जर्रे - जर्रे को कर गए खुशहाल......
आज तेरहवां अंक....
देवी जी का आदेश हुआ कल
आपको आनन्द में
आनन्द के लिए..
पाँच लिंक चुननें हैं
सो हाजिर है... दिग्विजय
मुलाहिज़ा फ़रमाएँ मेरी पसंद की रचनाओं का....
भींगे हम...
भींगा मन...
दोनों ही थे नम...
फ़र्क बस इतना है
कि तुम
तुम नहीं होते
और मैं होता हूँ कोई और।
जर्रे - जर्रे को कर गए खुशहाल
' न करना मेरे मरने पे अवकाश
करना देशवासियों दुगना काम '
करेंगी सदा' पीढ़ियाँ उन्हें याद।
सफेद सफेद से ‘उलूक’
वक्त को समझ कर
जितना कर सकता है
कोई सफेद सफेदी के साथ
सफेद कर लिया जाये ।
और ये रही आज की अंतिम रचना
फिर वही अलसायी सी शाम...
और इक भार सी लगती..
मुझे मेरी साँसे...
हाँ तुम्हारे बिना..
मुझे जीना भी,
भारी सा लगता है...
किसी ने कहा है...
जिन्हें गुस्सा आता है वो लोग सच्चे होते हैं
लगता है आप मुस्कुराने से कतरा रहे हैं
नाराज हैं न आप......
इज़ाजत दें....
--दिग्विजय का अभिवादन
आज तेरहवां अंक....
देवी जी का आदेश हुआ कल
आपको आनन्द में
आनन्द के लिए..
पाँच लिंक चुननें हैं
सो हाजिर है... दिग्विजय
मुलाहिज़ा फ़रमाएँ मेरी पसंद की रचनाओं का....
भींगे हम...
भींगा मन...
दोनों ही थे नम...
फ़र्क बस इतना है
कि तुम
तुम नहीं होते
और मैं होता हूँ कोई और।
जर्रे - जर्रे को कर गए खुशहाल
' न करना मेरे मरने पे अवकाश
करना देशवासियों दुगना काम '
करेंगी सदा' पीढ़ियाँ उन्हें याद।
सफेद सफेद से ‘उलूक’
वक्त को समझ कर
जितना कर सकता है
कोई सफेद सफेदी के साथ
सफेद कर लिया जाये ।
और ये रही आज की अंतिम रचना
फिर वही अलसायी सी शाम...
और इक भार सी लगती..
मुझे मेरी साँसे...
हाँ तुम्हारे बिना..
मुझे जीना भी,
भारी सा लगता है...
किसी ने कहा है...
जिन्हें गुस्सा आता है वो लोग सच्चे होते हैं
लगता है आप मुस्कुराने से कतरा रहे हैं
नाराज हैं न आप......
इज़ाजत दें....
--दिग्विजय का अभिवादन