हाज़िर हूँ... उपस्थिति स्वीकार करें...
30 जनवरी को सुबह 11 बजे दो मिनट का मौन रखने का निर्देश दिया गया है। यह माैन उन वीर सपूतों के लिए होगा जिन्होंने भारत की आजादी के लिए संघर्ष के दौरान अपनी जान गंवाई है। गृह मंत्रालय ने अपने आदेश में कहा कि यह राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों से अनुरोध किया जाता कि वे सुनिश्चित करें कि शहीद दिवस को पूरी गंभीरता के साथ मनाया जाए। अतीत में यह देखा गया है कि कुछ कार्यालयों में ही दो मिनट का मौन मनाया जाता है। वहीं आम जनता भी इसके मनाए जाने और इसके महत्व से बेखबर होती है। ऐसे में लोगों को इस खास दिन के बारे में भी जागरुक करना जरूरी हो जाता है।
जिसे लोगों ने गांधीगिरी का नाम दिया है. महात्मा गांधी की बातें भले ही छोटी हों लेकिन उनकी सीख बेहद बड़ी है!
01. माफ़ करना सीखो, 02. सफ़लता के लिए अभ्यास ज़रूरी है, 03. समाज को बदलने से पहले खुद को बदलो
04. अपने विश्वास को मरने मत दो' 05. सभी धर्मों की इज़्ज़त करो, 06. पापी से प्रेम करो
07. हमेशा सत्य की राह पर चलो, 08. लोगों के कपड़ों को नहीं उनके चरित्र को देखो, 09. मौन अपनाओ
10. इस संदेश को अपने जीवन में उतारो, 11. ये अनुमति आप किसे देते हैं, ये आप पर निर्भर करता है
12. अपने विचारों को कुरीतियों से ऊपर उठाओ, 13. किसी भी काम को करने से पहले उसके बारे में सोचो
14. अपने क्रोध पर विजय पाओ, 15. कायरता छोड़ो
साहित्य के अनन्य उपासक स्व. जयशंकर प्रसाद मात्र 47 वर्ष की अल्पायु में 'कामायनी' जैसा महाकाव्य सृजनात्मक साहित्य रचयिता सरस्वती-पुत्र को उनके जन्मदिवस पर सादर स्मरण
ले चल मुझे भुलावा देकर,
मेरे नाविक धीरे-धीरे
जिस निर्जन में सागर लहरी,
अम्बर के कानों में गहरी,
निश्छल प्रेम कथा कहती हो,
तज कोलाहल की अवनी रे'❗
बेड़िया
जब हम इन्हें सभ्य बनाने की बात करते हैं तो हम उन्हें खुद संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में ला रहे हैं। लेकिन कार्य के आधार से समुदाय की पहचान को देखें तो राज्य उन्हें निम्न श्रेणी में ही श्रेणीबद्ध करता है। तो जाहिर सी बात है एक जाति से उठकर यदि वह दूसरी नीची जाति में प्रवेश करते है तो इनके लिए संकट और बढ़ जाते हैं।
नमन
अब तुम मान जाओ कि तुम मर चुके हो मोहनदास
वरना बड़े-बड़ों की लाख कोशिशों के बावजूद
आज किसी गली से इकलौता पागल न गुजरता राम धुन गाते हुए
गांधीवाद को यूं न घसीटा जाता सरेआम
आक्रोश को अहिंसा का मुखौटा पहनाते हुए
न बेची जाती दो टके में ईमान, भरे बाजार में
बेड़िया
शरद सिंह ने पात्रों का दुबारा दलदल में फंसने का वर्णन किया है परंतु कुछ पात्र सलामति से दबाओं और परंपराओं को तोड़कर आत्मविश्वास से उडान भरने में सफलता हासिल करने का भी चित्रांकन किया है। जीवन में पिछले पन्नों से मुखपृष्ठों पर स्थान पाना है तो जीवट, पेशन्स, आत्मविश्वास, ईमानदारी और ज्ञान की जरूरत है; अगर बेड़नियां यह सब कुछ पाए तो वे‘पिछले पन्नों की औरतें’नहीं कही जाएगी।
यह कौन सा समाज है
बरसों से
उसके पैरों में वहीं है दासता की बेड़िया
हाथों में वही है नरक सफाई के औजार
सिर पर भी वही है त्याज्य अपवित्रता का बोझ
कोई परिवर्तन नहीं !
रचने का आनंद
सर्वशक्तिमान बाजार के चंगुल से निकलने की जुगत में छटपटाते छह पागलों की कथा। हर पागल की कथा एक नये कोण से बाजार के खेल को समझने समझाने का प्रयास था। अंत तक पहुंचते पहुंचते हर पागल की कथा एक उचित अंत तक पहुंच भी गई थी। फिर भी उपन्यास बहुत अधूरा लग रहा था। मैं जान रहा था कि जब तक इस फैंटेसी का अंत बाजार पर नहीं आयेगा बात अधूरी रहेगी
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पुन: भेंट होगी...
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