शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ओंकार जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
स्थानापन्न रविवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पाँच पंसदीदा रचनाएँ-
उसका क्या
यह तो न्याय नहीं
मझधार में मुझे छोड़ा
कैसे कच्चे धागों को
अधर में छोड़ा
यह भी न सोचा
मेरा अब क्या होगा।
६७१. आँसू
हाँ,अगर चाहो,
तो जीभ से कहो
कि थोड़ा-सा झूठ बोले,
कह दे,
कि ये ग़म के नहीं,
ख़ुशी के आँसू हैं.
अब हम पर है निर्भर
नया दांव कहाँ खेलें,
जीवन शतरंज बिछा
कैसे नयी चाल चलें!
उनकी चुभन,
वही, अन्तहीन इक लगन,
हर पल, बिन थकन,
वही छुअन!
अब अपने से लगते हैं वो चुभते कांटे...
कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' की पुण्यतिथि आज, पढ़िए उनकी रचना - कुकुरमुत्ता
काम मुझ ही से सधा है
शेर भी मुझसे गधा है
चीन में मेरी नकल, छाता बना
छत्र भारत का वही, कैसा तना
सब जगह तू देख ले
आज का फिर रूप पैराशूट ले।
विष्णु का मैं ही सुदर्शनचक्र हूँ।
काम दुनिया मे पड़ा ज्यों, वक्र हूँ।
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
व्वाहहहहहहहहहह
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
निराला जी को सादर नमन
सादर
निराला जी को शत शत नमन
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
सुन्दर अंक. निराला जी को नमन.
जवाब देंहटाएंसुप्रभात ! महाकवि निराला को विनम्र श्रद्धांजलि ! सुंदर पठनीय हलचल, आभार रवींद्र जी मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रवींद्र जी, मेरी पोस्ट को पांच लिंकों में स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार
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