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गुरुवार, 9 जनवरी 2025

4363...मुझको भी तैरना है परिंदो के साथ में...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय जयकृष्ण राय तुषार जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।

आइए पढ़ते हैं पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

ऐ बसन्ती पात पीले

अब हवा में छैल भरती, गैल भरती नेह की,
ज्यों बढ़ाती धूप नन्दा, नव सुगन्धा देह की ।

रात भर चलती बयारें, टोह मारे बाज सी,
प्राण सेतू बह्म सींचें, आँख मींचे लाज सी ।

*****

पाथेय

भरी दोपहरी में

जीवन की

यदि शिकायत ही करते रह गये

तो ख़ाली हाथ जाना होगा

फिर उस दीर्घ मार्ग पर

कोई न ठिकाना होगा!

*****

एक ग़ज़ल -फूलों का हार दे

मुझको भी तैरना है परिंदो के साथ में
संगम के बीच माँझी तू मुझको उतार दे

झूले पे मैं झुलाऊँगा राधा जू स्याम को
चन्दन की काष्ठभक्ति से गढ़के सुतार दे


*****

अभाव

रिश्ते खूब मिले
पर प्रशंसा का अभाव मिला
नाम तो खूब मिला
पर अर्थ का अभाव मिला
चलते रहे निरंतर
पर मुकाम का अभाव मिला

*****

मानव-स्वास्थ्य

अत :व्यक्ति के लिए अपने  तन के स्वास्थ्य के साथ मन और आत्मा के स्वास्थ्य  की चिंता करना भी उतना ही आवश्यक है। जिस तरह स्थूल  शरीर के स्वास्थ्य के लिए अच्छा व्यायाम और भोजन आवश्यक है उसी प्रकार मन और आत्मा के अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्यक्ति का अच्छे लोगों की संगत में बैठना 
और अच्छा साहित्य पढ़ना भी अति आवश्यक है।जिस प्रकार अच्छा भोजन स्थूल शरीर की ख़ुराक है उसी प्रकार अच्छे लोगों की संगत एवं अच्छे साहित्य का पठन-पाठन व्यक्ति के मन और आत्मा की ख़ुराक है। 


*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


4 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात !! बड़े काम की बातें समेटे सुंदर अंक, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  2. मोहन उवाच ..
    सब भाषाओं के व्यंजन में
    बिन हिंदी सब सूना है
    जब हिंदी का लगता है तड़का
    स्वाद बढ़े तब दूना है।।
    सुंदर अंक
    कल विश्व हिंदी दिवस है
    शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं

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