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रविवार, 27 अक्तूबर 2024

4289 ...सब उसी के हैं हवा ख़ुशबू ज़मीन ओ आसमाँ

 सादर अभिवादन

तूफां का दूसरा दिन
मौसम शांत है
पूरे देश में जनहानि की खबर नहीं है

आज की शुरुआत




अपनी योग्यता और समाधान से विकास करते हुए बड़ा बनना चाहिए। हम अपने दुःखों से नहीं, दूसरों के सुख से ज्यादा परेशान होते हैं। पर कई बार हम ज्यादा ही परेशान हो जाते हैं। जरूरत खुद को काबू में रखने की होती है, लेकिन हम दूसरों को काबू में करने में जुटे रहते हैं। रूमी कहते हैं, 'तूफान को शांत करने की कोशिश छोड़ दें। खुद को शांत होने दें। तूफान तो गुजर ही जाता है।'




मैं ख़ुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तों
ज़हर भी इसमें अगर होगा दवा हो जाएगा

सब उसी के हैं हवा ख़ुशबू ज़मीन ओ आसमाँ
मैं जहाँ भी जाऊँगा उस को पता हो जाएगा





नाकामयाबी का सैलाब उठता हर रोज
मुश्किलों की आंधी उड़ा ले जाती खुशियों को
चंद बूँदों के लिए तरसती रेगिस्तान सी जिंदगी
फिर क्यूँ पहाड़ सी उम्र दे दी मनुष्यों को





हृदय में  कुछ  और  रहा
बाहर से कुछ  और
चेहरों  पर मुस्कान  रहे
भीतर से  घनघोर

तू  अपनी  एक  ऐब  बता
कर ख़ुद  का  निर्माण
खुद ही से  परिवेश  रहा
नव  जीवन  है  प्राण






ढूंढ रहे हैं तस्वीरों में अब भी तुम्हें
आंसू मगर क्यों नहीं थमते मेरे
तुम्हारे चुटकुलों को सोच बहते हैं आँसू मेरे !

इस कदर छाप छोड़ गए हो दिल पर
तुम सा बनने की कोशिश करेंगे ज़रूर
जाते हुए भी प्यार की सीख दे गयी !





आओ स्वच्छता के नारे को
दुनिया में साकार करें
चीन देश की चीजों को
हम कभी नहीं स्वीकार करें
छोड़ साज-संगीत विदेशी
देशी साज बजायें हम
घर-आंगन को रंगोली से,
मिलकर खूब सजायें हम

आज बस
वंदन

4 टिप्‍पणियां:

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