निवेदन।


फ़ॉलोअर

गुरुवार, 31 मई 2018

1049...आज विश्व तम्बाकू निषेध दिवस है....

सादर अभिवादन। 
बदलते मौसम में 
आस्थाओं को बदलने का 
दौर भी आता है 
रुख़ करता है उस ओर अवसरवादी 
जिस पाले में अधिक पाता है। 

आज विश्व तम्बाकू निषेध दिवस है। 
सरकारें तम्बाकू उत्पादों से टैक्स कमाती रहेंगीं 
तम्बाकू सेवन करने वालों की जानें जाती रहेंगीं 
नशे की लत उम्र घटाती रहेगी 
स्वजनों को रह-रहकर सताती रहेगी। 

आइये अब आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर चलें जहाँ हलचल से 
रूबरू होते हैं हम ज़माने की - 




मैं इश्क हूँ
मैं अमृता हूँ
मैं साहिर के होठों से लगी
उसके उंगलियों के बीच
 जलता हुआ एहसास हूँ....




एक मुसाफिर अंजान डगर का
धुंधली सी भीगी सी राहें
ना कोई साथी ना ही कारवां ।

"जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे
 तोबे ऐकला चोलो रे"


फिर हमें आवाज़ देकर क्यूं पुकारा ये बता दे ........ राजेश कुमार राय



तुमने रिश्तों की सियासत में हमें उलझा दिया है 
इस तिज़ारत में हुआ कितना ख़सारा ये बता दे

हादसों को रोकने का तुमने वादा भी किया था

हादसा तब क्यों हुआ फिर से दुबारा ये बता दे






मन का कोलाहल
प्रखर हो जाता है
मौन का बसेरा मन
जब पता है
गहरा समुद्र भी
कभी कभी मौन
हो जाता है
एकांकी हो कर भी
चाँद सभी का कहलाता है



मेरी फ़ोटो

लेखन का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है,उतने ही विस्तृत है हमारे विचार,उतनी ही विस्तृत है हमारी भावनायें और इन सबका कारण है-हमारे आसपास फैला,सामाजिक ताने-बाने से बुना ये विस्तृत संसार।'अपने विचारों और भावनाओ के सहयोग से विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों और घटनाओं को गहरायी से...




सवाल करना बेकार है,
हमारा ही आदमी है,
हमारी ही व्यवस्था है,
जो कोई देखे सुने
वो गूंगा, बहरा अँधा है,
मुंह पर चुप रहने की सिलिप लगाओ,
व्यवस्था को कोसने से बाज आओ,
जंहा जाओगे यही हाल मिलेगा
कर्मचारी ग़ायब, शिकायतों का अंबार मिलेगा।


जिन्दगी क्यूँकर सवाल है .....विजयलक्ष्मी 
सदके में तेरे सबकुछ दिया
हुई अब जीस्त भी निहाल है ||

जख्म मेरे क्यूँ रख दू गिरवी
दर्द करता रफू भी कमाल है ||

और अब चलते-चलते आनन्द लीजिये आदरणीय राही जी की छायाचित्रण कला और पक्षी ज्ञान शृंखला का -



कौवा , जिसे भारतीय, ग्रेनेक्ड, सिलोन या कोलंबो क्रो के नाम से भी जाना जाता है, जो एशियाई मूल की कौवा परिवार का एक आम पक्षी है, लेकिन शिपिंग की सहायता से अब दुनिया के कई हिस्सों में पाया जाता है। 

हम-क़दम के इक्कीसवें क़दम
का विषय...

...........यहाँ देखिए...........

आज के लिये बस इतना ही।  
मिलते हैं फिर अगले गुरूवार। 
कल अपनी प्रस्तुति के साथ आ रही हैं आदरणीया श्वेता सिन्हा जी। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

बुधवार, 30 मई 2018

1048..चलों इसी बहाने अब दोपहर भी शाम होगी..

।।मांगल्यम् सुप्रभात।।

पारंपरिक खेलों की जिक्र हुई है
चलों इसी बहाने अब दोपहर भी शाम होगी
कईयों की बचपन की गर्मी की छुट्टियाँ 
 इन खेलों के बिना अधूरी   लगती होगी ।
गिल्ली-डंडा, कंचे ,खो -खो,
पिठ्ठू जैसे खेल हमें अपनी मिट्टी से जोड़े रखते थे और गलियों और छते तो गुलज़ार ही गुलज़ार।

इसी बहाने छूटे चीजों को फिर पकड़ ले..
अब बढते हैं शब्दों के हुनरमंदों की ओर..✍


♦♦

पहली प्रस्तुत में लिंक की गई है ब्लॉग 
अंदाज़े ग़ाफिल से ..



दिलों में ठिकाना बनाकर तो देखो

नहीं फिर सताएगी तन्हाई-ए-शब
किसी के भी ख़्वाबों में जाकर तो देखो

♦♦

मुलाकात हुई कुछ अपने जैसे
कलम से सपने उकेरने वाले
लेखकों से
उन्हें  लाइब्रेरी के
हर कोने में देखा मैंने
जो खुशनसीब थे
वो पुस्तक प्रेमियों के हाथ में
सजे मिले
कुछ ऐसे भी थे..

♦♦

सोनिआ हंस भी सकतीं हैं 
मुग्धा भाव लिए इससे ये तो पता चलता है वह मनुष्य योनि में ही
सोनिआ हंस भी  सकतीं हैं मुग्धा भाव लिए इससे ये तो पता चलता है वह मनुष्य योनि में ही हैं। कांग्रेस हाईकमान इतना बढ़िया अभिनय और विरोधी ..

♦♦

फिर भी नरेंद्र मोदी ने अपनी 
ताक़त और क्षमता भर देश की दिशा तो 
बदली ही है
आज भाजपा के नरेंद्र मोदी सरकार की 
चौथी सालगिरह है। सालगिरह बधाई देने का दिन होता है। मैं कोई राजनीतिक व्यक्ति
 नहीं हूं , न किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित , न किसी गिरोह का सदस्य कि आरोप 
प्रत्यारोप और पूर्वाग्रह की बात करूं। 

♦♦

मैं समझ सकता हूँ
तुम्हारी विवशता को
लेकिन बस कुछ हद तक
किसी का दर्द, किसी की विवशता
कोई दूसरा कहाँ आंक सकता है
लोग लगा सकते हैं बस अनुमान

♦♦
हम-क़दम के इक्कीसवें क़दम
का विषय...
...........यहाँ देखिए...........

♦♦


।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह..✍

मंगलवार, 29 मई 2018

1047.....कथा कहे बहुरूपिया, ढोंगी पढ़े लिलार.

कोमा चला गया है
हिमाचल का नेट
प्रयास जारी है
कतिपय दवाएँ चाहिए सो हम लोग
इकट्ठा कर रहे हैं....
कुछ इन्जेक्शन सखी श्वेता
ला रही है
कुछ कोशिश हम भी कर रहे हैं...

देखिए पहली खेप आ गई है.....

बावरी बयार बाँचे
आगी लागी बगिया.
जोहे जोहे  बाट जे
बिलम गयी अँखिया .
सुरज धनक गये
झुलस गयी भुँइया.
दुबकी दुपहरी
बरगद के छैंया 

होठ दांतों में दबाना तो नहीं
यूँ ही कुछ कहना सुनाना तो नहीं

आप जो मसरूफ दिखते हो मुझे
गम छुपाने का बहाना तो नहीं

एक टक देखा हँसे फिर चल दिए
सच कहो, ये दिल लगाना तो नहीं

बनते हैं महल 
सुन्दर सपनों के 
चुनकर 
उम्मीदों के 
नाज़ुक तिनके 
लाता है वक़्त 
बेरहम तूफ़ान 
जाते हैं बिखर 
तिनके-तिनके। 

ये खटपट वाले रिश्ते भी 
जब मौन होते हैं 
तो मन को छटपटाहट होती है 
जाने क्या  हुआ 
इनका लड़ना-झगड़ना ही 
साबित करता है 
जिंदगी में बाकी है
अभी बहुत कुछ करना


इक धुंधलाती सी परछाईं,
मद्धम सी गूंजती कोई मधुर आवाज,
छुन-छुन पायलों की धुन,
चूड़ियों की चनकती खनखनाहट,
करीब से छूकर गुजरती कोई पवन,
मदहोश करती वही खुश्बू...
है ये कोई वहम या फिर कोई जादू!
या है बस इक ख्वाब ये?

बात - राहुल मिश्रा

चुप हूँ मैं कि दर्द देना नहीं और तुम्हे, 
सन्नाटों नें कैसे जकड़ा मुझको पूछो ना। 

जुगनू सितारे सब अपने घरों में सोए, 
यूं अकेली रात में किसीको खोजो ना।

ये कैसा संगीत रहा है....ललित कुमार

पता नहीं खुशी का अंकुर
कब झाँकेगा बाहर इससे
विश्वास का माली बरसों से
मन-भूमि को सींच रहा है

उठे दर्द की तरंगो-सा
गिरे ज्यों आँसू की हो बूँद
मेरे जीवन-वाद्य पर बजता
ये कैसा संगीत रहा है!

-0-0-

हम-क़दम 
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम इक्कीसवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय है
दो पंक्तियाँ है
यानी एक दोहा है

अँधा बेचे आईना, विधवा करे श्रृंगार
कथा कहे बहुरूपिया, ढोंगी पढ़े लिलार.

और इसका कोई उदाहरण मौजूद नही है
रेखांकित शब्द ही विषय है
उपरोक्त विषयों पर आप सबको अपने ढंग से 
पूरी कविता लिखने की आज़ादी है

आप अपनी रचना शनिवार 02 जून 2018  
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक 04 जून 2018  को प्रकाशित की जाएगी । 
रचनाएँ  पाँच लिंकों का आनन्द ब्लॉग के 

सम्पर्क प्रारूप द्वारा प्रेषित करें

आज्ञा दें
यशोदा









सोमवार, 28 मई 2018

1046...."ज्येष्ठ मास की तपिश" हम-क़दम का बीसवां क़दम ...

                                     सादर अभिवादन 
       ग्रीष्म ऋतु की तपिश अपने चरम पर होती है ज्येष्ठ मास में। 
मौसम की तपन सहता आया इंसान अब उन्मादी,कलुषित,आपराधिक, 
स्वार्थी विचारों की असहनीय गरम हवा में कुछ इस तरह झुलस रहा है
कि आसपास उसे कोई राहतभरा नज़ारा नज़र नहीं आता। ज्येष्ठ मास 
में लू के झुलसाते थपेड़े झेलने में इंसान ने कभी हार नहीं मानी। 

       ऐसे मौसम में दिन में यात्रा  करते समय छिला हुआ प्याज़ क़मीज़  की 
जेब में रखकर चलते थे। कुछ लोग इसे अन्धविश्वास मानते हैं  लेकिन 
यह बुज़ुर्गों का दिया हुआ नुस्ख़ा कारगर है। प्याज़ में निहित पानी 
वाष्पोत्सर्जन के ज़रिये ऊपर की ओर उठता है और नाक के आसपास की 
अपेक्षाकृत गर्म हवा को ठंडा करता है और साँस में ठंडक भरी हवा फेफड़ों 
में जाती है जिससे लू लगने का ख़तरा टालता है।  

इसी तरह गर्मी के कारण शरीर का तापमान नियंत्रित करने हेतु तेज़ रफ़्तार से
पसीना निकलता है जिसके साथ महत्वपूर्ण इलेक्ट्रोलाइट (सोडियम ,पोटेशियम,
क्लोराइड आदि ) शरीर से बाहर निकल जाते हैं।  पसीना निकलने के बाद शरीर 
पर जो नमक जैसा खारा पदार्थ जमा होता है, दरअसल ये इलेक्ट्रोलाइट  होते हैं।  
इलेक्ट्रोलाइट के शरीर से बाहर निकलने से Dehydration (पानी  की कमी ) की 
अवस्था आ जाती है।  
      
          राहत की बात है कि ककड़ी में ये सारे इलेक्ट्रोलाइट पाए 
जाते हैं।  ककड़ी खाकर तुरंत पानी नहीं पीना चाहिए अन्यथा इलेक्ट्रोलाइट 
बेअसर हो जायेंगे। क़ुदरत ने अगर शरीर से पानी पसीना बनकर बाहर जाने के 
लिए गर्मी का मौसम दिया है तो उसकी भरपाई के लिए रसभरे फल ककड़ी,खीरा,
तरबूज़ ,ख़रबूज़ा, आम, नींबू आदि भी  दिए हैं। हमें इन फलों का इस्तेमाल 
सावधानी पूर्वक करना चाहिए अर्थात  इस्तेमाल के वक़्त ये ठंडे हों और साफ़ हों।
बाज़ार से लाये गए फल-सब्ज़ियाँ नमक के पानी से धोने से उनमें चिपके हानिकारक
 जीवाणु निष्प्रभावी हो जाते हैं। 

         आज के अंक का शीर्षक "ज्येष्ठ मास की तपिश" घोषित किया गया था जिस 
 आपकी ओर से सुन्दर व प्रभावशाली  रचनाओं के रूप में  उत्साहवर्धक असर 
परिलक्षित हुआ है। एक ही बिषय पर पाठकों के अलग-अलग दृष्टिकोण पढ़ने और
 समझने को मिलें तो इससे रचनात्मकता के नये आयाम विकसित होते हैं। 
हम आशावान हैं कि आप इस उत्साह को हम-क़दम के रूप में बरक़रार रखेंगे। 

       सर्वप्रथम उस गीत का ज़िक्र जो आपको उदाहरणार्थ प्रस्तुत किया था। आदरणीय 
जानकी प्रसाद "विवश" जी ग्वालियर के वरिष्ठ एवं प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं।
 फेसबुक पर सवा लाख से अधिक पाठकों ने उनकी रचनाओं को like किया है। 
मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनका सानिध्य एवं मार्गदर्शन मिला।  


Image may contain: flower, sky, nature and outdoor

महासमर का दृश्य ला रही है,
शैतान लपट ।
धूप, चील जैसी छाया पर ,
प्रति पल रही झपट ।

कर वसंत को याद बगीचा,
...देखे महाविनाश।

इस बिषय पर हमारे पिछले अंक 1042 में आयी दो टिप्पणियों का ज़िक्र भी लाज़मी है -
आदरणीया रेणु बाला जी -
आदरणीय रवीन्द्र जी -- आज के अंक की छोटी सी भूमिका में तपते ,आग उगलते जेठ मास में
 इसकी तपन के साथ खूबियाँ भी साथ साथ याद आ गई | यूँ तो आजकल तरबूज , खरबूजे ,
आम इत्यादि फल पूरा साल मिलते हैं पर इन रसीले मधुर फलों के सेवन का आनंद जो इस
भीषण गर्मी के मौसम में आता है वो किसी और मौसम में नहीं आता | सड़कों और तपते
रास्तों के किनारे इन फलों का ढेर लगाये ग्राहकों की बाट जोहती आशावान आँखें किसी और
 मौसम में कहाँ नजर आती हैं ? हम लोग इस गर्मी से जहाँ घरों में दुबक जाते हैं ये लोग
तपती झुलसाती लू में भी रास्तों पर डेरा जमाये रहते हैं | नदियों के किनारे इस फलों के
उपजाने वाले किसान ज्यादातर छोटे किसान होते हैं जिनकी साल भर आजीविका इन
फलों पर निर्भर होती है | वे महीनों पहले इन फलों को उपजाने में उत्साह से जुट जाते हैं |
इन रसीले फलों के पीछे उन की अनथक मेहनत को ना भुलाया जाये , जिसकी बदौलत
हमे बहुत ही कम दामों पर इतने रसीले फल उपलब्ध होते हैं | आज के सभी अंक देखे
बहुत ही शानदार हैं सभी | सभी पर लिखा केवल रश्मि शर्मा जी के सुंदर चित्र श्रृंखला से
सजे लेख पर लिखना संभव ना हो पाया , हालाँकि मैंने बहुत कोशिश की | उन्हें इसी
मंच से मेरी हार्दिक बधाई सुंदर यात्रा संस्मरण के लिए | मेरे लेख के साथ मेरे नए
ब्लॉग को भी पञ्च लिंकों में पहली बार स्थान मिला जिससे बहुत ख़ुशी हुई |
आपका सादर आभार और हार्दिक बधाई सुंदर लिंक संयोजन के लिए |सभी
सहयोगी रचनकारों को सस्नेह शुभकामनाये | सादर ------

आदरणीया मीना शर्मा जी -
बहुत बढ़िया सामयिक,मौसमी प्रस्तुति आदरणीय रवींद्रजी की। सच में जानलेवा है जेठ
की तपिश....सुबह दस से शाम चार बजे तक घर से बाहर ना निकलें, गर्मी और लू से कैसे
बचें, आदि चेतावनियाँ आ रही हैं किंतु कितने लोग ऐसे हैं जो इन पर अमल कर पाते हैं ?
कहीं एक कहानी पढ़ी थी - सास ने तीन बहुओं से पूछा,'कौनसा मौसम सबसे अच्छा है ?'
 पहली बहू ने कहा - जाड़े का।
दूजी ने कहा - बारिश का ।
तीसरी गरीब परिवार की बेटी थी। उसने जवाब दिया -
'हुए' का मौसम सबसे अच्छा है यानि जब हमारे पास सुख-सुविधाएँ हों, वही मौसम
सबसे अच्छा है। गरीबों के लिए तो हर मौसम एक नए संघर्ष का मौसम है।
आज की सुंदर रचनाओं के मध्य मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार !

आइये अब "ज्येष्ठ मास की तपिश" शीर्षक पर आपकी ओर से भेजी गयी रचनाओं का रसास्वादन करें-    

इस बार एक कहानी भी....जो कि मार्मिक भी है और सुखांत भी


My photo

"चुप, वो बैठी हैं।" कहकर मैं आँखें मूंदकर सोने का उपक्रम करती। तभी बाहर से बातों की
आवाजें पहले की अपेक्षा कुछ तेज हो गईं, बाबूजी की आवाज़ आ रही थी। शायद कोई मेहमान
 आया है, अम्मा बाबूजी और दादी की मिली-जुली आवाजें सुनकर मैंने अंदाजा लगाया। फिर
 क्या था मैं भूल गई अम्मा की डाँट और उठकर बरामदे में आ गई तो देखा एक महिला.. नहीं
लड़की सिर झुकाए बैठी है, उसके गाल आँसुओं और पसीने से भीगे हुए हैं और हमारे घर की
सभी स्त्रियाँ उसे घेरकर बैठी हैं, मंझली काकी पंखा झल रही थीं। बाबूजी बोले-"हमने तो जब
 ये छोटी थी तब देखा था इसीलिए पहचाने नहीं,  हमें लगा इतनी दुपहरी में कौन आ सकता
 है भला, वो भी ऐसी हालत में!"





जेठ दुपहरी कागा बोले
सुन सूरज ए आग के गोले                                              
जलता ये तन तप रहा बदन
क्यू फेंकता यू अंगार के ओले
काहे इतना रिसीयाए हो तुम
किसपर इतना गुस्साए हो तुम


                                   

ज़मीं तो ज़मीं खुद तपिश से आसमां भी झुलसेगा

जा ओ जेठ मास समंदर में एक दो डुबकी लगा
जिस्म तेरा काला हुवा खुद तू भी अब झुलसेगा



                                        
रात में छत पर 
बिछती खाट
बादलों की आस
बढती प्यास
सूखते होठ
जलता तन
सूरज बेरहम
हाय रे  जेष्ठ की तपन।।



   

ज्येष्ठ की तपिश और प्यासी चिड़िया....सुधा देवराणी



हम सूरज दादा का गुस्सा सहते 
झुलस रहे हैं, हमें बचालो !
छत पर थोड़ा पानी तो डालो !!
जेठ जो आया तपिश बढ गयी
बिन पानी प्यासी हम रह गयी....




उफ यह जेठ महीना 
तपता सूरज दरकती धरा
उफ ! यह मौसम गर्मी का 
औरबिजली की आँख मिचौली
बेहाल कर रही है 
मति भी कुंद हो रही है 
यदि कोई काम करना भी चाहे 





बावरे पंछी 
जानती हूँ 
तेरी प्यास अनंत है
और नियति निर्मम अत्यंत  है !
ज्येष्ठ का महीना है
और सूर्य की तपिश
अपने चरम पर है !  
लेकिन नन्हे नादान पंछी





नारी जीवन तपन दुपहरी 
तप्त अलाव सी जलती जाय 
तपन घनेरी झुलसे तन मन 
अगन जलन के भाव जगाय! 
निपट अकेली रेत पजरती 
पल कू  छाँव  ना ,  हलक सुखाय 



भरी दोपहरी भरा हौसला 
तपन बाहर भीतर सब एक 
जठराग्नी मन झुलसाती 
सूरज की आग सेंकती देह ! 
छोटी उम्र हौसला भारी 
दोपहर अलाव सी जला करें 





जेठ की इस 
ताप्ती दुपहरी में 
हाल -बेहाल
पसीने से लथपथ 
जब काम खत्म कर 
वो निकली बाहर 
घर जाने को 
बड़ी गरमी थी 
प्यास से गला 
सूखा.......
घर पहुँचने की जल्दी थी 



My photo

चहुँ ओर व्याप्त बस सिर्फ जलन 
कुछ और नही सखी,
यह सूरज का प्रकोप है,
और मिल गया पूरा वातावरण,
फैल गया है कण-कण तृण-तृण
ये जेठ की तपन 
ये जेठ की तपन....
************************
दो रचनाएँ रात में और आई है......
जेठ की तपिश...पंकज प्रियम

झुलसी है धरती सारी
झुलसा सारा आसमां
जेठ की तपन में देख,
झुलसा ये सारा जहां।

आग के शोले बरस रहे
बूंद बूँद लोग तरस रहे
धरती कैसी धधक रही 
शोलों सा ये दहक रही।

सावन बोला जेठ से...मीना शर्मा
My photo
सावन बोला जेठ से
तुम क्यों तपते हो इतना ?
दया नहीं आती तुमको,
धरती का देख झुलसना ?

त्राहि त्राहि करते हैं प्राणी
वृक्षों को झुलसाए हो,
शीतल पवन झकोरों को

तुम कैद कहाँ कर आए हो ?




नए विषय के लिए कल का अँक जरूर देखें
अब आज्ञा दें।
फिर मिलेंगे अगले अंक में। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...