प अपने कंसेप्ट के दिनों से ही खासा प्रभावशाली होने लगा है. एक ही चीज को कई एंगल से आप लिख सकेंगे


जयपुर में  'विजन २०-२०'  के बारे में बात करते हुए उन्होंने पूछा - ''बच्चो क्या तुम बता सकते हो कि महाभारत का मेरा प्रिय पात्र कौनसा है? बच्चों ने कहा अर्जुन फिर युधिष्ठिर फिर भीम...कलाम चाचा नो-नो कहते गए और फिर बोले विदुर क्योंकि वे निर्भय, निष्पक्ष और निर्लिप्त थे।



सर..आप 'पकाएं', तो यह आपकी प्रतिभा और मैं 'पकाऊं' तो मेरा पागलपन। सोचिए सर, आपके इन सड़े-गले व्यंग्यों और लेखों को पढ़कर हमारे पाठकों को कितनी कोफ्त होती होगी।' इतना कहकर अच्छन प्रसाद तो आफिस में चले गए और मैं गेट पर खड़ा रहा। मन तो यही कर रहा था कि अपना सिर सामने की दीवार पर दे मारूं।


इज़ाज़त चाहती है यशोदा
इन चार पंक्तियों के साथ
कहीं पर भी होती अगर एक मंज़िल,
तो गर्दिश में कोई सितारा न होता !
ये सारे का सारा जहां अपना होता,
अगर यह हमारा तुम्हारा न होता..!


















बुधवार, 29 जुलाई 2015

आज तीसरा दिन है कलाम के बगैर...ग्यारहवां अंक


आज तीसरा दिन है कलाम के बगैर...
कहीं नहीं गए हैं वो


हैं अभी भी
हमारे दिल मे..


दिल की धड़कन में...
ज्ञान में...


विज्ञान में...
सोचें जरा.....

कहां नही हैं वे...
साष्टांग दण्डवत् नमन..

चलें आज की अपनी प्रकिया पूरी करें
भरे मन से....

लाज़िमी है आँख नम होना किसी का प्यार में। 
खासकर जब आदमी अच्छा लगे व्यवहार में। । 


न हिन्दू न मुसलमान ,
एक हर दिल अज़ीम इंसान
श्रद्धांजलि मिसाइल मैन! 
सादगी और विनम्रता की प्रतिमूर्ति 
कलाम साहब 
सदैव हमारे प्रेरणास्रोत रहेंगे 
रफ्ता-रफ्ता सारे सपने पलकों पर ही सो गये , 


मैं समंदर हूँ मुझको नदी चाहिए 
ज़िन्दगी में मुझे भी ख़ुशी चाहिए 


कुछ शब की चूनर के तारे बन नज़रों से दूर हुए , 
कुछ घुल कर आहों में पुर नम बादल काले हो गये !



Reiki Healer
Applying Reiki is practical and useful. It accelerates and strengthens any healing process from bruising to chronic illness to mental/emotional imbalance. Reiki can be used at any time and in any situation when we can lay our hands on ourselves or another.


विदा लेती हूँ मैं
आज्ञा दीजिये यशोदा को
सुनिये ये गीत..
.........................









मंगलवार, 28 जुलाई 2015

प्रस्तुत है आज की दसवीँ प्रस्तुति..

सादर नमस्कार
कुछ खास नहीं
अपने मन की बात 

कह नहीं सकती
हाँ,,,  आपके मन की बात 

जरूर जानना चाहती हूँ

चलिए आज के पसंदीदा रचनाओं के लिंक्स की ओर.....


सर कलम करके वो आये हाथ अपने धो लिए
था लिखा रोना हमारे भाग में हम रो लिए

कह रहे थे सबसे वो करते हुए ज़िक्र-ए-रहम
तुम मनाओ खैर लेना चार था हम दो लिए


एक जंगल से गुजरते हुए ,
लिपटे चले आए हैं मकड़जाल
चुभ गए कुछ तिरछे नुकीले काँटे
धँसे हुए मांस-मज्जा तक .
दर्द देते रहते हैं .


