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मंगलवार, 18 अक्टूबर 2022

3550 .....जीवन की आजमाइश में जिंदगी को तौलता तराजू

सादर अभिवादन
पुताई-रंगाई चालू आहे
मिसफायर भी चालू हो गया
सोचा अपने सिस्टम को तो
शर्म आती ही नही...
वर्षों बाद ब्लॉग के दर्शन कर रहा हूँ
वरना मैं उसको व्यस्त ही रखता हूँ
ताकि दिमाग हिले नहीं
रचनाएँ देखें




खटमल से चिपके हैं
रुधिर पिएं तन का
और मुखौटा पहने वे
सब भोलेपन का
भूख लोभ की बढ़ती
चाह बढ़ी जितनी...





बेमुरब्बत हुआ
किसी का कोई
ख्याल नहीं रखा |
सिर्फ खुद की ही सोची
और किसी की नहीं
हुआ ऐसा किस कारण
जान न पाई |




आजमाना न था साथी
जीवन की आजमाइश में
जिंदगी को तौलता तराजू
सूरज बना,

तुम कंधे पर बैठ उसके
थामनें लगे दुनिया
पकड़ने लगे पीलापन
मुट्ठी बंद करते ही अंधेरा हो गया



तू टपकती हुई छत है किसे मालूम नहीं?
अबके बरसात के पहले, चूने से भराना होगा ।।

जहां देखो वहां कांटों के सिवा कुछ भी नहीं-
जलेगी आग तो, इन्हें खाक में जाना होगा।।




शाम सुह्बत में उसकी जैसी भी हो
वैसे वो लाजवाब होती है

उम्र की बात करने वालों सुनो
ज़िन्दगी पुरशबाब होती है

वैसे पढ़ने का अब चलन न रहा
वर्ना हर शै किताब होती है



“शान्त हो जाओ दिव्या, वक्त की लकीरें तक़दीर के इशारे पर ही चलती हैं। हमारा कोई भी प्रयास उनकी दिशा निर्धारित नहीं कर पाता।” 
-प्रकाश ने दिव्या को दिलासा देने का प्रयास किया। वह भी उसे कैसे और कब तक सान्त्वना देता, जबकि उसका स्वयं का संयम भी भरभरा उठी आँखों से निकल रहे 
आंसुओं को रोक नहीं पा रहा था।


आज बस
सादर

6 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी रचना को इस सुन्दर पटल पर स्थान देने के लिए आ. दिग्विजय जी का हार्दिक आभार! सभी साथी रचनाकारों को भी नमस्कार व स्नेहिल अभिनन्दन!

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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