सादर अभिवादन
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गुरुवार, 17 अक्तूबर 2024
4279 ..अब तो वह किसी काम न आयेगा।
5 टिप्पणियां:
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आज के अंक में शरद पूर्णिमा की शीतल चाँदनी छाई है , पर उदासी की एक लकीर भी है। मन कहता है, काश शीर्ष पंक्ति इतनी उदास ना होती.. मन का क्या है ! शिक्षा को बोझ समझ ले या सुरक्षा कवच बना ले । विपरीत दिशा में बहते पानी को प्रकृति की मृगतृष्णा कह दे या प्रकृति का विज्ञान मान के आनंद ले ! अल्पना के लिए जगह बनाने वास्ते भी आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया सखी । नमस्ते।
जवाब देंहटाएंसम्मिलित कर मान देने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअति व्यस्तता के चलते प्रस्तुति शेड्यूल करना भूल गया, आदरणीया यशोदा बहन जी ने तुरत-फ़ुरत प्रस्तुति तैयार कर आपके समक्ष प्रस्तुत कर दी है। सादर आभार।
जवाब देंहटाएंअब मैं शनिवारीय प्रस्तुति लेकर आऊँगा।
शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आभार
हटाएंसादर वंदन