।।प्रातः वंदन ।।
किस का आलोक गगन से
रवि शशि उडुगन बिखराते?
किस अंधकार को लेकर
काले बादल घिर आते?
उस चित्रकार को अब तक
मैं देख नहीं पाया हूँ,
पर देखा है चित्रों को
बन-बनकर मिट-मिट जाते!
भगवतीचरण वर्मा
चित्रों का बनकर मिटना और फिर से नये चित्रों को उकेरने शायद इसे ही प्रकृति की लीला कहतें हैं..आस्था, उमंगों के बीच लिजिए कुछ पल खास शब्दों के संग..✍️
सुनो ज़िंदगी !
आम जनता को केजरीवाल से जरूर सतर्क रहना चाहिए!
"वैसे तो कमोवेश सभी सियासी दल मौक़ा मिलते ही अपने वादों से पलट जाते हैं लेकिन जिस तरह केजरीवाल पलटते हैं उसकी मिसाल नहीं मिलती। अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत में केजरीवाल जी ने कसम..
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दोनों हथेलियाँ
क्या लिखूं क्या नहीं
बारम्बार लिखना लिखाना
फिर खोजना क्या नवीन लिखा
पर निराशा में डूब जाना
कुछ नया न लगा नए लेखन में |
बहुत बार पढ़ा पर मन असंतुष्ट रहा
कागज़ ढूंडा कलम ढूँढी पर मिल न पाई ..
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।। इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️