बहुत पास से गुज़रा तूफान
धरती पर लोटती
बरगद,पीपल की शाख,
सड़क के बीचोबीच पसरा नीम
असमय काल-कलवित
धूल-धूसरित,गुलमोहर की
डालियाँ, पत्तियाँ, कलियाँ
पक्षियों के घरौंदे,
बस्ती के कोने में जतन से बाँधी गयी
नीली प्लास्टिक की छत,
कच्ची माटी की भहराती दीवार
अनगिनत सपनें
बारिश में बहकर नष्ट होते देखती रही
उनके दुःख में शामिल हो
शोक मनाती रही रातभर उनींदी
अनमनी भोर की आहट पर
पेड़ की बची शाखों पर
घोंसले को दुबारा बुनने के उत्साह से
किलकती तिनका बटोरती
चिड़ियों ने खिलखिलाकर कहा-
एक क्षण से दूसरे क्षण की यात्रा में
समय का शोकगीत गाने से बेहतर है
तुम भी चिड़िया बनकर
उजले तिनके चुनकर
चोंच मे भरो और हमारे संग-संग
जीवन की उम्मीद का
गीत गुनगुनाओ।
#श्वेता सिन्हा
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आज की रचनाएँ-
फूल और काँटा
रसिक कविवर
गाते गुणगान फूल का
मन भर कर
काँटा तो चुभन की
पीड़ा देता चुभकर
जिस फूल की रक्षा में
काँटा झेलता रहा आलोचना जीभर
सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंआभार
वंदन
सब कुछ मिट जाए फिर भी आशा का दीपक भीतर जलता रहता है, यही तो चेतना की अग्नि है जो अमर है, सुंदर भूमिका और पठनीय रचनाओं का चयन, आभार!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओ का संकलन 🙏
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