अरुण यह मधुमय देश हमारा (जयशंकर प्रसाद)
अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।।
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा।।
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा।।
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा।।
वंदे मातरम्
आह्वान (अशफाकउल्ला खां)
कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,
आजाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे
हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे
बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरख़े का,
चरख़े से ज़मीं को हम, ता चर्ख़ गुंजा देंगे
परवाह नहीं कुछ दम की, ग़म की नहीं, मातम की।
है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे
उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज़ न निकालेंगे
तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे
सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका
चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे
दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं
ख़ूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे
मुसाफ़िर जो अंडमान के, तूने बनाए, ज़ालिम
आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे
आजादी (राम प्रसाद बिस्मिल)
इलाही ख़ैर! वो हरदम नई बेदाद करते हैं,
हमें तोहमत लगाते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं
कभी आज़ाद करते हैं, कभी बेदाद करते हैं
मगर इस पर भी हम सौ जी से उनको याद करते हैं
असीराने-क़फ़स से काश, यह सैयाद कह देता
रहो आज़ाद होकर, हम तुम्हें आज़ाद करते हैं
रहा करता है अहले-ग़म को क्या-क्या इंतज़ार इसका
कि देखें वो दिले-नाशाद को कब शाद करते हैं
यह कह-कहकर बसर की, उम्र हमने कै़दे-उल्फ़त में
वो अब आज़ाद करते हैं, वो अब आज़ाद करते हैं।
सितम ऐसा नहीं देखा, जफ़ा ऐसी नहीं देखी,
वो चुप रहने को कहते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं
यह बात अच्छी नहीं होती, यह बात अच्छी नहीं करते
हमें बेकस समझकर आप क्यों बरबाद करते हैं?
कोई बिस्मिल बनाता है, जो मक़तल में हमें ‘बिस्मिल’
तो हम डरकर दबी आवाज़ से फ़रियाद करते हैं।
सैनिक (हरिवंश राय बच्चन)
कटी न थी गुलाम लौह श्रृंखला,
स्वतंत्र हो कदम न चार था चला,
कि एक आ खड़ी हुई नई बला,
परंतु वीर हार मानते कभी?
निहत्थ एक जंग तुम अभी लड़े,
कृपाण अब निकाल कर हुए खड़े,
फ़तह तिरंग आज क्यों न फिर गड़े,
जगत प्रसिद्ध, शूर सिद्ध तुम सभी।
जवान हिंद के अडिग रहो डटे,
न जब तलक निशान शत्रु का हटे,
हज़ार शीश एक ठौर पर कटे,
ज़मीन रक्त-रुंड-मुंड से पटे,
तजो न सूचिकाग्र भूमि-भाग भी।
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और चलते-चलते
पढ़िए युवा वर्ग के विचारों का प्रतिनिधित्व करती
कवयित्री की क़लम से-
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
सादर
आदरणीया मैम, इस अत्यंत ही विशेष प्रस्तुति में मेरी रचना जोड़ने के लिए अनेक -अनेक आभार । इतिहास के सभी महान कवि एवं क्रांतिकारियों की रचनाओं के साथ आपने मेरी कविता जोड़ी , आपका असीम स्नेह है । कल से बड़े दिनों बाद ब्लॉग पर सक्रिय हुई हूँ और आते ही आपने इतना सुंदर उपहार दे दिया । आप आज की यह हल-चल देश-भक्ति के भाव से ओत -प्रोत है और हम सब के मन को उत्साहित कर रही है । ब्लॉग जगत पर आप सभी बड़ों ने बहुत स्नेह और आशीष दिया है, मेरे इतने दिनों के अवकाश पर भी आप सब मुझे भूले नहीं। अपनी आशीष की छत्र-छाया बनआए रखिएगा।आप सबों को मेरा सादर प्रणाम । अब से सक्रिय रहूँगी ।
जवाब देंहटाएंआज़ादी के अमृत महोत्सव पर आज की प्रस्तुति सराहनीय है । प्रथम नमन देश के वीर सपूतों को ज8नके कारण देश और हम सुरक्षित रहते हैं । हम सब उनके कर्जदार हैं । सभी गीत और रचनाएँ मन को छू लेने वालीं । अनंता को शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंआज़ादी के अमृत महोत्सव पर आज की प्रस्तुति सराहनीय है । प्रथम नमन देश के वीर सपूतों को जिनके कारण देश और हम सुरक्षित रहते हैं । हम सब उनके कर्जदार हैं । सभी गीत और रचनाएँ मन को छू लेने वालीं । अनंता को शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंजय माँ भारती : जय हिन्द की सेना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बहुत ही उम्दा संकलन
आज़ादी के अमृत महोत्सव पर देशभक्ति से ओतप्रोत सुंदर,प्रेरक प्रस्तुति । बहुत शुभाकामनाएं और बधाई 🌹🌹
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