शीर्षक पंक्ति:
आदरणीया सरिता सैल जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
फ़हमी बदायूंनी: आज पैबंद की ज़रूरत है, ये सज़ा है रफ़ू न करने की...
सुनो लोगों को ये शक हो गया है
कि हम जीने की साज़िश कर रहे हैं
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नवकिरण पत्रिका
में प्रकाशित तीन गीत
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खिलखिलाते से पौधे को यूँ मुरझाया सा
देखना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था कि तभी हमने देखा कि एक पत्ती के किनारे से एक
बूंद टपक रही है, ध्यान से देखा तो लगभग हरेक पत्ती के सिरे
पर पानी की एक बूंद थी। मेरी खुशी का पारावार न रहा, मैंने बोला कि अब पत्ते
एकदम स्फुर्ती से पहले जैसे हो जायेंगे क्योकि जो पानी अधिक था, पौधा स्वयं पत्तियों के
माध्यम से निकाल देगा और आश्चर्यजनक रुप से मात्र तीन दिनों में ही मुरझाये लटके
पत्ते फिर से सीधे और जीवंत हो गये।
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अब नहीं कोई उनकी सुनने वाला
फिर भी जब तब सुनाने से
बाज नहीं आती
भले ही किसी के कान में
जूं रेंगे या न रेंगें
बस एक बार शुरू क्या हुई
कि
सुनाती चली जाती है
सुनाती चली जाती है
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
व्वाहहहहह
जवाब देंहटाएंशानदार
आभार
सादर
विविध रचनाओं से परिपूर्ण अंक। मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार सर।
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