सैर कर दुनिया की गाफिल, जिन्दगानी फिर कहां? जिन्दगी गर कुछ रही, तो नौजवानी फिर कहां’
आधुनिक हिंदी साहित्य के महापंडित, इतिहासविद, पुरातत्ववेत्ता, त्रिपिटकाचार्य, एशियाई नवजागरण के प्रवर्तक-नायक राहुल सांकृत्यायन किसी परिचय के
मोहताज़ नहीं
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आज रचनाओं पर प्रतिक्रिया स्वरूप लिखी मेरी पंक्तियाँ रचनाओं के सम्मान में रचनाकारों के मनोभावों को समझने का एक प्रयास है।
आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं
काव्यात्मक भूमिका के साथ-
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जीवन-मरण है सत्य शाश्वत
नश्वर जग,काया-माया छलना
जीव सूक्ष्म कठपुतली ब्रह्म के
हम जाने क्यूँ जीते जाते है?
व्यथा जीवन की भुलाती
गंध मृत्यु की बड़ी लुभाती
जीवन से अनंत की यात्रा में
चिर-निद्रा में पीड़ा से मुक्ति पाते है।
सफर
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जन्म से मरण तक
काँपती लौ श्वास रह-रह
मोह की परतों में उलझा
जीवन का असली वेश क्या?
क्यों बता न जग का फेरा
मायावी कुछ दिन का डेरा
चक्रव्यूह रचना के मालिक
है सृष्टि का उद्देश्य क्या?
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व्यर्थ नहीं हूँ मैं,
मुझसे ही तुम्हारा अर्थ है/धरा से अंबर तक फैले
मेरे आँचल में पनपते है/सारे सुनहरे स्वप्न तुम्हारे
मुझसे ही तो तुम समर्थ हो हूँ मैं,तुम्हारे होने की वजह
सिर्फ तुम्हारी इच्छा अनिच्छा के डोर से झुलती
कठपुतली भर नहीं"तुम भूल जाते हो क्यों
मैं मात्र एक तन नहीं,नन्हीं इच्छाओं से भरा
एक कोमल मन भी हूँ।"
अस्तित्व
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रंगीन ख्वाबों सी आँख में भरी तितलियाँ
ओस की बूँदों सी पत्तों पे ठहरी तितलियाँ
बादलों के शजर में रंग भरने को आतुर
इन्द्रधनुष के शाखों पे मखमली तितलियाँ
बचपना दिल का लौट आता है उस पल
हौले से छूये गुलाबों की कली तितलियाँ
उदास मन के अंधेरों में उजाला है भरती
दिल की मासूम कहानी की परी तितलियाँ
अपना घर अपनी दुनिया
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चौहद्दी में बंद संवेदना,छद्म चीख़ का राज हुआ
शेर डटे हैं सरहद पर ,जंगल का राज़ा बाज़ हुआ
कबतक प्रश्न टोकरी ढोये ,उत्तर ढूँढें बोझिल आँखें
कबतक बंधक दर्द को रखे,उड़ पायेंगी चोटिल पाँखें?
किरणों की आहट
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मन की तरंगों का
चेतना के तटों से/टकराकर लौटने का
अनहद नाद भ्रम ,माया,मरीचिका के
मिथ्य दरकने के उपरांत उकताया,विरक्त
सुप्त-जागृत मन ने जाना
एहसास का कोई चेहरा नहीं होता।
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एक संदेशात्मक और सार्थक कहानी
अवश्य देखिए,सुनिये और समझिए
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आज बस इतना ही
आप सबों की प्रतिक्रियाओं की
प्रतीक्षा रहती है।
पढ़ना न भूले
कल विभा दी लेकर आ रही है
विशेष अंक।
#श्वेता
राहुल जी की स्मृतियों से आगाज करती आज की हलचल वाकई अनुभूतियों के स्तर पर एक नवीन एहसास है। बहुत सुंदर लिंक संयोजन चर्चाकार की अपनी मौलिक समीक्षा की छौंक के साथ। साधुवाद!
