सादर अभिवादन
आज से नौतपा चालू है
कल काफी से अधिक तपन थी
आज भी गर्मी ही है, ए सी सक्षम नही है
सुना है दो-दो तूफान रास्ते में है
120 की रफ्तार है ..
ये भी सुनी हूँ अफवाहों के
माता-पिता नहीं होते..
कुछ रचनाएं
जिनके ज़ख़्म अभी भरे नहीं हैं।
मन बस उन्हें भूल गया है
क्योंकि वह भूलना चाहता है।
दूर धकेलता है उन घावों को
लेकिन वे वहीं बने रहते हैं
कभी भर नहीं पाते
जब तक बाहर लाकर
उन्हें सहला न दे
यहाँ दो (2) प्याज, पनीर के अनुपात में है। तुम्हें एक बात बताऊँ! लगभग पाँच वर्ष पहले तक मेरी उलझन थी कि मुर्ग -दो-प्याजा, आलू -दो-प्याजा, पनीर-दो-प्याजा, मांस-दो-प्याजा जब बड़े परिवार में बनता होगा, जहाँ अधिक संख्या में लोग रहते होंगे तो उनके लिए अधिक मात्रा में बनायी सब्जी, मुर्ग में दो प्याज से कैसे काम चलता होगा!
दोस्त अब नहीं रहा वो ज़माना,
जब खुले आकाश तले बैठे,
या चारपाई पर लेटा गुनगुनाते,
लोग एकटक देखा करते थे चाँद !
रात को लगती थी बातों की चौपाल !
अब कोई भी साथ नहीं बैठता..
टूट गया वह बिन रिश्ते का नाता !
वहीं अपनी कामयाबी के लिए नाई ने भोज का आयोजन किया। और एक बड़ी मछली भी लेकर आया। लेकिन एक बिल्ली टूटी खिड़की से रसोई में आकर ज्यादा मछली खा गई। गुस्से में नाई की बीवी बिल्ली को मारने के लिए झपटी, पर बिल्ली भाग गई। उसने सोचा, बिल्ली इसी रास्ते से वापस आएगी। सो वह मछली काटने की छुरी थामे खिड़की के पास खड़ी हो गई। उधर दूसरा राक्षस दबे पांव नाई के घर की ओर बढ़ा। उसी टूटी हुई खिड़की से वह घुसा। बिल्ली की ताक में खड़ी नाइन ने तेज़ी से चाकू का वार किया। निशाना सही नहीं बैठा, पर राक्षस की लम्बी नाक आगे से कट गई। दर्द से कराहते हुए वह भाग खड़ा हुआ। और शर्म के मारे अपने दोस्त के पास वो गया भी नहीं।
अपने आप में तुमसे कितनी बातें करती हूं फिर भी
कितनी बातें रह जाती हैं तुमसे से कहनी
तुम्हारे जवाब मालूम हैं फिर भी कितना कुछ है कहना
चलती हूं रुकती हूं मन ही मन गुनती हूं
और धप से रोक लेती हूं जुबां से फिसलते शब्द।।
आज बस
कल फिर मैं
सादर वंदन