बस
सादर
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
सबके जमाखोर!
ताल ठोकते रहे तुमसे,
चकले में हैवानियत के।
तनिक भी तूने, तब भी नहीं की,
मौत की कालाबाज़ारी!
डटे रहे राह पर बराबरी के,
‘सब धन बाइस पसेरी”
तुम्हारे होने से मन घर बन जाया करता है...संदीप कुमार शर्मा
एक कोने में
कुछ यादें रखी
थीं
सहेजकर
उन पर भी
धूल की मोटी परत थी।
नयन-नयन... पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
इच्छाओं के घेरों में, निस्पृह मन,
ज्यूँ, निस्संग, कोई तुरंग, भागे यूँ सरपट,
सूने से, उन सपनों संग,
विवश, बंद-बंद अपने आंगन,
जागी सी, इच्छाओं संग,
कैद हुए, ये क्षण!
कांधा दिए आँखों में आंसू ,लाचारी
धैर्य देते-देते अब खुद धैर्य को थामे
के जाओ नहीं छोड़कर साथ हमारा
तुम नहीं तो कैसे देंगे हम हौसला
एक-एक करके सभी छोड़े जा रहे
फिर भी लटक रही तलवार
चारों तरफ कोरोना ने
मचाई है हाहाकर
ताली बजाई, थाली बजाई
बेमौसम दिवाली मनाई
लेकिन खतरा टला नहीं
आसानी से जाने वाली
ये छोटी सी बला नहीं
सब कुछ कर डाला हमने
फिर कोरोना मरा नहीं
रवीन्द्र सिंह यादव