कीजिए आतंकी हमला 
हम आपको सलाम ठोकेंगे 
सालों केस चलाएंगे 
फाँसी की सजा मुक़र्रर करेंगे 
और फिर आपके कुछ नपुंसक हमदर्द 
मानवाधिकार का हवाला दे 
फाँसी के विरोध में याचिका दे छुडवा ले जायेंगे 


चमकती दामिनी सी
बरसती बरखा सी कभी
बिखर जाती कभी धरा पे
शीतल चाँदनी सी
नित नये सपने संजोती
रस बरसाती जीवन में मेरे
मेरी सतरंगी कल्पनायें


कंचन काया मृतप्राय सी 
आया देन्य  भाव चहरे पर 
दीनता की अभिव्यक्ति 
मन में  चुभती  शूल सी |
दिल ने कहा सहायता कर 


जिन्हें गुस्सा आता है वो लोग सच्चे होते हैं ,

मैंने झूठों को अक्सर मुस्कुराते हुए देखा है …… !!!
आज का अंक यही पर सम्पन्न कर
आज्ञा चाहती हूँ
.....यशोदा

चलते-चलते ये गीत....

















सोमवार, 27 जुलाई 2015

कुछ भी, कहीं भी, कैसे भी...बन ही गई आज की नौवीं प्रस्तुति

सादर अभिवादन स्वीकारें...

कहीं किसी के स्टेटस में पढ़ी..ये ऐसा कुछ..


सुन दोस्त.....
इश्क कर ,
धोखा खा 
और 
शायर बन जा ....

देखिए आज की प्रस्तुति....


कितना भी दफन 
कर ले कोई जमीन 
के नीचे गहराई में 
बस मिट्टी को हाथों 
से खोदने में 
शर्माना नहीं चाहिये ।


हंसती हुई आँखों में जो प्यार का पहरा रहता है-
असल में उन आँखों के ज़ख्म गहरे होते है ||

जलती हुई लौ भी जो उजारा करे मजारों को-
सुना है उन मजारों को बड़ी तकलीफ होती है ||


लगातार छः ग़ज़लें
बहुत   तन्हा   हूँ   मैं  ये   वक्त  कह   गया   हमसे।
पाल    बैठा    बड़ी    उम्मीद     बेवफा    तुमसे ।।


कुछ भी, कहीं भी, कैसे भी
उड़ कर पहुँच जाती हो तुम !!
भूतनी! भूतनी !! भूतनी !!
चिढ़ती रहो ........
मेरी तो कविता बन गयी न !!


मुक्ति कोई क्षणिक बात नहीं है. 
वह एक जीवन अनुभव होती है 
और उसे बार–बार अनुभव करना पड़ता है.
जिन्हें मुक्त होने की इच्छा है 
या जो मुक्त होना चाहते है


आज्ञा दीजिये यशोदा को...
चलते-चलते ये गीत सुनिए....





















रविवार, 26 जुलाई 2015

की पुछदे ओ हाल फकीरां दा-मेरी पहली प्रस्तुति।


 की पुछदे ओ हाल फकीरां दा
साडा नदियों विछड़े नीरां दा
साडा हंज दी जूने आयां दा
साडा दिल जलयां दिल्गीरां दा.
साणूं लखां दा तन लभ गया
पर इक दा मन वी न मिलया
क्या लिखया किसे मुकद्दर सी
हथां दियां चार लकीरां दा.
--------शिव कुमार बटालवी
मित्रों मैं कुलदीप ठाकुर इस ब्लौग  पर अपनी पहली प्रस्तुति में आप सब का  स्वागत करता हूं। मेरा प्रयास रहेगा कि इस ब्लॉग पर मैं कुछ ऐसी पांच रचनाएं प्रस्तुत करूं जो किसी भी चर्चा मंच पर स्थान नहीं पा सकी। मेरा आप से निवेदन है कि आप भी रविवार की इस हलचल के लिये मुझेे इस प्रकार की अपनी या अन्य किसी रचनाकार की रचनाएं अवश्य भेजें। मेरे और हम सब के सहयोग से हम सब को उत्तम रचनाएं पढ़ने को मिल सकेगी।

अब लेते हैं आनंद आज की 5 रचनाओं का...
बड़ा जालिम जमाना है फँसा देगा सवालों में ,
मैं आने दे नहीं सकता तुम्हारी बात होठों पर |
नज़र की बात नैनों से फिसल कर दिल में आ धमकी ,
हुई जो बात नैनों से बनी सौगात होठों पर |

