सादर अभिवादन
आज के सरदार भाई विरम सिंह आज भी नहीं दिखे
लगता है शायद उनकी इच्छा नहीं है ....
यहां के लिए प्रस्तुति बनाने की
चलिए कल नया टाईम -टेबल तैय्यार करती हूँ
चलिए आज का अंक देखिए...
कब साकार होगा नशा मुक्त देवभूमि का सपना....कविता रावत
कुछ भी हो लेकिन अब सम्पूर्ण उत्तराखंड में हो रहे शराबबंदी के आंदोलनकारियों के इरादों से स्पष्ट है कि अब वे किसी भी प्रकार से सरकार के झांसे में नहीं आने वाले हैं। इसके लिए उन्होंने कमर कस ली है कि अब वे तभी मैदान से हटेंगे, जब उत्तराखंड सरकार पूर्ण शराबबंदी की घोषणा करने के लिए मजबूर न हो जाय।
वे दृढ़ संकल्पित हैं कि इस बार वे
‘कोउ नृप होउ हमहि का हानी।
चेरी छोड़ि अब होब कि रानी।“
की तर्ज पर सरकारों के चोलाबदली और जड़ राजनेताओं के झूठे आश्वासनों के दम पर नहीं, अपितु दुर्गा-काली बनकर देवभूमि से दानव रूपी शराब का खात्मा कर नशा मुक्त देवभूमि का सपना करेंगे।
आज के सरदार भाई विरम सिंह आज भी नहीं दिखे
लगता है शायद उनकी इच्छा नहीं है ....
यहां के लिए प्रस्तुति बनाने की
चलिए कल नया टाईम -टेबल तैय्यार करती हूँ
चलिए आज का अंक देखिए...
कब साकार होगा नशा मुक्त देवभूमि का सपना....कविता रावत
कुछ भी हो लेकिन अब सम्पूर्ण उत्तराखंड में हो रहे शराबबंदी के आंदोलनकारियों के इरादों से स्पष्ट है कि अब वे किसी भी प्रकार से सरकार के झांसे में नहीं आने वाले हैं। इसके लिए उन्होंने कमर कस ली है कि अब वे तभी मैदान से हटेंगे, जब उत्तराखंड सरकार पूर्ण शराबबंदी की घोषणा करने के लिए मजबूर न हो जाय।
वे दृढ़ संकल्पित हैं कि इस बार वे
‘कोउ नृप होउ हमहि का हानी।
चेरी छोड़ि अब होब कि रानी।“
की तर्ज पर सरकारों के चोलाबदली और जड़ राजनेताओं के झूठे आश्वासनों के दम पर नहीं, अपितु दुर्गा-काली बनकर देवभूमि से दानव रूपी शराब का खात्मा कर नशा मुक्त देवभूमि का सपना करेंगे।
किस ज़माने, की बात करते हो !
ये जमाना हैं, दिल्लगी के लिए !!
मेरा औरों से,, वास्ता क्या था !
मैं यहाँ हूँ तो, आप ही के लिए !!
ये है हमारी रूदाद..
शनासाई सी ये पच्चीस वर्ष
शरीके-सफर के साथ
शरीके-सफर के साथ
सबात लगाते हुए
असबात कभी अच्छी कभी बुरी की..
ताउम्र बेशर्त शिद्दत से निभाते रहे..
मैं जवान हूँ , मैं किसान हूँ
मारो मारो, मारो मुझको
जब भी हक़ की बात करूँ
तो चौखट से दुत्कारो मुझको
दूर अँधेरे में चमकती एक बत्ती,
पहले एक छोटे-से बिन्दु की तरह,
फिर धीरे-धीरे बढ़ती हुई,
पास, और पास आती हुई.
उधर केदार बाबू के आँखों से आँसू थम ही नहीं रहे थे और ये
वे मन में सोच रहे थे कि "मैं लोगों से आज तक रीमा और
अपने बारे में प्रेमालाप की झूठी बातें फैलता रहा वो अपने
मन में बोल रहे थे कि "धिक्कार है मुझ पर !
वे मन में सोच रहे थे कि "मैं लोगों से आज तक रीमा और
अपने बारे में प्रेमालाप की झूठी बातें फैलता रहा वो अपने
मन में बोल रहे थे कि "धिक्कार है मुझ पर !
रीमा सोच रही थी दो सहेलियों से मिला सुझाव
पहली सहेली "मुँह पर चप्पल मारो"
दूसरी सहेली "घर जाकर राखी बाँध आओ"
बेचैनी से घूमते हवाजनित ये रोग
राजनीति के पेंच में उलझे उलझे लोग
क्या देना क्या पावना जब तन त्यागे प्राण
तड़प तड़प के हो गई याद मीन निष्प्राण
एक चाँद बिना दाग......डॉ. सुशील कुमार जोशी
चाँद का बिना
किसी दाग के
होना
क्या एक
अजूबा सा नहीं
हो जाता है
वैसे भी
अगर
चाँद की बातें
हो रही हों
तो दाग की
बात करना
किसको
पसंद
आता है
इस अंक के लिए चयनित रचनाओं के रचनाकारों को
प्रकाशनोपरान्त सूचना दूँगी
सादर..
यशोदा.....
एक चाँद बिना दाग......डॉ. सुशील कुमार जोशी
चाँद का बिना
किसी दाग के
होना
क्या एक
अजूबा सा नहीं
हो जाता है
वैसे भी
अगर
चाँद की बातें
हो रही हों
तो दाग की
बात करना
किसको
पसंद
आता है
इस अंक के लिए चयनित रचनाओं के रचनाकारों को
प्रकाशनोपरान्त सूचना दूँगी
सादर..
यशोदा.....