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बुधवार, 30 अक्तूबर 2024

4292..दीवाली जीने का अंदाज़ देती

 ।।प्रातःवंदन।।

मिरी साँसों को गीत और आत्मा को साज़ देती है

ये दीवाली है सब को जीने का अंदाज़ देती है

हृदय के द्वार पर रह रह के देता है कोई दस्तक

बराबर ज़िंदगी आवाज़ पर आवाज़ देती है

सिमटता है अंधेरा पाँव फैलाती है दीवाली

हँसाए जाती है रजनी हँसे जाती है दीवाली 

नज़ीर बनारसी

सांस्कृतिक धार्मिक मूल्यों के साथ पंच दिव्य दीपोत्सव पर्व की शुभकामना के साथ आज की प्रस्तुतिकरण में शामिल रचना ..

इस बार की दिवाली



पिछली दिवाली में 

जो थोड़े-बहुत फ़ासले

दिलों के बीच हुए थे,

इस दिवाली में आओ 

✨️

जीवित जो आदर्श रखे

सम्वेदना का भाव भरा

खरा रहा इन्सान 

जीवित जो आदर्श रखे 

पूरे हो अरमान ..

✨️

चित्र साभार गूगल


नजूमी बाढ़ का मज़र लगे खेतों को दिखलाने 

नमक से अब भी सूखी रोटियां मज़दूर खाते हैं 

भले ही कृष्ण चंदर ने लिखे हों इनपे अफ़साने
✨️

मारे जाते हैं 


सिद्धांत से खाली समय 

और अवसरवादी भीड़ के हाथों
✨️

कल की बची कुछ उधार सांसे
आज हिसाब मांग रहीं हैं

मजबूरियों की फटी चादर से
..
।।इति शम।।
धन्यवाद 
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

4 टिप्‍पणियां:

  1. दीवाली जीने का अंदाज़ देती----वाकई सच है, यह पर्व उत्साह से भर देता है। शानदार प्रस्तुति।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन. शुभ दीपावली

    जवाब देंहटाएं

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