सिद्धेश्वरी ने खाना बनाने के बाद चूल्हे को बुझा दिया और दोनों घुटनों के बीच सिर रखकर शायद पैर की उँगलियाँ या जमीन पर चलते चीटें-चीटियों को देखने लगी।
अचानक उसे मालूम हुआ कि बहुत देर से उसे प्यास नहीं लगी है। वह मतवाले की तरह उठी ओर गगरे से लोटा-भर पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई। खाली पानी उसके कलेजे में लग गया
और वह हाय राम कहकर वहीं जमीन पर लेट गई।

रामेश्वर काम्बोज हिमांशु आदि की लघुकथाएं  इस कसौटी पर खरी उतरती हैं। इसमें बालकृष्ण गुप्ता 'गुरु' का नाम भी लिया जा सकता है।
साहित्य कर्म समाज की विकट कंटीली झाड़ियों को काटकर रास्ता बनाने का कर्म है। कंटीली झाड़ियों से भी परिचित कराना, उन्हें काटने का हथियार देना और निरापद रास्ता
बनाने की समझ और चेतना देने का काम रचनाकार का काम होता है। बालकृष्ण गुप्ता 'गुरु' अपनी पुस्तक- 'गुरु ज्ञान : आईना दिखातीं लघुकथाएं' में कंटीली झाड़ियों को
बखूबी पहचानते हुए दिखाई देते हैं। कांटों की चुभन को खुद महसूस भी करते हैं और पाठक को भी महसूस कराते हैं। पर रास्ता बनाते वक्त वे उपदेशक की मुद्रा अख्तियार
करते हैं। बेहतर होता, रास्ते के लिए मजबूत जमीन तैयार करने की चेतना जगाने में लघुकथा की महत्वपूर्ण भूमिका बन पाती। मुझे लगता है कि उनकी शिक्षकीय चेतना उन्हें
शिक्षक की तरह रास्ता दिखाने के लिए प्रेरित करती है। बावजूद इसके समय की नब्ज पर उनकी गहरी पकड़ दिखाई देती है।

भर लाई हूँ तेरी चंचल
और करूँ जग में संचय क्या!
तेरा मुख सहास अरुणोदय
परछाई रजनी विषादमय
वह जागृति वह नींद स्वप्नमय
खेलखेल थकथक सोने दे
मैं समझूँगी सृष्टि प्रलय क्या!

जयशंकर प्रसाद और मुंशी प्रेमचंद दोनों का ही जीवन कष्टपूर्ण था। प्रसाद सत्रह वर्ष के थे, जब उनके माता-पिता तथा बड़े भाई का देहांत हुआ। उनकी सारी दौलत जाती
रही, उन्होंने पूरा जीवन ऋण चुकाने में बिताया। प्रेमचंद का भी प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। आठ साल की उम्र में उनकी माता की मृत्यु हुई तथा चौदह वर्ष की आयु
में उनके पिता की भी मौत हो गई। उन्हें भी गंभीर आर्थिक कठिनाइयों से लड़ना पड़ा था। अर्थात् प्रसाद की निजी संपत्ति खो गयी, प्रेमचंद के पास कभी थी ही नहीं।

ये थी मेरे द्वारा चुन कर लाई गयी 5 रचनाएं...अब बारी है आप की....आज ही इस प्रकार की कालजयी रचनाएं
kuldeepsingpinku@gmail.com
पर भेजें। ताकि अगली बार की प्रस्तुति और भी खूबसूरत हो...

धन्यवाद...


शनिवार, 25 जुलाई 2015

कुछ लिखने वाले के कुछ पढ़ने वाले कुछ भी पढ़ते पढ़ते उसी के जैसे हो जाते हैं...छठवीं प्रस्तुति

सादर आभिवादन करती है यशोदा

इस कदर उधार ले के खाया है मैंनें......,,,
कि दुकानदार भी 
मेरी जिंदगी की दुआ करते हैं…

प्रस्तुत आज की मेरी पसंदीदा रचनाओं के लिंक्स....


