अपनी निजी परेशानियों को दरकिनार कर..
हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
और सभी में गौरव भाव होगा
वह संस्कृति की तरह आएगी
उसका कोई विरोधी न होगा
कोशिश सिर्फ यह होगी कि
किस तरह वह अधिक सभ्य
और अधिक ऐतिहासिक हो
नैतिकता की कमी सभी वर्गो में है अब आम हुई!
भूल न जाना गाथा आपत्कालिक अत्याचारों की!!
आज देश को आवश्यकता चारित्रिक आधारों की!
जमकर करें वंचना जो भी वही कुशल व्यापारी हैं
पंडित और पुजारी छलते सन्यासी व्यभिचारी हैं!
मानप्रतिष्ठा जानमाल रक्षा का नहीं भरोसा है।
शहजादों की भांति मानते अपने को अधिकारी हैं!!
बिना आखिरी सलाम और
अलविदा कहे बगैर भी।
कोई भी कथाकार
इन कहानियों को नाम नहीं दे सकता।
प्रेम-विज्ञान की किताबो में
कहीं भी इनका ज़िक्र नहीं है।
इससे उनके अफसर लोग खुश थे। साल में कुछ इनाम देते
और वेतन वृद्धि का जब कभी अवसर आता,
उनका विशेष ध्यान रखते। परन्तु इस विभाग की वेतन-वृद्धि ऊसर की खेती है ।
बड़े भाग्य से हाथ लगती है। बस्ती के लोग उनसे संतुष्ट थे, लड़कों की संख्या बढ़ गई थी और
पाठशाला के लड़के तो उन पर जान देते थे। कोई उनके घर आकर पानी भर देता,
कोई उनकी बकरी के लिए पत्ती तोड़ लाता।
मेरे दिल मे जो सुलगता हैं घुटन का धुंआ ।
तूने रखकर दिल पर हाथ उसे शोला बना दिया ।।
क्या चलता हैं मेरे दिलों दिमाग में ये मैं ही समझता हूँ। कितनी उलझने समेटे फिरता हूँ ये मैं ही जानता हूँ।
तेरे तीखे सवालों का जबाब कहीं मिलता नहीं मुझे।
बुझते आग को छूकर फिर तूने अंगारा बना दिया ।।
हरदम की तरह बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर नमन
क्रूरता का कितना वीभत्स रूप हो सकता है । बोध कहानी फिर से पढ़ने में आनंद आया । सार्थक प्रस्तुति । आभार ।।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं उत्तम
आपकी कर्मठता को नमन है दी।
जवाब देंहटाएंअपनी व्यक्तिगत पीड़ा के बावजूद आपने प्रस्तुति रखी सचमुच सराहनीय है।
भूमिका की संदेशात्मक पंक्तियां प्रेरक हैं।
सभी रचनाएँ.बहुत अच्छी हैं।
प्रणाम दी
सादर।
सुंदर सराहनीय अंक।
जवाब देंहटाएं