दुनिया का सबसे ताकतवर इन्सान वो होता है,
जो धोखा खा के भी लोगों की मदद करना नहीं छोड़ता !!
सादर नमन.....
नयी समय-सारणी के अनुसार.....
मैं आज उपस्थित हूं......
पढ़िये.....
आज के लिये मेरी पसंद।
विलुप्त प्रतिबिम्ब - -
जिस्म का फ्रेम
टूट ही जाएगा एक दिन,
कांच के पृष्ठ पर
चाहे जितनी ख़ूबसूरत
तुम ग़ज़ल लिखो,
हर एक आह लेकिन
असली शलभ नहीं होता,
काग़ज़ी फूलों की भीड़ में
मुरझाने का सबब नहीं होता।
हाड़ मांस का चौखट है
हाँ, नपुंसक ही है वो
जागो, जागो, जागो
ओ बसंती हवाओं मत मिटाओ खुद को
उन नामर्दों के लिए तुम्हारे दर्द से बेहाल है
आज सम्पूर्ण स्त्री जाति तुम्हारे
आँसुओं से सुलग रही है
हमारी छाती
खुद पर रहम करना
आखिर कब सीखोगी तुम ?
वो न समझा है, न समझेगा.
सुबह पंछियों की आवाजों पर
कान टिकाये हुए चाय पीना
मध्धम आंच पर पकता सुख है.
इंतजार कोई नहीं...
फरहत शहजाद गुनगुना रहे हैं...
वो न समझा है, न समझेगा,
मगर कहना उसे...
मैं दुःख का जश्न मनाऊँगा
आजन्म रही मेरे हिस्से
धन्यवाद।
आभार भाई कुलदीप जी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक..
सादर..
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जवाब देंहटाएंअत्यंत सुंदर और सशक्त प्रस्तुति। हर एक रचना नव-प्रेरणा से भर देती है और सामयिक रचनाएँ जो हमें जागरूक बनाती हैं।
जवाब देंहटाएंनपुंसक हैं वो स्त्री को स्वयँ सशक्त होने का बहुत सुंदर सन्देश देता है। मुझे विशेष रूप से यह कविता अच्छी लगी। हृदय से आभार इस सुंदर प्रस्तुति के लिए व आप सबों को प्रणाम।
बहुत ही सुंदर आज की प्रस्तुति बहुत-बहुत आभार हमारी पोस्ट को शामिल करने के लिए आदरणीय कुलदीप जी
जवाब देंहटाएंसुंदर सराहनीय संकलन
जवाब देंहटाएंजो भोगा पग-पग वही लिखा
जवाब देंहटाएंजैसा हूँ मुझमें वही दिखा
मैं कंकड़-पत्थर-काँटों पर
हर मौसम चलने का आदी.
वातानुकूल कक्षों में शिखरों-
की प्रशस्ति के तुम गायक
है मिली हुई जन्मना तुम्हें
कुछ भी करने की आजादी.
तुम सुख-सुविधा को मीत चुनो
मैं दुःख का जश्न मनाऊँगा.
जैसी सशक्त रचना के साथ सराहनीय प्रस्तुति प्रिय कुलदीप जी। प्रतिभा जी के भावपूर्ण लेख और सभी काव्य रचनाएँ बहुत बढ़िया है। सभी रचनाकारों को नमन।। आपको बधाई और शुभकामनाएं 💐💐
बहुत बढ़िया लिंक्स । थोड़ी देर हो गयी प्रतिक्रिया देने में
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