इतना इतना 
कितना कितना 
लिखता है 
देखा कर कभी 
तो सही खुद भी 
पढ़ कर जितना 
जितना लिखता है 


छोटी सी पहल - लघु कथा
पूजा भी किया है भरपूर नारियल भी तोड़ा मंदिर में। फिर भी भगवान में मेरी किस्मत तोड़ रखी है।" यही सब भुनभुनाता तनुज फिर से रास्ते को निहारने में जुट गया। वो एक बार बाहर झांकता फिर वापस अपने दराज पर देखता। चार दस के नोट दो बीस के और एक पचास के कुल मिलकर हुए 130 रुपये। उसी 130 रूपए को हजारों बार गिन चुका था। 



साफ़   छुपते  भी  नहीं   सामने  आते  भी  नहीं
दिल  चुराते  हैं  तो  कमबख़्त  बताते  भी  नहीं

आपका    दांव  लगे    आप   उड़ा  लें  दिल  को
हम  गई  चीज़  का कुछ  सोग़ मनाते  भी  नहीं


मेरी तुम...कुछ तेरी मैं... 
हों एक कॉल की दूरी पर 
हाँ मेरी तुम... हाँ तेरी मैं... 
क्या किया सयाने होकर के 
कुछ मैंने खोया... कुछ तुमने खोया...


‘दि‍ल करता है, आज ही काम से नि‍काल दूं इसे. जब देखो तब कुछ न कुछ चुपचाप उठाकर ले जाती है. और अगर पूछो तो ऐसे एक्‍टिंग करती है मानो इस तरह की चीज़ तो कभी हमारे घर में थी नहीं शायद.' वह अख़बार तो पढ़ रहा था पर देख भी रहा था कि‍ आज ड्रॉअर और अल्मारि‍यां खोलने- बंद करने की आवाज़ कुछ ज्‍यादा ही तेज़ थी. 

आज की प्रस्तुति सम्पन्न करने इज़ज़ात चाहती हूँ

मैँ कैसी हूँ’ ये कोई नहीँ जानता,
मै कैसी नहीं हूँ’
ये तो शहर का हर शख्स बता सकता है…

सादर
यशोदा..
























शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

हरी घास की चटाई पर..... .....आनन्द का छठवां अंक

यशोदा का अभिवादन स्वीकार करें

मेरी आँखों को सुर्ख़ देख कर कहते हे लोग,,
लगता है…तेरा प्यार तुझे आज़माता बहुत है....





बिना किसा लाग-लपेट के चलें देखें आज के लिंक्स....



अब सि‍द्ध न रहे
तुमको
वो त्राटक, वो सम्‍मोहन।
भूल चुके तुम
मारण मोहन उच्‍चाटन।।




फूल को ख़ार बनाने पे तुली है दुनिया,
सबको अंगार बनाने पे तुली है दुनिया

मैं महकती हुई मिटटी हूँ किसी आँगन की,
मुझको दीवार बनाने पे तुली है दुनिया


न जाने कैसा है वो शीशा
ए अहसास, नज़र 
हटते ही होता 
है टूटने 
का गुमान। क़रीब हो जब 
तुम, लगे सारा 


बंद करो अपनी पलकें
रखो अपना दायाँ हाथ
बायें तरफ सीने पर
महसूस करो मुझे
अपनी धड़कन में
हर पल हर दम


मैं करता रहा मेहनत लोग जुगाड़ भिड़ाते रहे
वाक्यात फन के सफर में हैरतंगेज़ आते रहे 

बेईमानी करती रही रेप रोज ईमानदारी का 
लोग उसी को किस्मत का लिखा बताते रहे 



समेट कर रखे ये कोरे पन्ने एक रोज
बिखर जाएंगे …
जिंदगी तेरे किस्से खामोश रहकर
भी बयां हो जाएंगे…

अब विदा मांगती है यशोदा...















गुरुवार, 23 जुलाई 2015

प्यार भी सहुलियत के हिसाब से किया जाता है … पांचवा अंक

सादर अभिवादन करती है यशोदा

दिल है कदमों पे किसी के सर झुका हो या न हो,
बंदगी तो अपनी फ़ितरत है, ख़ुदा हो या न हो।


प्रस्तुत है आज की पसंदीदा लिंक्स.....


