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शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024

4287...सबकुछ एक है...

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।

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बहुत पास से गुज़रा तूफान
धरती पर लोटती
बरगद,पीपल की शाख,
सड़क के बीचोबीच पसरा नीम
असमय काल-कलवित  
धूल-धूसरित,गुलमोहर की
डालियाँ, पत्तियाँ, कलियाँ 
 पक्षियों के घरौंदे,
बस्ती के कोने में जतन से बाँधी गयी
नीली प्लास्टिक की छत,
कच्ची माटी की भहराती दीवार
अनगिनत सपनें
बारिश में बहकर नष्ट होते देखती रही
उनके दुःख में शामिल हो 
शोक मनाती रही रातभर उनींदी
अनमनी भोर की आहट पर
पेड़ की बची शाखों पर
 घोंसले को दुबारा बुनने के उत्साह से
 किलकती तिनका बटोरती
 चिड़ियों ने खिलखिलाकर कहा-
एक क्षण से दूसरे क्षण की यात्रा में
 समय का शोकगीत गाने से बेहतर है
 तुम भी चिड़िया बनकर
उजले तिनके चुनकर 
 चोंच मे भरो और हमारे संग-संग
 जीवन की उम्मीद का
गीत गुनगुनाओ।

#श्वेता सिन्हा
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आज की रचनाएँ-

फूल और काँटा


रसिक कविवर 
गाते गुणगान फूल का 
मन भर कर
काँटा तो चुभन की 
पीड़ा देता चुभकर 
जिस फूल की रक्षा में 
काँटा झेलता रहा आलोचना जीभर 




फिर भी गर्व की झाड़ियों में अटकता.....
अहम के मैले वस्त्रों  में
सत्य असत्य के झूले में झूलता....
जीवन की अनमोल घड़ियां गवांता......
जीवन की उलझनों में उलझा
सुलझाने की कोशिश में 
पाप पुण्य की परिधि की...
जंजीरों में जकड़ा
निरंतर प्रयत्नशील
अंत समय पछताता हाथ मलता.......



 है याद? हमको क्या मिला?

गर याद है तो क्या गिला !

पग धरने को धरती मिली 

उड़ने को आसमां मिला !


साँसे मिलीं, इक मन मिला 

 मन में बसा प्रियतम मिला, 

 यह याद है ? क्या भेंट दी 

गर याद है तो क्या किया ? 




ना समझा इश्क ने कभी हमें
ना हम समझ सके कभी इश्क को।
इस तरफ़ लिखते रहे हम खामोशियां
उस तरफ वो चुप्पियां सुनते रहे।।


बाल प्रतिभाएँ


सबकुछ एक है...
घोड़ा गया जैल के अंदर 
साँप गया पेड़ के अंदर 
पेन्सिल ग बक्स के अंदर 
सब कोई आ गए दुनिया के अंदर।

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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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3 टिप्‍पणियां:

  1. सब कुछ मिट जाए फिर भी आशा का दीपक भीतर जलता रहता है, यही तो चेतना की अग्नि है जो अमर है, सुंदर भूमिका और पठनीय रचनाओं का चयन, आभार!

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