निवेदन।


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बुधवार, 8 जनवरी 2025

4362..तुम्हें जीत जाना है

 ।।प्रातःवंदन।।

"प्राची का तेजस्वी दिनकर

चढ़कर नभ के अरुणिम विमान

पर; भर देगा भूमण्डल में

नव-नव सुन्दर स्वर्णिम विहान॥

उस क्षण होगा युग-युग पीड़ित

इस वसुधा का भाग्योत्कर्ष।

जागृति-स्वतन्त्रता-विश्व-प्रेम

ला रहा हमारा नया वर्ष"

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

बुधवारिय प्रस्तुतिकरण के क्रम को बढाते हुए ..✍️

तुम्हें जीत जाना है 

जीवन की हर रस्म निभाने का समय आ गया है

उस चक्रव्यूह में समाने का समय आ गया है

जिसमें जाने के रास्तों का पता नहीं

न बाहर निकलने का पता होता है

इस चक्रव्यूह में तय, कब कोई रास्ता होता है?

यह वह समय है, जब हर पल समझ से परे हो जाता है। 

✨️

काँच की गेंद में सपने:काँच की गेंद में बंद सपनों का विस्तृत आकाश   

किताब आने की ख़ुशी घर में किसी नए सदस्य के आने की ख़ुशी की तरह होती है और यह किताब यदि कविता की हो तो बात ही क्या! पिछले दिनों प्रीति जायसवाल की किताब ‘काँच की गेंद में सपने’ अनन्य प्रकाशन से छप कर हिंदी के ..

✨️

40 पार के पुरुष-4

अपनी सफलता-

असफलता 

उसके कारणों 

और उनसे उपजी 

क्रिया-प्रतिक्रिया का 

प्रतिफल 

इसी जन्म में भोगते ..

✨️

बस एक पूड़ी और लीजिए हमारे कहने से

 

दामादों की ससुराल में बड़ी आवाभगत हुआ करती थी उस जमाने में। पहली बार पत्नी को लेने रात भर की बस यात्रा करके जब ससुराल पहुंचे तो भूख लग आई थी। ससुराल पहुंचते ही नाश्ता परोसा गया। भूख लगी थी और साथ ही सास और सालियों का मनुहार तो कुछ ज्यादा ही खा लिया।

✨️

मेरे महबूब न मांग 

मुझसे पहले सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग

बड़े जलते हुए अंगारे थे हम जवानी में 

लगा हम आग दिया करते ठंडे पानी में

 नहीं कुछ रखा हैअब बातें इन पुरानी में

 ऐसी जीवन में बुढ़ापे में अड़ा दी है टांग 

मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग ..

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️

मंगलवार, 7 जनवरी 2025

4361....सर्दी की एक सुबह

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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आज के दिन की शुरुआत करते हैं एक छोटी सी
कहानी से जो मैंने अपने पापा से सुनी थी शायद
आपने भी कहीं सुनी हो-
एक बार की बात है सर्दियों के दिन थे, ठंड बहुत ज्यादा थी। एक नन्हीं चिड़िया खाने की तलाश में उड़ती हुई दूसरे प्रदेश जा रही थी परंतु अत्यधिक ठंड के कारण उसका खून जमने लगा और वह एक मैदान में गिर पड़ी। वहाँ घास खाती एक गाय ने उस चिड़िया पर गोबर कर दिया। गोबर की गर्मी ने चिड़िया को सुकून से भर दिया और वह खुश होकर जोर-ज़ोर से गाने लगी। तभी  वहाँ से एक बिल्ली गुज़र रही थी चिड़िया की गाने की आवाज़ सुनकर वह ठिठक गयी और ध्यान से सुनने लगी चिड़िया की आवाज़ कहाँ से आ रही है, उसने गोबर के ढ़ेर को हटाया और चिड़िया को बाहर निकाला और खा गयी।
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि
आपके ऊपर गंदगी फेंकने वाला हर कोई आपका दुश्मन नहीं होता और 
आपको.गंदगी से निकालने वाला हर व्यक्ति आपका दोस्त नहीं होता।

अब आज की रचनाएँ-

ख्वाब खिलखिला उठे,
ख्वाबों का कुंभ है,
किसकी बिसात है
जो हमें खत्म कर दे
तुम हो तो हम हैं
हम हैं तो तुम

 


सर्दी की सुबह अलग नहीं होती 
स्त्रियॉं के लिए भी
वे घड़ी से चलती हैं 
मौसम के तापमान से निस्पृह
पैरों में उनके बंधी होती है घिरनी 
और वे नाचती रहती हैं 
मौसम के मिजाज से परे  ! 


