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शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2023

3916....नदी का पानी झर-झर-झर

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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लिखना अर्थपूर्ण कब है?
और निरर्थक कब?
आपके दृष्टिकोण से
जो स्तुतियाँ लिखी गयी हैं
किसी और के दृष्टिकोण से
सम्मान गीत हैं...
शब्दों के विषबुझे तीर 
फैल जाते हैं 
सूक्ष्म शिराओं में
अंतर्मन भी कहाँ सुरक्षित रह पाता है?
ज़हरीली लताओं के जाल में
उलझकर दम तोड़ देता है
आपका विरोध लिखना
जो किसी के मूक समर्थन में है...।

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आइये आज की रचनाओं की दुनिया में चलते हैं-


झड़ने लगी है 
रातरानी 
लदने लगे हैं 
अमलतास ओस से
पकते हुए धान के साथ

काश! तब ... 
"नींदों को परे रख ,

आगोश में अपने मुझे रहने दो / /
सवेरा कल का किसने देखा ,

जो कहना है अभी कहने दो / / "
दिले ख्वाईशें हर तेरी

पूरी करता मैं ... पर कमबख़्त
तू किसी और के दिल में वसती है / /



अपनी सोचें जग को गोली
तेली के घर जाए निष्ठा
गाँठ टका हो मोटा भइया
माला आती लिए प्रतिष्ठा
मन दिगम्बरी खोट छिपे तो
जाली को ही वस्त्र समझिए।।



नदी का पानी झर झर झर झर 
नदी के पत्थर गोल 
नदी किनारे बच्चे खेलें 
पिट्ठू, किरकट, और बॉल 

एक दिन, जाने किधर से 
नदी में पहुंचा एक मगर 
पहले उसने मछलियाँ खाईं 
फिर तीर पर की नज़र 

और चलते-चलते


आज हमारे अस्पताल में एक आकस्मिक मीटिंग के लिए बुलाया गया था। मीटिंग में हमें बताया गया कि हमारा हॉस्पिटल कोविड के मरीजों को भर्ती करेगा और हमें खुद को इसके लिए मानसिक तौर पर तैयार करना होगा। हम घर परिवार से दूर होंगे। मेरी बेटी एक साल की रिया को छोड़कर कैसे जाऊँ? अस्पताल ने मेरा नाम पुन: राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए भेजा है। नहीं जाऊँ तो श्रम से की गयी सेवा के बदले जो सम्मान मिला है वह धूल धुसरित हो जायेगा!
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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में
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5 टिप्‍पणियां:

  1. जय मातारानी की
    अप्रतिम अंक
    आभार...
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात! पठनीय रचनाओं का सुंदर संकलन, नवरात्रि की शुभकामनाएँ !

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छुटकी
    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं

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