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मंगलवार, 17 अक्टूबर 2023

3913.....यही है समय विचार करने योग्य...

मंगलवारीय अंक में आप
 सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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कर्तव्य, सद् आचरण,अहिंसा
मानवता,दया,क्षमा
सत्य, न्याय जैसे

'धारण करने योग्य'
'धर्म' का शाब्दिक अर्थ
हिंदू, मुसलमान या कोई भी 

सम्प्रदाय
कैसे हो सकता है?


विभिन्न सम्प्रदायों के समूह,
विचारधाराओं की विविधता
संकीर्ण मानसिकता वाले
 शब्दार्थ से बदलकर
मानव को मनुष्यता का 
पाठ भुलाकर
 स्व के वृत में घेरनेवाला
'धर्म' कैसे हो सकता है?


कोमल शाखाओं के
पुल बनने की प्रक्रिया में 
संक्रमित होकर
संवाद के विषाक्त जल में 
गलकर विवाद के
दलदल में सहजता से
बिच्छू बन जाना
धर्म कैसे हो सकता है?


सभ्यता की
विकास यात्रा में
 बर्बर होती संवेदना की
 अनदेखी कर
 उन्मादित शिलापट्टीय 
परंपरा वहन करना
धर्म कैसे हो सकता है?

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 आइये आज की रचनाएं पढ़ते हैं-


भीड़ के चरित्र पर 
राजनीति ने लाद दी 
अपनी मनोकामनाएँ भीड़ पर
अंतर में छाए अँधेरों में 
उभरते हैं बिंब लिए उन्मादी उमंगें  
साझा सहमति से उभरती हैं 
विनाश की तीखी तीव्र तरंगें

तुम भी चाँद की तरह ही तो हो 
ना मालूम ,
मैं 
चाँद की राह ताकती हूँ या
 तुम्हारी  ,
चंद्रमा  की बढती-घटती  कलाओं के साथ 
झूलती रहती हूँ 
आशा -निराशा का हिंडोला ,
फिर भी वो दिशा निहारती हूँ 
जिस राह  से तुम कभी नहीं आओगे 
चाँद तो अमावस के बाद आता है 


वास्तव में
यही है समय विचार करने योग्य
न कुछ साथ जाना है न कभी गया
जो करोगे यहीं छोड़ जाओगे
फिर किसलिए इतनी उठापटक?
क्यों कर्मकांड की खेती में खुद को झोंका
क्यों मृत्यु के बाद के कर्मकांडों बिना मुक्ति नहीं
की अवधारणा को पोसते रहे
अब तुम्हें कौन बताए
तुम तो चले गए


दिल और दिमाग में 
शुरू हुई तकरार
खींच रहे मानव को
सोचना काम दिमाग का
लेकिन
दिल है कि मानता नही
खेलअपना दिखाता
डाल पर्दा सोच पर
भावना में बहा ले जाता 
अपनी बात मनवाता
अनजान रहा दिमाग
बेबस हुई सोच
दिल और दिमाग
अलग अलग दोनों
इक दूजे से

बस आज आगाह करने को मन किया कि अगर ईश्वर कभी आपको गधा बनाये तो प्रार्थना करना कि जुमेराती ही बनाये..इत्ती सी च्वाईस तो मिलती ही है जब पुनर्जन्म होता है। अगर न मिलती हो तो भाईयों बहनों, मिलनी चिए कि नहीं मिलनी चिए? मिलनी चिए कि नहीं मिलनी चिए? पुनर्जन्म में तो हर मजहब भरोसा धरता है, अतः इस वक्तव्य में सेक्यूलरवाद की महक न आनी चाहिए किसी को। मगर लोगों को पता ही नहीं होता, अतः वो बस यूं ही मायूस हो कर कह देते हैं कि अब गधा बना ही रहे हो तो कोई सा भी बना दो। गधा तो गधा ही होता है। कितना मासूम है ये इंसान – शायद इसीलिए लुटा पिटा सा है।


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आज के लिए इतना ही
फिर मिलते है 
अगले अंक में।

3 टिप्‍पणियां:

  1. जय मातारानी की
    सुंदर अंक
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति, सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई,सभी रचनाएं पठनीय सार्थक।
    श्वेता आपकी गहन सारगर्भित लेखनी धर्म क्या है पर ज्वलंत प्रश्न उठाती हुई सार्थक चिंतन ज्ञदे रही है।
    सादर सस्नेह

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं

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