निज भूलों को भाग्य बताकर   

निज करनी से बाज न आते, 

जिस राह  पर मिले थे काँटे 

फिर-फिर उस पर कदम बढ़ाते  !


स्वयं ज्ञान का करें अनादर 

सुख  चाहों  में दौड़े जाते, 

तृष्णा मन की तृप्त न होगी 

अटल सत्य यह फिर बिसराते  !





कोई औरत से सीखता, तो सीखता प्रेम
त्याग, करुणा, दूसरों के लिए जीना, 
दूर नहीं, आसपास देख लो, 
तुम्हें समझ में आ जाएगा 
कि औरत नहीं करा सकती युद्ध,
उसके बारे में इतिहास ने फैलाया है 
केवल भ्रम और झूठ। 



विमर्श लैंगिक विभेद पर बात नहीं होनी चाहिए…!" दोनों ने नजरें चुराते हुए बेहद धीमी आवाज में फुसफुसाया।

"ओ! अच्छा! तो तुमदोनों विमर्श कर रहे थे…! लगता है तुमदोनों के पास मनुष्यता संबंधित विषयों की कमी हो गयी है!"

उसकी बातें सुनकर उनदोनों की खिलखिलाहट वाली हँसी शोर मचा गई। एक ने कहा, "तुम्हारी बातें सुनकर मुझे लगता है कि तुम्हारे पास मनुष्यता के बारे में बहुत कुछ कहने को है!"



 --------

आप सभी का आभार।
आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

सोमवार, 6 जनवरी 2025

4360 ...चलो हँसने की हम वजह ढूंढते है

दिग्विजय का वंदन



आज मनाया जाएगा गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश पर्व साल 2025 में पौष महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 5 जनवरी रात 8 बजकर 15 मिनट से शुरू हो रही है और 6 जनवरी शाम 6 बजकर 23 मिनट पर तिथि की समाप्ति हो रही है. इस साल गुरु गोबिंद जी का प्रकाश पर्व 6 जनवरी को मनाया जाएगा
श्री गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान के उपरान्त 11 नवम्बर सन् 1675 को 10 वें गुरू बने। आप एक महान योद्धा, चिन्तक, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। सन् 1699 में बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ (पन्थ) की स्थापना की जो सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है
शत शत नमन

अब देखिए रचनाएँ



मैं एक कण , मैं ब्रह्माण्ड,
इस सृष्टि में, सृष्टा का मान |
सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म मैं,
और व्यापक से व्यापक परिमाण |
यत्र-तत्र-सर्वत्र मैं ही
और मैं ही अकिंचनता का भान |






सौंदर्य विमल,
थोड़ा चंचल,
पायल सा थोड़ा सा छम-छम,
प्यार के आराधन में लय,




बड़े जलते हुए अंगारे थे हम जवानी में
लगा हम आग दिया करते ठंडे पानी में
नहीं कुछ रखा है अब बातें इन पुरानी में

ऐसी जीवन में बुढ़ापे में अड़ा दी है टांग
मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग




है जाती
जहाँ तक नजर
लगे मनोहारी
सृष्टि सकल
छा गया
उल्लास....चारों
दिशाओं में
री सखि देखो
बसन्त आ गया





मिलकर हम सब
चलो हँसने की
हम वजह ढूंढते है
अपनी - अपनी सी लगे
वो जगह ढूंढते है
जहाँ सबकुछ हो हमारा
वो सतह ढूंढते है




तुम शाम के ही वक़्त जो आती हो इसलिए,
आए कभी न रात तो ये शाम ना चले.

बारिश के मौसमों से कभी खेलते नहीं,
टूटी हो छत जो घर की तो आराम ना चले.
****
आभार
आज बस
कल मिलिएगा श्वेता जी से

रविवार, 5 जनवरी 2025

4359 ..कल पितृदोष के निवारण का अनुष्ठान है।

 दिग्विजय का वंदन

वर्ष का पहला रविवार
और रविवार का दिन फुरसत भरा
तनिक से कुछ ज़्यादा लिंक
या तो बोरियत पैदा होगी
या फिर दूर हो जाएगी
****


ऊर्जाएं बन रही हैं  
बदल रही हैं
सारे ग्रह, धरा और चन्द्र
जो कभी उसके अंश थे
अब एक परिवार की तरह
उसके अनुयायी हैं !