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली प्रस्तुति हेतु बधाई आदरणीय श्वेता जी।।।।।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
व्यथा जीवन की भुलाती
जवाब देंहटाएंगंध मृत्यु की बड़ी लुभाती
जीवन से अनंत की यात्रा में
चिर-निद्रा में पीड़ा से मुक्ति पाते है।
बहुत सुंदर और मार्मिक भूमिका प्रिय श्वेता। आजकल सभी कवि लोग वैरागी हो जीवन मृत्यु पर शब्द बाण साधे बैठे हैं। खैर सभी रचनाकारों को नमन और बधाई। तुम्हें शुभकामनाएँ और स्नेह सुंदर प्रस्तुति के लिए। सभी लिंक सराहनीय।
ये सभी में एक तो मैं शामिल हूँ । बाकी कौन ? 😍😍😍
हटाएंप्रिय दीदी, आप, श्वेता और विश्व मोहन जी 😃🙏🙏
हटाएंखूबसूरत प्रस्तुति श्वेता । मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार ।
जवाब देंहटाएंयायावर राहुल सांस्कृत्यायन जी के जन्मदिन पर उनको मेरा नमन ।
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा बहुत विशेष लगी । हर लिंक्स की रचना पर चर्चाकार की काव्यात्मक टिप्पड़ी ने मन मोह लिया । सफर में ओर जीवन दर्शन दिख गया तो अस्तित्त्व में स्वयं के होने का एहसास , अपना घर ,अपनी दुनिया ने कल्पना के पंख लगा दिए तो किरणों की आहट ने चुटीले और तीक्ष्ण कटाक्ष से अवगत कराया ,और मन की नदी के तट पर महसूस कराया कि मन को नदी की तरह बहते देना चाहिए ।और साथ में ये भी कि मन को तो बहने दें लेकिन पानी को बचा लें ।
बेहतरीन अभिव्यक्ति रही आज की ।लिंक के साथ चर्चाकार की भावनाओं की समरूपता गज़ब की लगी । श्वेता को हार्दिक बधाई ।
श्वेता जी बहुत ही गहरा और गहन अंक है, बहुत बधाई स्वीकार कीजिए। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंरचनाओं के मन को अनावृत करती काव्यात्मक पंक्तियों के साथ बहुत सुन्दर संयोजन है। हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंऐसे अंक में मुझे भी सहभागिता देने के लिए हृदय से आभार आपका।
राहुल सांस्कृत्यायन
जवाब देंहटाएंहिन्दी साहित्य
का एक प्रखर नाम
...
कल से तबियत नरम थी
सो देर हुई
इतमीनान से पढ़ूँगी
रचनाएँ
आभार
सादर..
यायावर राहुल सांस्कृत्यायन जी के जन्मदिन पर नमन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर काव्यात्मक खास प्रस्तुति के लिए श्वेता जी को बधाई। सारगर्भित लिंकों का चयन।
शुभकामनाएँ
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुंदर और विशेष प्रस्तुति आज की। आपकी प्रस्तुति सदैव अनंदकर होती है पर आज की प्रस्तुति आनन्दकर होने के साथ साथ आध्यात्मिक और जीवन के रहस्यों को समझानेवाली और मन की आँखें खोलने वाली है।
हर रचना सुंदर और आपकी भूमिका बहुत प्यारी है।
हृदय से आभार आज की बिल्कुल अलग और विशेष प्रस्तुति के लिए व आप सबों को प्रणाम।
हटाएंबचपना दिल का लौट आता है उस पल
हौले से छूये गुलाबों की कली तितलियाँ
उदास मन के अंधेरों में उजाला है भरती
दिल की मासूम कहानी की परी तितलियाँ... इतना सुंदर लिखा आपने श्वेता जी , कि मेरी रचना हल्की हो गई,मनोभावों की सटीक व्याख्या करती सुंदर पंक्तियों को सादर नमन करती हूं,मेरी रचना को मान तथा स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवम वंदन । जिज्ञासा सिंह ।
प्रिय जिज्ञासा ,
