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गुरुवार, 17 अक्टूबर 2024

4279 ..अब तो वह किसी काम न आयेगा।

 सादर अभिवादन

आज किसी कारण से भाई जी नहीं हैं
शरद पूर्णिमा की शुभकामनाएं

आज की शुरुआत



दुष्टता का कर संहार,
पीहर में करने विश्राम,
अर्थात मनन.. ध्यान ..
जगत जननी, जगद्धात्री माँ
पग फेरे को आईं थी घर
रुप धर कन्या का ।





शिक्षा,  शिक्षित,  और शैक्षणिक संस्थान
ये सब आपस में ऐसे जुड़े है
जैसे एक माँ से बच्चे के हृदय के तार
जो दिखाई कभी नहीं देता
पर बच्चों के चारो ओर कवच बनकर रहता है




शरद ,रास,कोजागिरी,होंगे नाम अनेक।
जीवन पावन हो सफल,लक्ष्य सभी में एक।।

रास देखकर  कृष्ण का,ले विधु जब आनंद।
आत्मसात कर दृश्य को,कवि लिखते नित छंद।।





वह चल दिया ,
जब दुनिया से,
कुछ तो रोये,
लहू के आँसू दिल से बहे
खारे आँख से।
एक हारा हुआ इंसान था वो




छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से तकरीबन पौने चार सौ कि.मी और मुख्यालय अंबिकापुर से लगभग 55 कि.मी. की दूरी पर विंध्य पर्वतश्रेणी में समुद्र तट से 3781' की ऊंचाई पर स्थित है मैनपाट नाम का कस्बा। जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता तथा मौसम की वजह से छत्तीसगढ़ का शिमला कहलाता है। इसी से करीब 8-9 कि.मी. की दूरी पर बसे हुए एक छोटे से गांव बिसरपानी के पास ही है वह जलधारा, जो उल्टा पानी के नाम से प्रसिद्ध है।


आज बस
वंदन

5 टिप्‍पणियां:

  1. आज के अंक में शरद पूर्णिमा की शीतल चाँदनी छाई है , पर उदासी की एक लकीर भी है। मन कहता है, काश शीर्ष पंक्ति इतनी उदास ना होती.. मन का क्या है ! शिक्षा को बोझ समझ ले या सुरक्षा कवच बना ले । विपरीत दिशा में बहते पानी को प्रकृति की मृगतृष्णा कह दे या प्रकृति का विज्ञान मान के आनंद ले ! अल्पना के लिए जगह बनाने वास्ते भी आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया सखी । नमस्ते।

    जवाब देंहटाएं
  2. सम्मिलित कर मान देने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. अति व्यस्तता के चलते प्रस्तुति शेड्यूल करना भूल गया, आदरणीया यशोदा बहन जी ने तुरत-फ़ुरत प्रस्तुति तैयार कर आपके समक्ष प्रस्तुत कर दी है। सादर आभार।

    अब मैं शनिवारीय प्रस्तुति लेकर आऊँगा।

    शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं

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