"हैलो सुगन्धा, बात सुन…कल न ग्यारह बजे तक आ जाना और सुन लंच भी यहीं मेरे साथ करना है !”
"कल क्या है ? एनिवर्सरी तो तुम्हारी फरवरी में है न, फिर किसका बर्थडे….?”
"अरे नहीं …कल पितृदोष के निवारण का अनुष्ठान है।”
"पितृदोष…?”





स्वस्थ जीवन, अपना बना लो |
जल्दी निंद्रा, ब्रह्म में जागना,
भोर की सैर पर, कदम बढ़ा लो |
गुनगुना पानी, थोड़ी कसरत,
प्रातः स्नान का, मंत्र, अपना लो




सहूलियतों की
सर पर छत
सीढ़ियां दे रही
अपना अभिमत
बढ़ मंजिल पग पग धर ।




हिटलर की आत्मा होगी मेरे आस-पास तो क्या सोचती होगी। मुझे बिलकुल बदल जाना चाहिए! 
जाते दिसम्बर में ख़ुद में बदलाव लाने की पूरी कोशिश करने का 
वादा ख़ुद से ख़ुद करती हूँ!




रौनक सभ्यता से बिछड़ी
प्रगति संयम से
एकता पीढ़ी से बिछड़ी
पीढ़ी पराक्रम से
ना किमख़ाब ना बड़ा मलमल रहा है



अपनी लिखने की हिम्मत होती तो
कितने होते अर्जुन उठाते गांडीव
सब बहलना है
‘उलूक’ साल को जाना ही होता है एक दिन
तुम्हें भी निकलना है
उसे भी निकलना है




फूलो के रंग से, दिल की कलम से
तुझको लिखी रोज पाती ~~
कैसे बताऊँ किस-किस तरह से
पल-पल मुझे तू सताती

आज बस
वंदन

शनिवार, 4 जनवरी 2025

4358 ...श्वान चौराहे पड़ा है, चाहता वो ताप थोड़ा

 यशोदा के नमन

सर्वप्रथम आंग्ल नव-वर्ष की शुभकामनाएं
****
25 वर्ष  के युवक को वो सब फौरन चाहिए
जिसे उसके पापा ने प्राप्त करने के लिए
50 वर्ष लगा दिए

*****

हित चाहने वाला पराया भी अपना होता है,
और अहित करने वाला अपना भी पराया हो जाता है।।
रोग अपनी देह में पैदा होकर भी हानि पहुंचाता है।।
और औषधि वन में पैदा होकर भी हमारा लाभ ही करती है 

***

रचनाएं देखें



"तुम्हारी पूजा का सामान क्योंकि मैं चाहता हूं कि 
तुमने मेरे लिए घर छोड़ा है लेकिन जो संस्कार खून में बसे हैं , 
उनकी मैं इज्जत करता हूँ । तुम अपनी पूजा जारी रखना इसी में हमारी खुशी है।
उनके घर में दुर्गा सप्तशती और कुरान एक साथ रखे थे।






श्वान चौराहे पड़ा है
चाहता वो ताप थोड़ा
जब मनुजता दुरदुराती
आग ने कब साथ छोड़ा
पूस की जो रात ठंडी
घाव टोपी का उधेरा।।






उद्यान के अलग-अलग हिस्सों के इतिहास-भूगोल, उसकी विशेषताओं को बताते, समझाते, दिखलाते, राज ने एक जगह झाड़ियों से घिरे चलते फव्वारों के पास रुक कर कहा, चलिए आपको तालियों का एक चमत्कार दिखाता हूँ। आप सब मेरे साथ ताली बजाएंगे तो फौवारे का पानी बंद हो जाएगा और फिर जब दुबारा मेरी तालियों के साथ लय मिलाएंगे तो फिर फौव्वारे चलने शुरू हो जाएंगे ! सभी विस्मित थे कि ताली की आवाज से पानी कैसे नियंत्रित हो सकता है ! सब उत्सुकता के साथ फौव्वारों के पास इकट्ठे हो गए।




सदा सच बोलो !
दीन दुखी की सेवा करो !
बड़ों का सम्मान करो !
छोटों को प्यार करो !
रोज़ सुबह ईश्वर का ध्यान करो !




