सभी का स्नेहिल अभिवादन।
कार्तिक महीना आ गया, सुखद लगे सब काज।।
दीपमालिका आ रही, सजे हाट बाजार।
कार्तिक तेरी शान में, दीप जले दिशि चार।।
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
सादर अभिवादन
सादर अभिवादन
शीर्षक पंक्ति:आदरणीय अशर्फ़ी लाल मिश्र जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
शनिवारीय अंक में आज की पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
निशि रुपहली साड़ी में, थिरके सारी रात।
निशिपति भी सम्मुख रहे, होय न कोई बात।।2।।
चाँद केलि करता रहे, रजनी सारी रात।
भय से पीला हो गया, दिनकर देखे प्रात।।3।।
आज तक अपनी भूल पर कायम रही
उसी कार्य पर अडिग रही
सब का समझाना व्यर्थ गया
जब उनका कहा नहीं माना
आगे से अब भूल नहीं होगी।
कविता स्पष्ट
है बरदोश नहीं है..
कोई तारीफ लिखे कोई नाकामियाँ
कोई व्याकुलता कोई संतोष लिखे
कोई अमन शांति का पैगाम दे
कोई उबलते जज्बातों का आक्रोश लिखे
पीठ पर उभरे उस स्याही के गोले का रंग लड़के की हथेलियों पर नीली लकीर बनकर
उभरा जब प्रार्थना के वक़्त ड्रेस मॉनिटर ने उसे लाइन से बाहर निकाला और मास्टर जी
ने हथेलियाँ आगे करने को कहा। लड़के के हाथ पर उभरी नीली लकीरें लड़की की आँख का
नीला दरिया बनकर छलक पड़ी थीं। उसने कब सोचा था कि उसकी जरा सी शरारत का ये असर
होगा।
सादर अभिवादन
।।प्रातः वंदन।।
देखे हैं कितने तारा-दल
सलिल-पलक के चञ्चल-चञ्चल,
निविड़ निशा में वन-कुन्तल-तल
फूलों की गन्ध से बसे !
उषाकाल सागर के कूल से
उगता रवि देखा है भूल से;
संध्या को गिरि के पदमूल से
देखा भी क्या दबके-दबके..!!
~ सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
प्रस्तुतिकरण को आगे बढ़ाते हुए आज बात कुछ इस तरह के स्याही के बूंटो से ✍️
🌟
खुद से खुद की जब पहचान हुई
ज़िंदगी फ़ज़्र की ज्यों अजान हुई
जिन्हें गुरेज था चंद मुलाक़ातों से
गहरी हरेक से जान-पहचान हुई
🌟
हममें रावण
तुममे रावण
हम सब में
रावण रावण
ऊपर रावण
नीचे रावण
क्षितिज क्षितिज
🌟
#दुर्गा पूजा पंडालों में
बजते घंटे, घड़ियाल
आरती की गूंज
धूप, दीप, नौवेद्य
अछत, अलता
🌟
।। इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️