शीर्षक पंक्ति: आदरणीया उर्मिला सिंह जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।
दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ।
अंधकार को अतिशय आलोचा गया,
तब जाकर किसी ने तो दीप जलाया,
धमाके का शोर शामिल हुआ दीवाली में,
हर दीवाली पर उसे और बढ़ाया ही गया।
-रवीन्द्र
आइए पढ़ते हैं आज की पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
तमस सत्य पर आवरित न हो
प्रीत की बाती विश्वास का तेल हो
किसी से क्षमा मांग ले .....
किसी को क्षमा कर दें...
होठों पर मुस्कानों की ....
लौ तेज कर लें....
चलो आज ऐसा दीपक जलाएं।।
*****
चैतन्य का दीपक प्रज्ज्वलित
अपने लक्ष्यों को याद करें,
मंज़िल तक राहों पर पग-पग
दीप जलायें संकल्पों के !
*****
एक दीप संकल्प का,आज जलाएँ आप।
तिमिर हृदय का दूर हो,मिटे सभी संताप।।
दीप जले जब ज्ञान का,रहे आचरण शुद्ध।
ऊर्जा के संचार से,अंतस में हैं बुद्ध ।।
*****