''सोज़े वतन'' अब दिखाने हम चले !
भूत हो या भविष्य अथवा वर्तमान सदैव एक सच्चे लेखक की लेखनी स्वतंत्रता के नये आयाम गढ़ती है उनमें यदि ''मुंशी'' जी की बात न हो तो साहित्य कुछ अधूरा सा प्रतीत होता है। इस 'कालजयी' लेखक के बारे में जितना भी लिखूँ कम होगा ,लेखनी की ऐसी धार ग़रीब किसान, मजदूरों व उपेक्षित महिलाओं के दर्द की आवाज़ बनी।
यक्ष प्रश्न है ! इस लेखक के बाद साहित्य जगत में उनका उत्तराधिकारी कौन ? क्या वर्तमान लेखकों में यह गुण मौज़ूद है जो शोषितों का दर्द सुने ,उनकी आवाज़ बने ,निष्पक्ष लेखन ,समाज में व्याप्त सामंतवादी विचारों के विरोध में अपनी लेखनी को एक नई दिशा दे अथवा मिथ्या ही लोगों के महिमामंडन में व्यस्त ,बुलंदियों को छूने की लालसा में स्याह लिपटे विचारों को और स्याह करे
भय विचारों को खंडित करता है एवं कायरता
मिथ्या मार्ग को और प्रशस्त्र करता है
यदि भय लेखनी पर विजय पा ले !
परिणाम
'विध्वंसक' निश्चय है !
आवश्यक है यथार्थवादी लेखन, संभव है ! हमारी लेखनी की 'स्वतंत्रता', जिसका मूल हमारे विचारों की 'निर्मलता' देगा भविष्य के साहित्य को एक नया आयाम
जो जन्म देगी एक और कालजयी 'लेखक'
''मुंशी प्रेमचंद्र''
के जन्म दिवस पर
''पाँच लिंकों का आनंद''
परिवार इस कलम के 'सिपाही' को कोटि-कोटि नमन करता है
( जन्म : ३१ जुलाई १८८० वाराणसी 'लमही' )
आज का सफ़र कुछ ख़ास है फिर भी एक कमी रहेगी आदरणीय ''यशोदा'' दीदी की क्योंकि आज मेरी प्रस्तुति का अवलोकन अधूरा है
सब यहाँ मेहमान रे
आदरणीय ''कंचन प्रिया'' जी की एक अनमोल
कृति
हँस रहा है दर्द पे तू है कहाँ इंसान रे
चार दिन की जिंदगी पे मत करो अभिमान रे
आईना- मेरा दस्तावेज
आदरणीय ''अपर्णा त्रिपाठी'' की रचना
सब यहाँ मेहमान रे
आदरणीय ''कंचन प्रिया'' जी की एक अनमोल
कृति
हँस रहा है दर्द पे तू है कहाँ इंसान रे
चार दिन की जिंदगी पे मत करो अभिमान रे
आईना- मेरा दस्तावेज
आदरणीय ''अपर्णा त्रिपाठी'' की रचना
उठ चुकी थी पत्नी
शायद बनाने गयी थी चाय।
तभी नजर गयी
उस आइने पर
जो इस कमरे में
एक अरसे से
सोता जागता था
शायद बनाने गयी थी चाय।
तभी नजर गयी
उस आइने पर
जो इस कमरे में
एक अरसे से
सोता जागता था
मैं बीच की कड़ी हूँ ....
आदरणीय ''प्रतिभा स्वाति'' जी की हृदयस्पर्शी रचना
माँ और बेटी ...
बेटी और माँ !
बिछुड़ना नियति ...
रो रहा आसमां !.
