अनुच्चारित शिलालिपि...शांतनु सान्याल
क्रंदनमय इस महा -
निशा के शेष
प्रहर में हैं
खड़े
कुछ उजानमुखी नाव, सुदूर कहीं
तैरते दिखाई पड़ते हैं, कतिपय
टिमटिमाते हुए बंदरगाह,
टूटे जो संयम...पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
नवसंवत्सर आ गया | दस दोहे नवसंवत्सर के | नवसंवत्सर 2078 की शुमकामनाएं | डॉ. वर्षा सिंह
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा, विकसित होगा सोम ।
होगी हर्षित यह धरा, पुलकित होगा व्योम ।।
फलियां भरे बबूल हैं, हरियाले हैं बांस।
महुआ फूले हैं यहां, पुष्पित वहां बुरांस।।
बंद गली | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | कविता
गोया, मेरी समझ
हो गई है
बंद गली का आख़िरी दरवाज़ा
जिसके आगे
दम तोड़ दिया है
हर रास्ते ने।
चैत्र माह-हिन्दू नवसंवत्सर-होली के संग...
आम्रकुंज में बौर जो महका
गूंज उठे कोयल के राग
समय न देखे उम्र न देखे
किलक उठे रंगीले फाग
देखो बोल रहा त्योहार
छू लो अब चंग
अलग-थलग सबसे विलग
मौन हो गए और हो गए विलय
नवागन्तुक प्रहर की लहर में विलीन ।
अब मिलना होगा नव संवत्सर की चौखट पर ।
हमारे पद-चापों की
धमक से
हारते गए अँधियारे
खुलते गए रास्ते
क्षितिज रंगते गए
सतरंगी रंगों से
देखो गौर से वहाँ अब
उड़ते हैं सुनहरे पंछी
आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी,
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स पठनीयता से भरपूर एवं दिलचस्प हैं।
मुझे प्रसन्नता है कि आज की पांच लिंकों में मेरी पोस्ट को भी स्थान दिया गया है।
हार्दिक आभार 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
नमस्ते रवीन्द्र जी, पछुआ बहे या पुरवाई! आनंद संवत् बहा ले आई ! धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंपांच टहनियों पर आशा के फूल खिले हैं ।
संवत् शुभ हो, बाट जोह रहे हैं ।
रवीन्द्र जी सभी लिंक बहुत दिलचस्प...मेरी रचना को स्थान देने का बहुत शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंवाह , बहुत शानदार लिंक्स । । बढ़िया रही चर्चा ।
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र सिंह यादव जी,
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार कि आपने "पाँच लिंकों का आनन्द" में मेरी कविता को स्थान दिया है।
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद 🌹🙏🌹
- डॉ शरद सिंह
सभी लिंक्स उम्दा हैं।
जवाब देंहटाएंसुरुचिपूर्ण संयोजन के लिए हार्दिक बधाई रवीन्द्र सिंह यादव जी 🙏 💐💐