हटाएंहांलांकि आपने श्वेता को लिखा है , लेकिन यहाँ मैं एक बात कहना चाह रही हूँ कि हर व्यक्ति की सोच अलग होती है , हर लिखने वाले का लिखने का तरीका अलग होता है , कोई किसी से कम या ज्यादा नहीं होता , किसी की रचना किसी के लिखने से हल्की नहीं हो जाती । ऐसी बातें अपने मन में न लाया कीजिये । मैं तो डिप्रेशन में आ जाऊँगी क्योंकि आपके हिसाब से यदि सोचने लगूँ तो मेरी तो कोई भी रचना कहीं नहीं ठहरेगी । इस लिए खुले मन से सबके लिखे का स्वागत कीजिये और अपने को सबसे अच्छा लेखक समझिए । ज़िन्दगी मज़े से कटेगी । 😄😄😄
प्रिय जिज्ञासा जी,
हटाएंमेरा उद्देश्य मात्र आपकी रचना के मनोभावों के मर्म को छूना था, काव्यात्मक प्रतिक्रिया एक प्रयोगभर था प्रस्तुति की रोचकता बनाने के लिए।
चूँकि सिर्फ़ पाँच ही सूत्र जोड़े जाते हैं इसलिए हम सबका प्रयास रहता है पाठकों की रोचकता बनी रहे।
प्रिय जिज्ञासा जी आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी आपकी छाप वाली बहुत सुंदर कृति है आपकी रचना को हाइलाइट करने के लिए
सटीक पंक्तियाँ चुनने में सबसे ज्यादा समय लगा था,बार बार सोच रहे थे आप को कैसा लगेगा? जब आप पढ़ेगी तो आपको निराशा न हो,
कृपया मेरी कोशिश को सकारात्मक लें जिज्ञासा जी।
आप सभी का स्नेह और सहयोग आपकी प्रतिक्रिया ही हम चर्चा कारों की ऊर्जा है।
साथ बनाये रखे।
आपने उदारता से अपने मन की बात रखी बहुत अच्छा लगा आपका स्नेह मिला बहुत आभारी हूँ।
सादर।
प्रिय श्वेता जी, मेरी रचना पे आपकी आशु पंक्तियों ने मेरा मन मोह लिया,उसी के प्रत्युत्तर में मैने कुछ लिखा होगा, बस,मैने ज्यादा ध्यान ही नही दिया,सच मैं अगर इतना सोच पाऊं तो शायद आपको मेरा एक उपन्यास एक दिन आपको पढ़ना पड़ सकता है😃😃तैयार रहिएगा सखी,मैं आपकी हर बात को सकारात्मक लेती हू,ब्लॉग पर आपकी टिप्पणियों को आंखें खोजती रहती हैं,मैं तो आपके सुंदर और श्रमसाध्य कार्य की मन से सराहना करती हूं कि आप लोग हमारी रचनाओं को अन्य लोगो तक पहुंचाते हैं,आपके इस प्रोत्साहन भरे कार्य को हृदय से नमन है,कृपया स्नेह बनाए रखें,इसी आशा में जिज्ञासा सिंह ।
हटाएंप्रिय संगीता दी,
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभारी हूँ।
आपके अनुभव के खजाने से निकले सकारात्मकता के मोती
मन में शुभता भर जाते हैं।
प्रणाम दी।
सप्रेम
सादर।
आदरणीय संगीता दीदी, सच कहूं तो अपनी लिखी कोई भी रचना बड़ी मौलिक और सार्थक लगती है,क्योंकि लिखते वक्त हम उसी भावों में खो जाते हैं,जो रचना का विषय होता है,कभी कभी तो ध्यान ही नही रहता कि क्या लिखना था और क्या लिख गए,बाद में सही गलत ठीक करती हूं,दीदी मैं ने बिना कुछ देखे,समझे, बड़े प्रेम से श्वेता जी की सुंदर भावनाओं को ग्रहण किया और स्नेह पूर्वक अपने आदर को प्रकट कर दिया, उसमें मैने कुछ भी नहीं सोचा,जब अभी पढ़ा तो समझ आया कि शायद ये नही लिखना चाहिए था,आपके सुंदर सुझावों और मार्गदर्शन की मुझे हमेशा जरूरत है, हर रचना पर आपकी बहुमूल्य टिप्पणी का इंतजार रहता है,अवसाद जैसा शब्द आप सोचे भी न, हक से जिज्ञासा को डांट भी सकती हैं,आपके स्नेह और प्रोत्साहन की आशा में जिज्ञासा सिंह ।
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