मैं एक मामूली मिट्टी का दिया
पहली बार इस ब्लॉग पर
आदरणीय ''नूपुरम'' जी की एक
'कृति'
मैं मनोबल हूँ ।
जो अंतर में,
अलख जगाये,
आस बँधाये ।
****आओ जीवन के किरदार में सुन्दर रंग भरे***
जीवन का महत्व बताती
आदरणीय ''ऋतु आसूजा'' जी की एक
कृति
एक अनसुलझी पहेली
जीवन सत्य है
पर सत्य भी नहीं
पर जीवन क्या है
एक अनसुलझी पहेली ।।
तुम्हारे दूर जाने से ---------- कविता
आदरणीय ''रेणु बाला'' जी की एक अनुपम
कृति
तुमसे कोई अनुबंध नहीं साथी -
जीवन भर साथ निभाने का .
.फिर भी भय व्याप्त है मनमे -
तुमको पाकर खो जाने का ;
समझ ना पाया दीवाना मन –
क्यों कोई अपरिचित इतना ख़ास हुआ ?
आसक्ति .........
हमारे युवा कवि आदरणीय ''पुरुषोत्तम'' जी की हृदय को स्पर्श करती एक
रचना
विशाल भुजपाश में जकड़ी,
व्याकुल मन सी दौड़ती वो हिरणी,
कभी ब्रम्हांड में हुंकार भरती,
वेदनाओं मे क्रंदन करती वो दामिणी,
कभी आँसूओं में करती क्रंदन,
या कभी सन्नाटों के क्षण, आँसुओं के मौन...
तो क्या…?..... कुमार शर्मा ‘अनिल’
आदरणीय ''दिग्विजय अग्रवाल'' द्वारा संकलित एवं कुमार शर्मा 'अनिल' द्वारा लिखित समाज को दर्पण दिखाती एक 'लघु कथा'
उसने बहुत बार सोचा था कि यह वाकई में प्रेम है
या मात्रा शारीरिक आकर्षण अथवा पत्नी से नीरस बन चुके
सम्बन्धों से उकता जाकर कुछ नया तलाशने की पुरुष की आदिम प्रवृत्ति।
प्रेम और शारीरिक आकर्षण में
अंतर की बहुत ही महीन सी रेखा होती है और इन्हें एकदम से अलग कर नहीं देखा जा सकता।
फोटोग्राफी : पक्षी 19 (Photography : Bird 19 )
आज की प्रस्तुति के अंत में पंक्षी प्रेमियों के लिये
आदरणीय राकेश श्रीवास्तव ''राही'' द्वारा संकलित एक विशेष प्रजाति के पक्षी के संदर्भ में अतिमहत्वपूर्ण जानकारी
कबूतर (फाख्ता) पक्षी कोलंबिया परिवार का सदस्य है।
इस पक्षी को अक्सर "कबूतर" के रूप में जाना जाता है।
इसके चोंच के शीर्ष पर सफ़ेद रंग का विशिष्ट ठोस उभार होता है।
आपकी प्रतीक्षा में ''मेरी भावनायें''
'सोज़े वतन'
अब बताने हम चले
लेखनी का मूल क्या ?
तुझको जताने हम चले
भौंकती है भूख नंगी
मरने लगे फुटपाथ पे
नाचती निर्वस्त्र द्रौपदी
पाण्डवों की आड़ में
हाथ में चक्र है सुदर्शन
लज्ज़ा बचाने हम चले
'सोज़े वतन'
अब बताने हम चले
( प्रस्तुत अंश मेरी नवीन 'कृति' से उदधृत हैं। )
''एकलव्य''
'सोज़े वतन'
अब बताने हम चले
लेखनी का मूल क्या ?
तुझको जताने हम चले
भौंकती है भूख नंगी
मरने लगे फुटपाथ पे
नाचती निर्वस्त्र द्रौपदी
पाण्डवों की आड़ में
हाथ में चक्र है सुदर्शन
लज्ज़ा बचाने हम चले
'सोज़े वतन'
अब बताने हम चले
( प्रस्तुत अंश मेरी नवीन 'कृति' से उदधृत हैं। )
''एकलव्य''