सुरूर उनका जो मुझ पर चढ़ा नहीं होता ,
ख़ुदा क़सम कि मैं खुद से जुदा नहीं होता ।
हमारे इश्क़ में शायद कमी रही होगी-
सितमशिआर सनम क्यों खफा नहीं होता ।
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तुम्हारा वस्ल ही मरहम है
बाबिया, एक शाकाहारी मगरमच्छ
मंदिर के पदाधिकारियों के अनुसार वर्षों पहले भी इस झील में एक मगरमच्छ रहता था। जिसे बाबिया कह कर पुकारा जाता था। 1942 में उसे एक ब्रिटिश अधिकारी मार कर अपने साथ ले गया था ! पर कुछ ही दिनों बाद उसकी सांप के काटने से मौत हो..
वो मेरी दहलीज़ पे चढ़ता भी नहीं है
कहते हैं लोग मेरे सीने में मौजूद है
मेरी मर्जी से मगर ये धड़कता भी नहीं है
मैं भी दिन और रात का पाबंद हूँ
मुझसे तो सूरज कभी ढलता भी नहीं है..
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।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍️
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर हलचल प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
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