शीर्षक पंक्ति:आदरणीया डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री' जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं पसंदीदा रचनाएँ-
मोह,विछोह ना जान सकी,
रही मुग्ध निहार स्व- दर्पणमें!
भूली सब रिश्ते नाते ,
जब डूबी सर्वस्व समर्पण में !
तुम से दूर रही तनिक भी
तड़पी ज्यों जल बिन मीन सदा!
सार गीता का समझकर मन मदन गोपाल कर
कर कहीं उपहास तो मनु जाँच ले अपना हृदय |
सामने उस ईश के तू क्यों खड़ा भ्रम पाल कर ||३
त्याग के ही भाव में संतोष का धन है छुपा |
सार गीता का समझकर मन मदन-गोपाल कर ||४
अंकुरण से पूर्व ही, मरुथल- सी धरती हो गई;
ताप कोई भी शेष हो, इस बीज को संहार दे दो।
है पवन भी रुक्ष- सी, वृक्ष कंटक बन खड़े;
इतनी -सी मेरी प्रार्थना, मृत्यु को आकार दे दो।
वितृष्णा - "ये कैसा प्रेमः था" ?
अप्रतिम अंक
जवाब देंहटाएंसुंदर चयन
सादर
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
बहुत सुंदर सराहनीय अंक।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंसुन्दर और भावपूर्ण रचनाओं के साथ एक सार्थक प्रस्तुति रवींद्र जी। सुधा जी मार्मिक कथा और अनीता जी के सार्थक लेख के साथ दोनों काव्याभिव्यक्तियां बहुत ही अच्छी लगी।मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए आभारी हूँ।सभी रचनाकारो को सस्नेह बधाई।आपको विशेष आभार और शुभकामनाएँ।🙏
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लिंको से सजी बहुत ही लाजवाब हलचल प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.रविंद्र जी ! सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं ।