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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

3014 ..अति सर्वत्र वर्जयेत" इसीके आगे आज हम असहाय, निरुपाय ईश्वर को पुकार रहे । पुकारो, वह आएगा

सादर अभिवादन
अनुरोध सखी का
आप शुक्रवार को आएँ
आज्ञानुसार हम हैं आज....

जब मन का सूरज घटता हो
और डर का साया बढ़ता हो
अपनों को गले लगाए रखना
इच्छाशक्ति  जगाए  रखना

जब समय उचित आ जाता है
दानव  का  वध  हो  जाता  है
बस मानव धर्म बचाए रखना
इच्छाशक्ति  जगाए  रखना


बहुत मंजरी झरी
आम के पेड़ों से इस बार,
कोई आंधी-तूफ़ान नहीं था,
फिर भी,न जाने कैसे.


एक और वाकया एक दिन अचानक मेरी तबीयत अधिक खराब हो गई, मां ने नब्ज देखी उसे लगा जैसे कुछ ठीक नहीं है उन्होंने आस पड़ोस में आवाज लगाई और देखा कि कुछ ही देर में घर में काफी लोग आ गए, उसके बाद पिता के नौकरी से लौटने तक उन पड़ोसियों ने ही सब कुछ संभाला और मां को ढांढस बंधाते रहे...


अति सर्वत्र वर्जयेत"
 इसीके आगे आज हम असहाय,
निरुपाय ईश्वर को पुकार रहे ।
पुकारो,
वह आएगा
लेकिन मन के अंदर झांक के पुकारो
लालसाओं से बाहर आकर पुकारो
पुकारो,पुकारो
ईश्वर ने सज़ा दी है
कठोर नहीं हुआ है"
इस विश्वास के साथ अपने संस्कारों को जगाओ
फिर देखो - वह प्रकाश पुंज क्या करता है ।


मरकर दर्द में
फिर से
ज़िंदा होती हैं,
बदलकर पैरहन
मचलती
बेशर्म उम्मीदें
.....
बस
सादर

 

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

3013...कहा होगा किसी ने ऐसा भी दौर आएगा...

सादर अभिवादन। 

गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है। 

कहा होगा किसी ने 

ऐसा भी दौर आएगा,

लाशें कंधों को तरसेंगीं

मदद को कोई न आ पाएगा...!

#रवीन्द्र_सिंह_यादव 

 

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ- 

सब धन बाइस पसेरी...विश्वमोहन 


 दवाई, इंजेक्शन, ऑक्सिजन,

सबके जमाखोर!

ताल ठोकते रहे तुमसे,

चकले में हैवानियत के।

तनिक भी तूने, तब भी नहीं की

मौत की कालाबाज़ारी!

डटे रहे राह पर  बराबरी के,

सब धन बाइस पसेरी


तुम्हारे होने से मन घर बन जाया करता है...संदीप कुमार शर्मा 


मन के 

एक कोने में

कुछ यादें रखी 

थीं

सहेजकर

उन पर भी

धूल की मोटी परत थी।


नयन-नयन... पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 


इच्छाओं के घेरों में, निस्पृह मन,

ज्यूँ, निस्संग, कोई तुरंग, भागे यूँ सरपट,

सूने से, उन सपनों संग,

विवश, बंद-बंद अपने आंगन,

जागी सी, इच्छाओं संग,

कैद हुए, ये क्षण!


काश! कुछ कर पाते...फ़िज़ा 


मौत से लड़ते हुए तो किसी अपने को 

कांधा दिए आँखों में आंसू ,लाचारी 

धैर्य देते-देते अब खुद धैर्य को थामे 

के जाओ नहीं छोड़कर साथ हमारा 

तुम नहीं तो कैसे देंगे हम हौसला 

एक-एक करके सभी छोड़े जा रहे 


आपदा या अवसर...प्रीति मिश्रा 

पालन किया सभी नियमों का 

फिर भी लटक रही तलवार 

चारों तरफ कोरोना ने 

मचाई है हाहाकर 

ताली बजाई, थाली बजाई 

बेमौसम दिवाली मनाई 

लेकिन खतरा टला नहीं 

आसानी से जाने वाली 

ये छोटी सी बला नहीं 

सब कुछ कर डाला हमने 

फिर कोरोना मरा नहीं 

*****

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगले गुरुवार करोना से लड़ते-लड़ते...

रवीन्द्र सिंह यादव  


बुधवार, 28 अप्रैल 2021

3012 ....चिराग दिल में उम्मीद का तेल भर देती

सादर नमस्कार
पम्मी बहन का संदेश आया
प्रस्तुति नहीं बना पाऊँगी
सही व सटीक संदेश
बहन रिक्वहरी पीरियड में है

अविरत गतिमय ज्योतिपुंज हूँ
निर्बाधित संगीत अनोखा,
सहज प्रेम की निर्मल धारा
पावन परिमल पुष्प सरीखा !

चट्टानों सा अडिग धैर्य हूँ
कल-कल मर्मर ध्वनि अति कोमल,
मुक्त हास्य नव शिशु अधरों का
श्रद्धा परम अटूट निराली !


गालियां देता मन
दहशत भरा माहौल
चुप्पियां दरवाजा
बंद कर रहीं
खिड़कियाँ रहीं खोल

थर्मामीटर नाप रहा
शहर का बुखार
सिसकियां लगा रहीं
जिंदा रहने की गुहार
आंकड़ों के खेल में
आदमी के जिस्म का
क्या मोल


प्रकृति के पोर-पोर को,
दूह-दूह जो खायी है।
प्रतिक्रिया प्रतिशोध जनित,
यह कुदरत की कारवाई है।

काली करतूतों का जहर,
वायुमंडल में छितराया है।
ओजोन छिद्र के गह-गह में,
जीवाणु-गुच्छ भर आया है।


चिराग दिल में उम्मीद का तेल भर देती
ताकि रौशन रहे दर तेरी यादों का
इस आस में कि कभी इस गली
भूले से आ जाए वक्त चलकर
दोहराने हर बात शबनमी शामों की
और वापस न लौट जाए कहीं
दर पे अँधेरा देखकर।
......
किसी न किसी को तो हिम्मत करना ही होगा
वरना सारे अंकों में स्थगित अंक का पैबंद लगता चला जाएगा
पाँच से चार में है आज
कल शायद फिर पाँच हो जाए
सादर