हाज़िर हूँ...! उपस्थिति दर्ज हो...
खिला सरसों-मटर , पीले फूलों से लदा अमलताश, लाल फूलों से लदा गुलमोहर और सेमल...। सेमल से उड़ती रुई.. बचपन से मैं घण्टों पेड़ के नीचे गुम रहा करती थी.. झारखंड के केन्दपोसी में जब रहती थी तो काजू के पेड़ के पास रहना मेरे लिए नशा था.... आज भी कोई उलझन हो तो ये निस्वार्थ प्रकृति उबरने में सहायक होती है.... शुक्रिया
मैं अकेला घूम रहा था , जैसे कोई बादल
उड़ता है घाटियों और पहाड़ों पर
अचानक मुझे दिखा एक झुण्ड - एक दल
डेफोडिल फूलों का मगर
झील के पास , पेड़ों के नीचे
हिलते , नाचते जैसे पवन खींचे
ना जानू तुम कौन हो मेरे,प्रियतम या सखा हो
बेनाम ही रेहने दो ये रिश्ता,नाम में क्या रखा है।
इतना समझती हूँ मैं,बरसों का अपना अफ़साना
आउ जब भी तेरी छाया में,हरदम प्यार के फूल बरसाना।
ज़िंदगी की मुश्किल राहों में , तेरे फूल चुन चुन लाती हूँ
तेरे संग होने के एहसास से ही,कितना सुकून पाती हूँ।
हल्दी की थाप से सजी तुम्हारी गलियाँ
जब जोहती हैं बाट बसन्त की
सावन को पुकारतीं हैं
किसी नवब्याता बेटी की तरह
मैं जेठ की लू भरी दोपहरी से पूछती हूँ तुम्हारा पता
ना जाने किस देश में है तुम्हारा ठौर
तुम जब भी लौटना
पता है न तुम्हें
मौलश्री के पेड़ के नीचे की
शाम भी हो गई है सुनसान
मौसम तो आएगा
गुलमोहर भी यूं ही
हर साल खिलेंगे
पर क्या हम तुम
फिर कभी यूं ही
बेतकल्लुफ
होकर मिलेंगे
मेरे धावक दिल ने पकड़ ली रफ़्तार,
कान सुनने लगे मधुमक्खियों का गुंजन
खोपड़ी हो गयी संतरे की दो फांक
अनुभूतियां बदलने लगीं करवट दर करवट
मेरा अंत मुझे क़रीब लगने ही लगा था
कि, तभी आया थिरकता हुआ रंगों का प्लाज़्मा
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पुन: भेंट होगी...
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सादर नमन..
जवाब देंहटाएंअद्वितीय प्रस्तुति
सादर..
बढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम कृतियों की लाजबाव प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर कृतियों का अनोखा संकलन ।शानदार प्रस्तुति । सादर शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंआदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुंदर और विशेष प्रस्तुति। आज हर एक रचना पढ़ते हुए सच में लगा जैसे फूल चुन रहे हों। गुलमोहर मेरी प्रिय रचना रही और डाफोडिल्स का हिंदी अनुवाद पढ़ना भी मन आनंदित कर दिया।
हार्दिक आभार इस बहुत ही सुंदर प्रस्तुति के लिए व आप सबों को प्रणाम।
आदरणीय दीदी , बासंन्ति प्रस्तुति मन मोह गयी |डेफोडिल्स हिंदी में पढ़ना विशेष लगा सभी रचनाएँ अपने आप में ख़ास हैं एक दो नये ब्लॉग से परिचय हुआ | गुलमोहर पर दोनों रचनाएँ बहुत अछि लगी | सची रचनाकारों को नमन | आपको बधाई इस विशेष संकलन के लिए | सादर आभार और प्रणाम |
जवाब देंहटाएंपांच लिंक मंच के लिए ---
जवाब देंहटाएंखिलो बसंत झूमे दिग्दिगंत
सृष्टि के प्रांगण उतरे
सुख के सुहाने सूरज अनंत |
झूमो रे !गली-गली ,उपवन उपवन ;
लुटाओ नवसौरभ अतुलित धन
फैले करुणा- प्रेम उजास .
ना हो आम कोई ना हो खास ;
आह्लादित हो मन आक्रांत !
खिलो बसंत -- झूमे दिग्दिगंत !
सादर , सस्नेह !
बहुत ही सुन्दर💗
हटाएंश्रमसाध्य चर्चा ... अच्छा पढने को मिला ... बस कई जगह टिप्पणी करने कि जगह ही नहीं मिली ...
जवाब देंहटाएंजी आदरणीया
हटाएंकुछ लोग टिप्पणी का बन्द रखने लगे हैं
suprabhat, pehle tho aapka tahe dil se shukran, aur dhanyawad ke yaha aakr bahut hi umada rachanayein padhne ka awsar mila. kisi ek ki tariff nahi kar sakti, sabhi bahut khubsurat hai.
जवाब देंहटाएंबहुत सालों के बाद आपको देखकर बेहद खुशी हुई
हटाएंकैसी हैं
कहाँ हैं
ब्लॉग पर फेसबुक पर नए पोस्ट के संग उपस्थिति बनाये रखें