प्यार नज़र भी आया 
पर हंसी आई ये जान कर की 
प्यार भी सहुलियत के हिसाब 
से किया जाता है … 


बिना काम 
किस का फायदा 
किसका नुकसान 
अपनी अपनी 
किस्मत अपना 
अपना भाग्य 
किताबें पढ़ पढ़ 
कर भी चढ़े 
माथे पर दुर्भाग्य


सबसे नजरे बचा कर,
मैं उन सीढ़ियों से धीरे से...
पूछ लेती हूँ..
कि कही मेरे जाने के बाद,
तुम वहाँ आये तो नही थे...


ढाल से सटा हुआ एक बिना छज्जे वाला मकान है | इसी मकान में एक कुत्ता रहता था ( बाकी लोग भी रहते थे ) जब हम पांचवी या छठी क्लास में रहे होंगे और सुदर्शन साहब की तरह साइकिल की सवारी करने की कोशिश कर रहे थे | एक थी २० इंची नीले कलर की हीरो जेट हमारे पास |  उसकी इम्पोर्टेंस तो आज की कार से भी ज्यादा है ,......ऊ अलग बात है |



इसे मत कहों तुम समंदर का पानी 
है  इसमें  छुपी आँसुओं की कहानी 

दीप अंगणित निशा वक्ष पर थे जलाए
विरह के झकोरों ने जिसको बुझाए


आज्ञा दीजिये यशोदा को...
कितनी छोटी सी दुनिया है मेरी,
एक मै हूँ और एक दोस्ती तेरी…!!





















बुधवार, 22 जुलाई 2015

कुछ लोग दुनिया से डर कर फैसले छोड़ देते हैं..

“कुछ लोग दुनिया से डर कर फैसले छोड़ देते हैं ,
और कुछ लोग हमारे फैसले से डर कर
दुनिया छोड़ देते हैं…!!

यशोदा का अभिवादन स्वीकार करें.....

काफी असमंजस में पड़ जाती हूँ जब
लगभग 50 रचनाओं से पांच रचनाएँ
चुनु तो किसे..और छोड़ूं तो किसको..


ये रहे आज के लिंक्स....


कुछ अपनों को , अपना बनाने में 
हम अपनापन खोते रहे
कुछ गैरों से उनको बचाने में
हम अपनापन खोते रहे


शब ए इन्तज़ार ढल गई, 
दूर तक बिखरे पड़े हैं 
बेतरतीब, टूटे 
हुए ख़्वाब। 


बहुत से लेखकों को इन्ही वजहों से मन मसोसते हुए 
अक्सर देखा जाता है जब वो कहते हैं 
कि यार उम्र से मात खा गए वर्ना 
हम भी साहित्यकार थे काम के 


बहुत यादें हैं
सब के पास
बचपन के
सावन की।


बुरा तो लगा !
मेरे मीठे सपने ,
पराये हुये 


नरम नरम फूलों का रस निचोड़ लेती है..

पत्थर के दिल होते है तितलियों के सीने में…

आशा है मेरी पसंद अच्छी लगेगी आपको भी..

आज्ञा दें

यशोदा..






















मंगलवार, 21 जुलाई 2015

आनन्द ही आनन्द....सच में अच्छा महसूस हो रहा है....

आनन्द ही आनन्द....
सच में अच्छा महसूस हो रहा है....

हो गई हो कोई भूल, तो दिल से माफ़ कर देना….
सुना है कि, सोने के बाद, हर किसी की सुबह नहीं होती..!!

इस रविवार से हर रविवार को
माननीय कुलदीप सिंह जी
 आपको अपनी पसंद के 
पांच लिंक्स से परिचय करवाएँगे

आइए...ये है मेरी पसंद के लिंक्स...


कुछ नहीं पाना है
गीत यही गाना है
खुदा यहीं है ! 