खाँसी और ज़ुकाम  का,
करके काम तमाम।
अदरक वाली  चाय  ने,
ख़ूब कमाया नाम।।


आज बस
वंदन

शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

4357....आ अब लौट चलें

२०२५ कलैंडर वर्ष की प्रथम 
शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।

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नवतिथि का स्वागत सहर्ष
नव आस ले आया है वर्ष
सबक लेकर विगत से फिर
पग की हर बाधा से लड़कर 
जीवन में सुख संचार कर लो
हर क्षण से खुलकर प्यार कर लो।
सभी के हृदय सकारात्मक ऊर्जा से लबालब रहे
यही कामना करती हूँ।
---/--/---

आज की रचनाएँ-
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एक बेहद सकारात्मक आह्वान आइये
 हम सभी सहयोग करें,कोशिश करें,चिट्ठा जगत
के पुराने दिन वापस लौट आए।
 नया साल, नया संकल्प, एक सकारात्मक क़दम । शुभकामनाओं के साथ लाई हूं वही पुराना अनुरोध - चलो, फिर से पूरे जोश के साथ ब्लॉगिंग शुरू करते हैं । कुछ ब्लॉगर अभी भी नियमित हैं, कुछ को अपने ही ब्लॉग पर असुविधाओं का सामना करना पड़ता है, मैं नियमित नहीं, पर हूं ।




है जीवंत मन में खूबसूरत पल
बंद पलकों में है साकार सकल

है जीत भी मिली संग मिली हार
मिला जो भी उसे किया स्वीकार 




कुछ विरहगान
गुनगुनाती
पहाड़ी लड़कियाँ
गीत में...है 
समाया हुआ
दुःख पहाड़ का


जो बनाता है सड़कें
निकालता है कोयला 
चलाता है मशीनें
सबके हाथ होते हैं खुरदुरे । 
नरम नरम रेशमी कपड़ों के बुनकरों के हाथ 
कभी नरम और मुयलयम नहीं होते 
होते हैं खुरदुरे ही । 

करीब करीब सच...


झूठा साबित करने मे लगे हैं हर रिश्ते की तस्वीर को
मोहब्बत से भी ऊपर रखते हैं लोग जागीर को
पागल हुए फिरते हैं देखने को ताजमहल 'मगर'
कौन समझ पाया है यहाँ मुमताज की तकदीर को


शंकर ने सोचा चलो घाट पर लगा लूँगा अग्नि तो मैं ही दूंगा आखिर बेटा जो हूँ । सारी तैयारी होने पर शंकर सामने आया तो बड़े नाती ने रोक दिया - "मामा आपने नानी को इसी वचन के साथ माँ के साथ भेजा था कि नानी का आप मुँह नहीं देखेंगे और  दो सालों में न कोई खबर ही ली न ही आप मिलने आये। अब यह हक आप खो चुके हैं।" 
   


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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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गुरुवार, 2 जनवरी 2025

4356...चहुँदिस गुकेश का मान बढ़े...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय  प्रफ़ेसर गोपेश मोहन जैसवाल जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

2025 की द्वितीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

मंगलकामनाएँ।

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

सन 24 ताहि बिसारि दे, तू 25 की सुधि लेय

चहुँदिस गुकेश का मान बढ़े

हम्पी की हर कोई चाल पढ़े

बुमरा की बॉलिंग शीर्ष चढ़े

नित उज्जवलतम इतिहास गढ़े

अब महंगाई का राज न हो

फ़िरको में बंटा समाज न हो

रिश्वत से कोई काज न हो

संस्तुति का भ्रष्ट रिवाज न हो

*****

नव वर्ष (20 हाइकु)

चहकती है

नव वर्ष की भोर
ख़ूब है शोर।

ठिठुरन है
पर मन में जोश

नूतन वर्ष।

*****

 त्रिवेणी (समय)

तुम आए ..,साथ रहे.., किसी ने तुम्हे समझा.., किसी ने नहीं,

तुम्हे अलविदा कह , तुम्हें ही बाँट , तुम्हारा स्वागत करते हैं…,

समय तुम बहुत अच्छे हो , हमारी ग़लतियाँ माफ़ करते हो।

*****

आकांक्षा

समय की कैंची

कुशलता से निःशब्द

निरंतर काट रही है

पलों की महीन लच्छियों को

जीवन के दिवस,मास,

बरस पे बरस स्मृतियों में बदल रहे हैं

*****

चंदू, मैंने सपना देखा, लाए हो तुम नया कलैंडर- नव वर्ष 2025 पर कव‍िवर नागार्जुन की कव‍िता

चंदू, मैंने सपना देखा, अमुआ से पटना आए हो

चंदू, मैंने सपना देखा, मेरे लिए शहद लाए हो

चंदू, मैंने सपना देखा, फैल गया है सुयश तुम्हारा

चंदू, मैंने सपना देखा, तुम्हें जानता भारत सारा

चंदू, मैंने सपना देखा, तुम तो बहुत बड़े डॉक्टर हो

चंदू, मैंने सपना देखा, अपनी ड्यूटी में तत्पर हो

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


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