जब खुद को भी ढूंढ न पाऊँ 
पलकों की ओट में छुप जाऊँ 
किसी बहेलिये के डर से 
डरी सहमी हिरणी सी सकुचाऊँ 


कितना भी पुकारोगे , नजर न आयेंगे 
अभी तो वक़्त है , मिल लो हमसे दो-चार बार और 
फिर ये चौबारे मेरे , मुँह चिढ़ायेंगे 


रास्ता इक और आयेगा निकल
हौसले से दो क़दम आगे तो चल

लोग कहते हैं भले ,कहते रहें
तू इरादों मे न कर रद्द-ओ-बदल


फ़ीते फट जाए तो जूते फेंका नहीं करते
आग लग जाए तो भुट्टे सेंका नहीं करते

जीवन है निर्धारित, जीवन है नियमित
कभी हम ऐसा तो कभी वैसा नहीं करते


अपने हाथों को 
मैंनें स्वयं ही बांध रखा है 
कि पांच से अधिक लिंक नहीं देना है
वजह से आप भलीभांति परिचित हैं


तमन्ना है की कोई हमारी सख्शियत से भी प्यार करे।
वरना हैसियत से प्यार तो तवायफ़ें भी करती हैं।

आज्ञा दें...
यशोदा













सोमवार, 20 जुलाई 2015

चलिए आज चलते हैं ग्रेट ब्रिटेन...

आज मात्र बारह घरों में दस्तक दी पर ताज्जुब की सैंतीस व्यू हुए
जैसे-जैसे फॉलोव्हर बढ़ेंगे वैसे-वैसे व्यू भी बढ़ेगा
चलिये चलते हैं आज के पांच लिंक्स की ओर....

ब्रिटेन में १३ साल के बाद कुछ सिमित घंटों एवं बच्चों के हित में 
कुछ शर्तों के साथ उन्हें पार्ट टाइम काम करने या कार्यानुभव लेने की इजाजत है. अत: इन बच्चों को इनकी उम्र के मुताबिक स्कूल के समय और पढाई के अलावा उनकी रूचि और आगे के कैरियर से सम्बंधित असली ऑफिस या काम की जगह पर जाकर कुछ समय कार्यानुभव लेने के लिए उत्साहित किया जाता है. 


मुझे आकाश भी खुल कर खुला दे

कदम दो साथ मिल कर चल न पाया
वफ़ा के उस पुजारी को भुला दे


टपटप टपकतीं झरझर झरतीं
धरती तरवतर होती
गिले शिकवे भूल जाती
हरा लिवास  धारण करती | 


व्यथित हूँ,
क्षुब्ध हूँ, 
क्या हृदय ही जीवन है ?


पाने में उम्र गुज़र जाती है 
इतनी सी बात खुद भी समझो 
और औरों को भी समझाओ

आज मेरी पसंद के पांच लिंक पेशे-खिदमत है

लेकर के मेरा नाम मुझे कोसता तो है,
नफरत ही सही, पर वह मुझे सोचता तो है…

इज़ाज़त दें
यशोदा










रविवार, 19 जुलाई 2015

आज शुभारम्भ.....पांच लिंकों का आनन्द......

आज शुभारम्भ.....पांच लिंकों का आनन्द......
आज रथ यात्रा भी है...बड़ा ही शुभ दिवस
और सोने में सोहागा कि आज ईद-उल-फितर भी है
अद्भुत संगम है दोनों उत्सव का
सर्व प्रथम बुद्धिदात्रि माँ सरस्वती को सादर नमन...

प्रस्तुत है आज के पांच रचनाओं के लिंक....

मरने की बात 
कोई भी मरने वाला 
किसी भी जिंदा 
आदमी को 
मगर कभी भी 
बताता नहीं है ।

आईना देखा जब आज तो
सिहर उठी सफेद बाल देख
लगता है समय आ गया
यौवन के जाने का

धूम मची है झूम उठी है,
धरती गगन सितारे भी .
धर्म की रथ सज-धज कर निकली,
अपने नन्द दुलारे की .

बारहों मास 
देती बेशर्त प्यार  
दुलारी घास ! 

और आज के इस अंक की अंतिम रचना

तुझे पढ़ा हमेशा मैंने अपनी बंद आँखों से 
ये दास्तान है नज़र पे रोशनी के वार की 

चढ़े जो इस कदर कि फिर कभी उतर नहीं सके 
तलाश ज़िन्दगी में है मुझे उसी खुमार की


उपरोक्त पांच रचनाएं मेरी पसंद की है
जो आपको भी पसंद आएगी

सादर

यशोदा



















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